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ब्लैक फंगस के 5500 केस, 126 मौतें; महामारी में अधिसूचित क्यों?

केंद्र सरकार ने राज्यों से क्यों कहा है कि ब्लैक फंगस के मामलों को महामारी क़ानून के तहत अधिसूचित करें? देश में जिस तरह से इसके मामले सामने आ रहे हैं वे ही इस सवाल का साफ़ जवाब देते हैं। देश भर में 5500 से ज़्यादा ब्लैक फंगस के मामले सामने आ चुके हैं और 126 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। इस फंगस के संक्रमण के मामले देश के किसी एक हिस्से से ही नहीं आ रहे हैं, बल्कि अधिकतर हिस्सों से। बंगाल से लेकर राजस्थान और हरियाण से लेकर तमिलनाडु तक। महाराष्ट्र और गुजरात में तो क़रीब डेढ़-डेढ़ हज़ार केस आ चुके हैं। 

तो सवाल है कि इसे महामारी एक्ट में अधिसूचित करने के लिए क्यों कहा गया है? इस सवाल के जवाब से पहले यह जान लें कि यह ब्लैक फंगस क्या है। ब्लैक फंगस को तकनीकी भाषा में म्यूकोर्मिकोसिस कहा जाता है। लेकिन आम तौर पर यह ब्लैक फंगस के नाम से चर्चित है। यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर संक्रमक बीमारी है। 

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यह संक्रमण म्यूकोर्मिसेट नाम के एक फंगस से फैलता है। यह संक्रमण के शिकार किसी व्यक्ति से नहीं फैलता है, बल्कि म्यूकोर्मिसेट पर्यावरण में मौजूद होता है। यानी हर कोई सांस लेने पर इस फंगस के संपर्क में आ सकता है लेकिन संक्रमित वह व्यक्ति होता है जिसका शरीर इससे लड़ पाने में सक्षम नहीं होता है। 

तो सवाल है कि अब ऐसा क्या हो गया कि यह इतनी बड़ी चिंता की वजह बन गया? दरअसल, कोरोना महामारी से पहले अनियंत्रित मधुमेह वाले रोगियों में म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा अधिक था। ऐसा इसलिए क्योंकि हाई ब्लड शूगर का स्तर फंगस के बढ़ने और जीवित रहने के लिए स्थिति बनाता है। इसके साथ उनकी कमजोर इम्यून सिस्टम संक्रमण से कम सुरक्षा प्रदान करता है। अब इस कोरोना महामारी के दौरान वायरस से संक्रमित होने पर इन रोगियों के लिए म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा दो कारणों से बढ़ जाता है। पहला यह है कि कोविड -19 उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को और ख़राब कर देता है और दूसरा, उन्हें उनके इलाज के लिए स्टेरॉइड वाली दवाएँ दी जाती हैं। इससे एक तो इम्यून सिस्टम सुस्त हो जाता है और उनके ब्लड शूगर के स्तर में वृद्धि होती है जिससे उनके म्यूकोर्मिकोसिस का ख़तरा बढ़ जाता है। 

अब कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के बाद ब्लैक फंगस के मामले काफ़ी ज़्यादा बढ़ गए हैं। 'टीओआई' की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में 1500 ब्लैक फंगस के मामले आए और 90 लोगों की मौत हुई। गुजरात में भी 1500 मामले आए और 14 मौतें हुईं। तेलंगाना में 700 और मध्य प्रदेश में 573 मामले आए हैं। कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा में क़रीब 200-200 मामले आए हैं। यूपी और राजस्थान में 160 और 100 मामले आए हैं। उत्तर प्रदेश में 8 लोगों की मौत हुई है। छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, गोवा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम और हिमाचल प्रदेश में भी ब्लैक फंगस के मामले आए हैं। 
पहले ब्लैक फंगस के मामले दुर्लभ रूप से कभी-कभी आते थे तो इसके इलाज के लिए दवाओं का स्टॉक भी नहीं था। लेकिन अब महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दवाओं की कमी हो गई है।

महाराष्ट्र अप्रैल की शुरुआत से ही लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी दवा की भारी कमी से जूझ रहा है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा है कि राज्य को दवा की 1.50 लाख शीशियों की ज़रूरत है, लेकिन केंद्र से केवल 16,000 शीशियाँ मिली हैं।

india reports 5500 black fungus cases, to be notified under pandemic act - Satya Hindi

राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि राज्य के पास लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी की सिर्फ 700 शीशियाँ बची हैं। उन्होंने कहा है कि उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से 50,000 शीशियों की मांग की है और वह आठ फार्मा कंपनियों के संपर्क में भी हैं। एमपी के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि हम केंद्र सरकार के साथ-साथ फार्मा कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। 

दिल्ली के हाई कोर्ट ने तो केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह दुनिया भर के देशों से इसकी दवाएँ आयात करे। 

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ब्लैक फंगस के मामले आने के बीच ऐसे हालात के कारण ही कई राज्य तो महामारी एक्ट के तहत अधिसूचित बीमारी पहले ही घोषित कर चुके हैं। इनमें तेलंगाना, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्य शामिल हैं।

अब चूँकि केंद्र सरकार ने राज्यों से महामारी एक्ट के तहत अधिसूचित करने को कहा है तो अब वे भी ऐसा ही करेंगे। 

महामारी रोग अधिनियम के तहत किसी बीमारी को अधिसूचित करने का मतलब है कि सरकारी अस्पतालों, निजी सुविधाओं और मेडिकल कॉलेजों को संदिग्ध और पुष्ट मामलों की रिपोर्ट स्वास्थ्य अधिकारियों को देनी होगी। महामारी क़ानून के तहत ब्लैक फंगस के मामले अधिसूचित करने पर अब राज्यों को इसके मामलों का पूरा हिसाब-किताब रखना पड़ेगा। यानी इसके कितने मामले आए हैं और किस मरीज की क्या स्थिति है। उनके इलाज के लिए क्या व्यवस्था है।  

इससे योजना बनाने में काफी मदद मिलेगी। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बीमारी की जाँच, निदान और प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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