India US Defence Deal: भारत और अमेरिका ने 10 साल के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यूएस के सेक्रेटरी ऑफ वॉर पीट हेगसेथ से मुलाकात की। इससे पहले ट्रंप ने रूसी तेल खरीद बंद करने का निर्देश भारत को दिया था। जिसे भारत ने माना।
भारत अमेरिका में दस साल के लिए रक्षा समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर किए गए।
भारत और अमेरिका ने एक रक्षा समझौता शुक्रवार को किया, जो 10 वर्षों तक चलेगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (एडीएमएम-प्लस) के दौरान शुक्रवार सुबह अमेरिकी युद्ध मंत्री पीट हेगसेथ से मुलाकात की। इस ऐतिहासिक मुलाकात के दौरान दोनों देशों ने 10 वर्षीय डिफेंस फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के पूरे स्पेक्ट्रम को दिशा प्रदान करेगा। यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। क्योंकि हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी से रूसी तेल न खरीदने का आग्रह किया था और कहा था कि अगर भारत ने ऐसा नहीं किया तो अमेरिका उस पर टैरिफ बढ़ा देगा। भारत ने घोषणा तो नहीं की लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पुष्ट खबरें आईं कि भारत ने रूसी तेल का ऑर्डर देना बंद कर दिया है।
मुलाकात से पहले सिंह और हेगसेथ के बीच तीन टेलीफोन पर बातचीत हो चुकी थी। राजनाथ सिंह ने मीडिया को बताया, "हमने तीन बार फोन पर बातचीत की है। यहां आपसे (हेगसेथ) व्यक्तिगत रूप से मिलकर खुश हूं। रक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर समझौते के हस्ताक्षर के साथ आज (शुक्रवार) एक नया अध्याय शुरू होगा। मुझे विश्वास है कि आपके नेतृत्व में भारत-अमेरिका संबंध और मजबूत होंगे।" वहीं, पीट हेगसेथ ने कहा, "मंत्री राजनाथ सिंह को भारत के साथ हमारी साझेदारी के लिए धन्यवाद। यह समझौता अमेरिका-भारत संबंधों में से सबसे महत्वपूर्ण है। हमारी रणनीतिक साझेदारी साझा हितों, आपसी विश्वास और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षित एवं समृद्ध क्षेत्र के प्रति प्रतिबद्धता पर आधारित है।"
यह समझौता इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सैन्य सहयोग, क्षमता निर्माण और संयुक्त पहलों के लिए एक दशक लंबा रोडमैप तैयार करेगा। हेगसेथ ने इसे "महत्वाकांक्षी" बताते हुए कहा कि यह दोनों सेनाओं के बीच गहन और सार्थक सहयोग का रास्ता साफ करेगा। यह अमेरिका की साझा सुरक्षा के प्रति लंबी अवधि की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। राजनाथ सिंह ने एक्स पर लिखा, "यह रक्षा ढांचा भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के पूरे स्पेक्ट्रम को नीतिगत दिशा प्रदान करेगा। यह हमारी बढ़ती रणनीतिक समझदारी का संकेत है। यह हमारी साझेदारी का एक नया दशक होगा।"
भारत-अमेरिका संबंधः कौन भारी पड़ रहा है
रक्षा समझौता भारत-अमेरिका संबंधों में एक बड़ा मोड़ है, खासकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में। याद रहे, ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) में अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल आयात को लेकर कड़ा रुख अपनाया था। 2018 में उस समय ट्रंप प्रशासन ने भारत सहित कई देशों को चेतावनी दी थी कि रूस से सस्ता तेल खरीदने पर अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इस वजह से भारत ने रूसी कच्चे तेल के आयात को काफी हद तक कम कर दिया था। ट्रंप ने अपने मौजूदा दूसरे कार्यकाल में भी भारत को रूसी तेल सप्लाई पर रोक लगाने के लिए तैयार किया। इसके लिए टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी गई।
अब, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में, भारत अमेरिकी हथियारों की खरीद को बढ़ावा देने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस 10 वर्षीय ढांचे के तहत, भारत को अमेरिका से अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों, जैसे मिसाइल सिस्टम और लड़ाकू विमान, की आपूर्ति में वृद्धि की उम्मीद है, जो दोनों देशों के बीच रक्षा व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य रखता है।
भारत-यूएस ट्रेड डील भी जल्द होने की उम्मीद
भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापक ट्रेड डील के अंतिम चरण में है। सूत्रों के अनुसार, यह सौदा कृषि, आईटी और ऊर्जा क्षेत्रों में द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखता है। ट्रंप प्रशासन की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत, भारत को अमेरिकी निर्यात बाजार के रूप में मजबूत बनाया जा रहा है, जबकि भारत को तकनीकी ट्रांसफर और निवेश में लाभ मिलेगा।
मोदी से विपक्ष मांग रहा जवाब
विपक्ष ट्रंप को लेकर मोदी पर जबरदस्त हमला बोल रहा है। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने 15 दिनों पहले कहा था कि मोदी दरअसल ट्रंप से डरते हैं। राहुल गांधी ने लिखा था, "ट्रंप के दबाव में भारत ने रूसी तेल छोड़ा। ट्रंप को यह निर्णय लेने और घोषणा करने की अनुमति दी कि भारत रूसी तेल नहीं खरीदेगा। बार-बार की गई उपेक्षा के बावजूद बधाई संदेश भेजते रहे। वित्त मंत्री की अमेरिका यात्रा रद्द करा दी। शर्म अल-शेख में शामिल नहीं हुए। ऑपरेशन सिंदूर पर उनका विरोध नहीं किया। इसी तरह, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने टिप्पणी की, "रक्षा ढांचा अच्छा है, लेकिन क्या यह अमेरिकी साम्राज्यवाद का नया रूप नहीं? विपक्ष हमेशा चेताता रहा है कि विदेश नीति में संतुलन जरूरी है।"
विपक्ष के आरोपों के बीच, सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह समझौता भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान को मजबूत करेगा और इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में सहायक होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह साझेदारी भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में मजबूत स्थिति दिलाएगी, लेकिन रूस जैसे पारंपरिक साझेदारों के साथ संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा।