पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। लेकिन पाकिस्तान को एक बूंद पानी न मिले, इसके लिए भारत कई विकल्पों पर विचार कर रहा है। इस बीच पाकिस्तान की भी प्रतिक्रिया आई है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित करने का ऐलान किया। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने अब उसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत यह तय करेगा कि उसकी नदियों से एक भी बूंद पानी पाकिस्तान तक न पहुंचे।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 नागरिकों की जान गई थी। इस हमले में पाकिस्तान से संचालित आतंकी समूह लश्कर ए तैबा का नाम सामने आया है। इसके जवाब में भारत ने कई कठोर कदम उठाए, जिनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना प्रमुख है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई उच्च-स्तरीय बैठक के बाद पाटिल ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों के तहत हमने यह रणनीति तैयार की है। हम अल्पकालिक, मध्यमकालिक और दीर्घकालिक उपायों पर काम कर रहे हैं। नदियों की तलछट हटाने (डिसिल्टिंग) का काम जल्द शुरू होगा ताकि पानी को रोका और डायवर्ट किया जा सके।" उन्होंने जोर देकर कहा, "पाकिस्तान को भारत से पानी की एक बूंद भी नहीं मिलेगी।"
पाटिल ने बताया कि सरकार ने पानी रोकने के लिए कई चरणों में रणनीति बनाई है:
अल्पकालिक उपाय: नदियों की तलछट हटाकर पानी के प्रवाह को तुरंत नियंत्रित करना।
मध्यमकालिक उपाय: जल भंडारण और डायवर्जन के लिए बुनियादी ढांचे का विकास।
दीर्घकालिक उपाय: भारत के हक वाले पानी का पूरा इस्तेमाल करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट्स।
2016 में उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुखी होकर कहा था, "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।" उरी हमले में 18 भारतीय सैनिक मारे गए थे। प्रधानमंत्री ने उस समय सिंधु जल संधि का हवाला अप्रत्यक्ष रूप से दिया था। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पहली बार भारत ने इस तरह का कदम उठाया है। यहां कि 2019 में जब पुलवामा में 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे, तब भी भारत की नदियों का पानी रोकने की बात नहीं की गई थी।
विशेषज्ञों का कहना है कि, हालांकि भारत के पास अब पश्चिमी नदियों पर स्टोरेज और जल मोड़ने संबंधी बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए कानूनी और कूटनीतिक गुंजाइश है, लेकिन उपाय सीमित हैं। क्योंकि जल प्रवाह को रोकने या बदलने की इसकी क्षमता के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है।
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत भारत को सतलुज, ब्यास और रावी (पूर्वी नदियों) पर पूर्ण अधिकार मिले, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब (पश्चिमी नदियों) का नियंत्रण दिया गया। यह संधि तीन युद्धों और कई आतंकी हमलों के बावजूद अब तक कायम थी, लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत ने इसे निलंबित कर दिया।
पाकिस्तान, जो भारत के नीचे की ओर (डाउनस्ट्रीम) स्थित है, इस फैसले से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी नदियों का पानी रोकने से पाकिस्तान में कृषि और पेयजल की कमी हो सकती है। हालांकि, भारत का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय हित में और आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के तौर पर उठाया गया है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी सरकार इस फैसले का समर्थन किया है। उन्होंने सिंधु जल समझौते को "जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे अन्यायपूर्ण दस्तावेज" करार दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निलंबन भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नए तनावपूर्ण दौर की शुरुआत हो सकता है। पहलगाम हमले के बाद भारत का यह फैसला न केवल जल संसाधनों पर नियंत्रण का प्रतीक है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी जीरो टॉलरेंस नीति को भी दर्शाता है। हालांकि, यह कदम दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, कूटनीतिक और आर्थिक रिश्तों को और प्रभावित कर सकता है।
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी ने दावा किया है कि सिंधु नदी इस्लामाबाद की है और हमेशा इस्लामाबाद की ही रहेगी। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ते तनाव के बीच जरदारी ने चेतावनी दी कि अगर पानी का बहाव रोका गया तो इसकी जगह "भारतीय खून बहेगा"।
प्रदर्शनकारियों की एक सभा को संबोधित करते हुए बिलावल ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान की त्रासदी के लिए इस्लामाबाद को दोषी ठहराया है, ताकि "अपनी कमजोरियों को छुपाया जा सके और अपने लोगों को मूर्ख बनाया जा सके।" उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "झूठे आरोप लगाए हैं" और सिंधु जल संधि के निलंबन पर ध्यान दिया है।
जरदारी के अनुसार, सिंधु जल संधि के अनुसार, "भारत ने स्वीकार किया है कि सिंधु नदी पाकिस्तान की है"। जरदारी ने कहा, "मैं यहां सुक्कुर में सिंधु नदी के किनारे खड़ा होकर भारत को बताना चाहता हूं कि सिंधु हमारी है और सिंधु हमारी ही रहेगी, चाहे इस सिंधु नदी में पानी बहे या उनका खून।"