भारत के तेल आयात में इस साल के पहले चार महीनों (जनवरी-अप्रैल 2025) में अमेरिका से आयात में 270 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, इस वृद्धि के बावजूद, भारत सरकार ने अमेरिका से खरीदे गए इस तेल की कीमतों के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। यह पारदर्शिता का अभाव कई सवाल उठा रहा है। खासकर तब जब भारत की ऊर्जा नीति और आयात रणनीति वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों और आर्थिक हितों से गहराई से जुड़ी हुई है।
डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (डीजीसीआईएस) के आंकड़ों के अनुसार, इन चार महीनों में भारत ने अमेरिका से 6.31 मिलियन टन कच्चा तेल आयात किया, जो पिछले साल की समान अवधि में 1.69 मिलियन टन की तुलना में काफी अधिक है। मूल्य के हिसाब से, इस साल जनवरी-अप्रैल में अमेरिकी कच्चे तेल का आयात 3.78 बिलियन डॉलर रहा, जो पिछले साल की तुलना में 1 बिलियन डॉलर से कहीं अधिक है।
इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच 9 जुलाई तक एक अंतरिम व्यापार समझौते के लिए बातचीत अंतिम चरण में है। भारत विभिन्न श्रेणियों में अमेरिका से आयात बढ़ाकर अमेरिका के व्यापार घाटे की प्रमुख चिंता को दूर करने का प्रयास कर रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में भारत के कुल आयात में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि अमेरिका से आयात 63 प्रतिशत बढ़कर 5.24 बिलियन डॉलर हो गया, जो अप्रैल 2024 में 3.20 बिलियन डॉलर था। इससे भारत का अमेरिका के साथ वस्तु व्यापार अधिशेष 3.4 बिलियन डॉलर से घटकर 3.1 बिलियन डॉलर हो गया।
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आर्थिक प्रभाव और जनता का हित 

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है, जो अपनी 88% से अधिक तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। तेल आयात की कीमतें न केवल देश के व्यापार घाटे और विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित करती हैं, बल्कि पेट्रोल, डीजल और अन्य ईंधन की कीमतों के माध्यम से आम जनता के जीवन पर भी असर डालती हैं। कीमतों के बारे में पारदर्शिता का अभाव सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाता है, क्योंकि यह जनता को यह जानने से वंचित करता है कि क्या ये आयात लागत-प्रभावी हैं या क्या ये रणनीतिक निर्णय भू-राजनीतिक दबावों से प्रभावित हैं। अगर अमेरिका से सस्ता तेल खरीदा जा रहा है तो भारत में महंगा क्यों बेचा जा रहा है। पहले भी विपक्ष कहता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें जब घटी हुई थीं तो भारत में तेल की कीमतें नहीं घटाई गईं। 

भू-राजनीतिक रणनीति और अमेरिका के साथ संबंध 

भारत और अमेरिका के बीच 9 जुलाई तक एक अंतरिम व्यापार समझौते के लिए बातचीत अंतिम चरण में है। इस संदर्भ में, अमेरिका से तेल आयात में वृद्धि को भारत की उस रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें वह अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी कहा है कि अमेरिका भारत का शीर्ष तेल और गैस आपूर्तिकर्ता बनने की उम्मीद करता है। हालांकि, बिना कीमतों के खुलासे के, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ये आयात भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद हैं या केवल भू-राजनीतिक गठजोड़ को मजबूत करने के लिए किए जा रहे हैं।

रूस के साथ तुलना और कीमतों का सवालः उपलब्ध सूचनाओं के मुताबिक रूसी कच्चा तेल लगभग 50 डॉलर प्रति बैरल की दर से उपलब्ध है, जबकि अमेरिकी तेल की कीमत 68-81 डॉलर प्रति बैरल के बीच है। हालांकि इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती, लेकिन यह संकेत देता है कि जनता और विश्लेषकों के बीच इस बात को लेकर चिंता है कि भारत अधिक कीमत पर अमेरिकी तेल क्यों खरीद रहा है।

रूस, जो भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है और मार्च 2025 में 1.88 मिलियन बैरल प्रति दिन की आपूर्ति कर रहा था, और सस्ता तेल दे रहा था। रूसी तेल की कीमतें पश्चिमी एशियाई या अमेरिकी तेल की तुलना में 3-8 डॉलर प्रति बैरल कम हैं। इस संदर्भ में, अमेरिकी तेल की खरीद के पीछे पारदर्शिता का अभाव संदेह को और बढ़ाता है।

रणनीतिक विविधीकरण या आर्थिक बोझ? 

भारत ने अपनी तेल आपूर्ति को विविध बनाने की रणनीति अपनाई है, विशेष रूप से पश्चिम एशिया में तनाव के बीच, जहां से भारत 40% कच्चा तेल और 50% गैस आयात करता है। अमेरिकी तेल की खरीद इस रणनीति का हिस्सा हो सकती है, क्योंकि यह पश्चिम एशियाई शिपिंग मार्गों को बायपास करता है, जो स्ट्रेट ऑफ होर्मुज जैसे क्षेत्रों में तनाव के कारण जोखिम में हैं। लेकिन बिना कीमतों के खुलासे के, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह विविधीकरण आर्थिक रूप से व्यावहारिक (प्रेक्टिकल) है या यह भारत के आयात बिल को बढ़ा रहा है। उदाहरण के लिए, अप्रैल-फरवरी 2025 में भारत का कुल तेल आयात बिल 124.7 बिलियन डॉलर था, जो पिछले साल की तुलना में 3% अधिक है।
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बहरहाल, अमेरिका से तेल आयात में 270% की वृद्धि भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आपूर्ति विविधीकरण की रणनीति को दर्शाती है, लेकिन कीमतों के बारे में पारदर्शिता का अभाव चिंता का विषय है। यह न केवल जनता के विश्वास को प्रभावित करता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या ये आयात भारत के आर्थिक हितों के अनुरूप हैं। सरकार को चाहिए कि वह तेल आयात की कीमतों और अनुबंधों के बारे में स्पष्ट जानकारी साझा करे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये निर्णय देश के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर लिए गए हैं।