भारत ने अमेरिका से हथियारों और विमानों की खरीद की योजना को रोक दिया है। यह रॉयटर्स ने अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट दी है। तो क्या यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत के ख़िलाफ़ लगाए गए भारी टैरिफ़ के जवाब का संकेत है? क्या यह ट्रंप के टैरिफ़ के खिलाफ दबाव की रणनीति है या दोनों देशों के रिश्तों में बढ़ते तनाव का संकेत?

इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर रॉयटर्स ने क्या रिपोर्ट दी है। इसने कहा है कि तीन भारतीय अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है कि भारत ने अमेरिका से हथियारों और विमानों की खरीद की योजना को रोक दिया है। भारत और अमेरिका के बीच दशकों में सबसे निचले स्तर पर पहुँचे द्विपक्षीय संबंधों का पहला ठोस संकेत है। इस निर्णय के तहत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की प्रस्तावित वाशिंगटन यात्रा को भी रद्द कर दिया गया है। इस यात्रा के दौरान कई रक्षा सौदों की घोषणा होनी थी। इस कदम के बाद अब भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी पर सवाल उठने लगे हैं।
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क्या है ट्रंप का टैरिफ़ विवाद?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 6 अगस्त 2025 भारत के रूस से तेल आयात को लेकर भारतीय सामानों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की। इससे छह दिन पहले उन्होंने भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ़ लगा दिया था। यानी छह अगस्त को घोषित टैरिफ़ के बाद भारत पर कुल टैरिफ़ बढ़कर 50% हो गया। यह अमेरिका के किसी भी प्रमुख व्यापारिक साझेदार के लिए सबसे ऊंची दरों में से एक है। ट्रंप ने दावा किया कि भारत न केवल रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है, बल्कि इसे खुले बाजार में बेचकर बड़ा मुनाफा भी कमा रहा है और इस तरह रूस-यूक्रेन युद्ध को 'फंड' मुहैया करा रहा है। 

भारत ने इन टैरिफ को ग़लत करार देते हुए कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देश भी अपने हितों के लिए रूस के साथ व्यापार जारी रखते हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस कदम को राष्ट्रीय हितों के खिलाफ बताया और कहा कि यह भारत की ऊर्जा जरूरतों और वैश्विक व्यापार नीतियों को गलत तरीके से निशाना बना रहा है। इस टैरिफ विवाद ने भारत को अपनी रक्षा खरीद नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। 

रॉयटर्स के अनुसार भारत ने जनरल डायनेमिक्स लैंड सिस्टम्स द्वारा निर्मित स्ट्राइकर कॉम्बैट वाहनों, रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित जैवलिन एंटी-टैंक मिसाइलों और बोइंग पी8आई टोही विमानों की खरीद पर चर्चा को रोक दिया है।

किन रक्षा सौदों पर हो रही थी बात?

फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप ने स्ट्राइकर कॉम्बैट वाहनों और जैवलिन मिसाइलों की खरीद और संयुक्त उत्पादन को आगे बढ़ाने की योजना की घोषणा की थी। इसके अलावा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपनी प्रस्तावित वाशिंगटन यात्रा के दौरान भारतीय नौसेना के लिए छह बोइंग पी8आई टोही विमानों और सहायक प्रणालियों की खरीद की घोषणा करने वाले थे। यह सौदा 3.6 बिलियन डॉलर का था और इसकी बातचीत अंतिम चरण में थी।

इन सौदों को रद्द करने का निर्णय भारत का टैरिफ़ के खिलाफ पहला ठोस जवाब माना जा रहा है। हालाँकि, एक भारतीय अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि खरीद को रोकने के लिए कोई लिखित निर्देश जारी नहीं किए गए हैं, जिसका मतलब है कि भारत के पास जल्दी ही इस निर्णय को पलटने का विकल्प है, लेकिन फिलहाल कोई प्रगति नहीं हो रही है।
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रक्षा साझेदारी पर असर

