India US Relations: अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने न्यूयॉर्क में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात के बाद भारत को अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण बताया। लेकिन भारत के सामने तो एच-1बी वीजा फीस, ट्रेड डील और भारी टैरिफ जैसे मुद्दे हैं। इनमें कितनी सफलता मिलेगी।
न्यूयॉर्क में भारत के विदेश मंत्री ने यूएस के विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात की
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के सत्र के इतर न्यूयॉर्क में हुई दोनों की बैठक हुई। यह बैठक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) की नई फीस लगाने के फैसले के ठीक दो दिन बाद हुई। वीजा फीस पर भारत के आईटी सेक्टर में हलचल मचा हुई है। रूबियो ने बैठक के बाद कहा, "भारत अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण संबंध है।" उन्होंने व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और महत्वपूर्ण खनिजों जैसे क्षेत्रों में भारत की सक्रिय भागीदारी की सराहना की।
रूबियो ने कहा, "हम एक मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए क्वाड के माध्यम से साथ काम करना जारी रखेंगे।" यह बयान ऐसे समय आया है जब जुलाई-अगस्त में अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल खरीद के कारण 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाए थे, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया था। जयशंकर ने बैठक के बाद एक्स पर पोस्ट किया, "न्यूयॉर्क में मार्को रूबियो से मिलकर अच्छा लगा। हमारी बातचीत द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित रही। प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में प्रगति के लिए निरंतर संलग्नता की आवश्यकता पर सहमत हुए। हम संपर्क में रहेंगे।"
इस बैठक ने भारत-अमेरिका संबंधों में नई गर्मजोशी का संकेत दिया है। यह बैठक ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर की फीस और रूसी तेल खरीद के कारण 50 प्रतिशत टैरिफ के ठीक बाद हुई, जिसने भारतीय आईटी सेक्टर और निर्यातकों को झटका दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि क्वाड के माध्यम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में साझा हितों, खासकर चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी, इस मुलाकात को मजबूती दे सकती है।
जयशंकर-रुबियो मुलाकात में पॉजिटिव संकेत क्या है
ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ को कम करने या छूट देने की संभावना पर हालिया संकेत सकारात्मक हैं, लेकिन यह भारत अमेरिका ट्रेड डील के नतीजे पर निर्भर करेगा। ट्रंप ने दावा किया था कि भारत ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ को शून्य करने की पेशकश की है, जो द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई वाली वर्तमान वार्ताएं वाशिंगटन में चल रही हैं।
जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डिमन ने अनुमान लगाया है कि ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी जल्द ही समझौता कर लेंगे। हालांकि, रूसी तेल खरीद जारी रहने से टैरिफ पूरी तरह हटाना मुश्किल है, लेकिन एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत "संभावित टैरिफ समायोजन" के प्रावधान से कुछ क्षेत्रों जैसे कृषि और फार्मा में छूट मिल सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि यदि भारत रणनीतिक रूप से रूसी आयात कम करता है, तो ट्रंप टैरिफ में कमी या छूट दे सकते हैं, जो भारत के निर्यात को 70 प्रतिशत तक प्रभावित क्षेत्रों में राहत प्रदान करेगा।
भारत-अमेरिका समझौते की गुंजाइश कितनी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया कदमों जैसे एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर की फीस, रूसी तेल खरीद के कारण 50 प्रतिशत टैरिफ, और चाबहार पोर्ट पर प्रतिबंध लगाना आदि ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है। ये कदम ट्रंप की 'गुड कॉप-बैड कॉप' रणनीति के हिस्से लगते हैं, जहां व्यक्तिगत रूप से मोदी की तारीफ करते हुए आर्थिक दबाव बनाया जा रहा है। यह सब भारत को असंतुलित व्यापार समझौते (बीटीए) के लिए मजबूर करने के लिए किया जा रहा है।
आत्मनिर्भर भारत बनाम ट्रंप टैरिफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन दबावों के जवाब में आत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया है। 20 सितंबर को अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि "भारत का सबसे बड़ा दुश्मन विदेशों पर निर्भरता है," जो ट्रंप के फैसलों का अप्रत्यक्ष जवाब था। विपक्षी दलों ने मोदी को "कमजोर पीएम" करार दिया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी की रणनीतिक स्वायत्तता रूस के साथ संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका से साझेदारी झुकाव की गुंजाइश कम करती है। क्वाड और इंडो-पैसिफिक में साझा हितों के कारण ट्रंप भी पूर्ण टूट नहीं चाहते, लेकिन दबाव से समझौते की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
क्या मोदी सरेंडर कर सकते हैं
यदि कोई समझौता होता है, तो मोदी अमेरिकी हितों के कुछ हिस्सों में लचीलापन दिखा सकते हैं, लेकिन 'सरेंडर' की बजाय पारस्परिक लाभ पर जोर रहेगा। संभावित क्षेत्रों में रूसी तेल आयात में आंशिक कमी (यूक्रेन युद्ध के दबाव के कारण), कृषि और डेयरी बाजारों में अमेरिकी कंपनियों को सीमित पहुंच, और आईटी सेक्टर के लिए वीजा फीस में छूट की मांग शामिल हो सकती है।
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई वाली बातचीत में भारत ने पहले ही टैरिफ कम करने की पेशकश की है, बदले में अमेरिका से कृषि सब्सिडी और तकनीकी हस्तांतरण की मांग की है। लेकिन मोदी रूसी संबंधों या चाबहार जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट्स पर झुकाव से बचने की कोशिश करेंगे। क्योंकि ये भारत की ऊर्जा सुरक्षा और ईरान के साथ बैलेंस को प्रभावित करेंगे। कुल मिलाकर, कोई 'सरेंडर' नहीं, बल्कि सौदेबाजी होगी जो भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने वाले आर्थिक मॉडल को मजबूत रखे।