यूक्रेन में चल रहे संघर्ष ने न केवल प्रमुख विश्व शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक (जियो पॉलिटिक्स) मतभेदों को उजागर किया है, बल्कि विशेष रूप से दक्षिण एशिया से आर्थिक प्रवासियों के सामने आने वाली कमजोरियों को भी उजागर किया है। भारतीय नागरिकों को रूसी सेना में शामिल किए जाने की परेशान करने वाली प्रवृत्ति एक काले पक्ष को दर्शाती है, जहां भू-राजनीतिक रणनीतियां तमाम देशों में गरीबी और आर्थिक हताशा का फायदा उठाती हैं।
बढ़ते घरेलू दबाव और अंतरराष्ट्रीय जांच के बीच भारत सरकार ने बयान जारी कर अपने नागरिकों के बचाव और सुरक्षित वापसी की सुविधा देने का वादा किया। लेकिन इन आश्वासनों के बावजूद, ठोस कार्रवाइयों से नतीजे नहीं आये। प्रभावित लोगों के परिवार भारत सरकार की ओर से निर्णायक कार्रवाई की कमी के कारण निराशा की स्थिति में हैं।
भारत सरकार को रूस युद्ध में फंसे भारतीयों की अच्छी तरह से जानकारी है लेकिन इसके बावजूद इसराइल में भारतीय युवकों को जाने की अनुमति दी गई।
एक तरफ तो भारत सरकार इसराइल के लिए यात्रा सलाह (ट्रैफिक एडवाइजरी) जारी करती है कि वहां न जायें। लेकिन दूसरी तरफ अपने युवकों की इसराइल में भर्ती और बाद में गजा में तैनाती पर चुप रहती है। यह क्या है।आखिर इसराइल को भारत में आकर युवकों की भर्ती का रास्ता किसने बनाया। क्या भारत सरकार की मर्जी के बिना रूस और इसराइल भारत आकर बेरोजगार युवकों की भर्ती कर सकते हैं। भारत ने अपने बदतर बेरोजगारी के आंकड़ों को छिपाने या युवकों को चुप कराने के लिए यह मंजूरी दी। मोदी सरकार इसे स्वीकार करे।