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी हाल के वर्षों में काफी मज़बूत हुई थी, खासकर चीन के साथ साझा रणनीतिक चिंताओं के कारण। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है और रूस पारंपरिक रूप से इसका सबसे बड़ा सप्लायर रहा है। हालांकि, रूस का यूक्रेन पर आक्रमण और रूसी हथियारों के युद्धक्षेत्र में खराब प्रदर्शन के कारण भारत ने हाल के वर्षों में फ्रांस, इसराइल और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों की ओर रुख किया है। इसके बावजूद एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त सैन्य अभ्यास जैसे व्यापक अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग पर कोई असर नहीं पड़ा है। हालाँकि, टैरिफ विवाद ने दोनों देशों के बीच रक्षा सौदों की प्रगति को रोक दिया है, जिससे भविष्य की बातचीत अनिश्चित हो गई है।

रूस के साथ संबंध

ट्रंप के टैरिफ का एक प्रमुख कारण भारत का रूस से तेल और हथियारों का आयात है। ट्रंप ने भारत पर रूस के साथ व्यापार के ज़रिए यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषण करने का आरोप लगाया है। भारत ने बार-बार कहा है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए रूसी तेल पर निर्भर है और इसे पूरी तरह से बंद करना संभव नहीं है।

हाल के महीनों में रूस ने भारत को सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली एस-500 जैसी नई रक्षा प्रौद्योगिकियों की पेशकश की है। भारत और रूस के बीच दशकों पुरानी साझेदारी के कारण भारतीय सैन्य प्रणालियां रूसी समर्थन पर निर्भर हैं, जिसके चलते रूस से पूरी तरह से दूरी बनाना संभव नहीं है।

भारत की प्रतिक्रिया

भारत ने टैरिफ़ के जवाब में कूटनीतिक और आर्थिक क़दम उठाने शुरू कर दिए हैं। कुछ मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि भारत रूस से तेल आयात को कम करने के लिए तैयार है, बशर्ते अमेरिका या अन्य देश समान कीमत पर तेल की आपूर्ति करें। इसके अलावा भारत ने संकेत दिया है कि वह टैरिफ विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत जारी रखने को तैयार है। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच के बीच सीधे संवाद से सौदा अभी भी संभव हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा कि भारत अपने किसानों और डेयरी क्षेत्र के हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा, भले ही इसके लिए व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़े। उन्होंने भारत की खाद्य आत्मनिर्भरता और हरित क्रांति की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ट्रंप के टैरिफ दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
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विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन किया, लेकिन साथ ही मोदी की नीतियों पर सवाल उठाए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्रंप के टैरिफ को आर्थिक ब्लैकमेल करार दिया और कहा कि यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है।

ट्रंप के टैरिफ़ का आर्थिक प्रभाव

मूडीज रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप के टैरिफ से भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा और वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी वृद्धि में 0.3% की कमी आ सकती है। हालाँकि, भारत की मजबूत घरेलू मांग और सेवा क्षेत्र की ताकत इस प्रभाव को कुछ हद तक कम कर सकती है। भारतीय निर्यातक, विशेष रूप से कपड़ा और परिधान क्षेत्र, पहले ही ऑर्डर रद्द होने और निलंबन की शिकायत कर रहे हैं।

बहरहाल, भारत का अमेरिका से हथियार खरीद की योजना को रोकने का फैसला ट्रंप के टैरिफ़ के खिलाफ उसकी पहली ठोस प्रतिक्रिया है। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी को प्रभावित कर सकता है, बल्कि यह भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक बड़े तनाव का भी संकेत देता है। हालांकि, भारत ने बातचीत के दरवाजे खुले रखे हैं। जैसे-जैसे यह विवाद आगे बढ़ेगा, यह देखना होगा कि क्या दोनों देश इस तनाव को सुलझा पाते हैं या यह द्विपक्षीय संबंधों को और खराब करता है।