लद्दाख प्रशासन ने लेह के फ्यांग गाँव में पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के संस्थान को 2018 में किए गए ज़मीन की लीज को रद्द कर दिया है। एक्टिविस्ट वांगचुक पिछले तीन वर्षों से लद्दाख में विरोध प्रदर्शनों का चेहरा रहे हैं और हाल ही में क्षेत्र के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर कारगिल में तीन दिवसीय भूख हड़ताल में शामिल हुए थे।
लद्दाख की स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) ने सोनम वांगचुक के प्रोजेक्ट HIAL को लेह के फ्यांग गांव में 2018 में करीब 135 एकड़ ज़मीन दी थी। ये ज़मीन 40 साल के लिए लीज़ पर दी गई थी, ताकि वहां एक यूनिवर्सिटी बनाई जा सके। लेकिन 21 अगस्त 2025 को, LAHDC के डिप्टी कमिश्नर रोमिल सिंह डोंक ने एक आदेश जारी किया, जिसमें इस ज़मीन का आवंटन रद्द कर दिया गया।
लद्दाख प्रशासन का कहना है कि इस ज़मीन का इस्तेमाल उस मकसद के लिए नहीं हुआ, जिसके लिए दी गई थी। अब तक यूनिवर्सिटी बनी ही नहीं, न ही लीज एग्रीमेंट साइन हुआ, और न ही तहसीलदार के ज़रिए ज़मीन का ट्रांसफर हुआ। आदेश में यह भी कहा गया कि 2019 में ही यह आवंटन खत्म हो गया था क्योंकि एक साल के भीतर ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी नहीं की गईं।
अब प्रशासन ने तहसीलदार को ज़मीन वापस लेने, कब्ज़ा हटाने और रिकॉर्ड अपडेट करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला है, या इसके पीछे कोई और कहानी है?
अगर आप सोनम वांगचुक के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि अभिनेता आमिर खान की फिल्म थ्री ईडियट्स तो आपने देखी ही होगी । थ्री ईडियट्स में आमिर खान का किरदार फुनसुक वांगडू,  सोनम वांगचुक से ही प्रेरित है । यहां तक कि वांगचुक को असल जीवन का वांगडू भी कहा जाता है ।
वांगचुक एक एक्टिविस्ट हैं। लद्दाख में वांगचुक के कामों की मिसाल दी जाती है। वांगचुक ने आइस स्टूपा बनाकर पानी की कमी को दूर करने का अनोखा तरीका निकाला, और SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh) जैसे प्रोजेक्ट्स के जरिए शिक्षा में क्रांति लाई।

लद्दाख को आदिवासी सूची में शामिल कराने के लिए सोनम की मुहिम

पिछले कुछ सालों से सोनम वांगचुक लगातार लद्दाख के लोगों के हक के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। 2019 में जब सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाकर लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया और केंद्र शासित प्रदेश बना दिया, तभी से सोनम और लद्दाख के लोग ये मांग कर रहे हैं कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। यानी लद्दाख को आदिवासी इलाका माना जाए, ताकि यहां के लोगों को जमीन, संस्कृति और पर्यावरण पर अपना हक मिल सके। इसके साथ ही कुछ लोग लद्दाख को पूरा राज्य बनाने की भी मांग कर रहे हैं, ताकि यहां के लोग अपने फैसले खुद ले सकें और दिल्ली पर पूरी तरह निर्भर न रहना पड़े।
2024 में सोनम वांगचुक ने लेह से दिल्ली तक पैदल मार्च किया, फिर 21 दिन तक सिर्फ नमक और पानी पर भूख हड़ताल की। हाल ही में उन्होंने करगिल में भी तीन दिन की भूख हड़ताल में हिस्सा लिया।

इस जमीन रद्द करने वाले फैसले के बाद लद्दाख में काफी हंगामा हो गया है। स्थानीय लोग और एक्टिविस्ट इसे गलत मान रहे हैं। लोगों का कहना है कि सोनम वांगचुक तो लद्दाख और पर्यावरण के लिए इतना अच्छा काम कर रहे हैं, तो बजाय उन्हें सपोर्ट करने के, सरकार ने उल्टा उनकी जमीन ही छीन ली। लोगों का मानना है कि प्रशासन को लीज़ की मियाद बढ़ानी चाहिए थी, न कि उसे रद्द करना चाहिए था।

असल में लद्दाख में जमीन और संसाधनों को लेकर पहले से ही तनाव चल रहा है। 2023 में लद्दाख प्रशासन ने एक नई इंडस्ट्रियल पॉलिसी लाई थी, जिसमें 70% जमीन छोटे बिज़नेस वालों के लिए और 30% बड़े-बड़े निवेशकों के लिए रखी गई थी। इस पॉलिसी से स्थानीय लोगों को डर लगने लगा कि कहीं बाहर के लोग आकर उनकी जमीन न हथिया लें। वहीं सोनम वांगचुक का HIAL प्रोजेक्ट लद्दाख के लिए एक अलग तरह की पढ़ाई और विकास का मॉडल लेकर आ रहा था, जो यहां की ज़रूरतों और संस्कृति के हिसाब से बना था। अब जब ऐसी यूनिवर्सिटी की जमीन ही छीन ली गई, तो लोग और भी नाराज़ हो रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि जो लोग लद्दाख के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं, उन्हें ही रोका जा रहा है।
ये पूरा मामला सिर्फ एक ज़मीन का नहीं है, बल्कि लद्दाख के लोगों की सालों पुरानी लड़ाई का हिस्सा है। लद्दाख के लोग अपनी जमीन, संस्कृति और पर्यावरण को बचाने के लिए लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। उनकी तीन बड़ी मांगे हैं। पहली – लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि वो अपने हिसाब से कानून बना सकें और अपनी ज़मीन और पहचान की हिफाज़त कर सकें। दूसरी – लद्दाख को पूरा राज्य बनाया जाए, क्योंकि अभी वहां कोई विधानसभा नहीं है, और लोग चाहते हैं कि उनकी अपनी चुनी हुई सरकार हो, जो उनके मुद्दे समझे और हल करे। तीसरी – रोजगार और संसाधनों की सुरक्षा। हाल ही में 95% सरकारी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित तो की गई हैं, लेकिन बाकी मांगें अब भी अधूरी हैं। ऐसे में जब सरकार सोनम वांगचुक जैसे सामाजिक कार्यकर्ता की ज़मीन ले ली तो लोगों में गुस्सा और बढ़ गया ।
लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) इन तीन मांगों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। 2023 में गृह मंत्रालय ने एक कमेटी बनाई थी, जिसका नेतृत्व नित्यानंद राय कर रहे थे, लेकिन 2024 में बातचीत बीच में ही टूट गई। फिर अक्टूबर 2024 में सोनम वांगचुक के अनशन के बाद बातचीत दोबारा शुरू हुई, लेकिन अब तक कोई ठोस फैसला नहीं निकला है। इस वजह से लोग अभी भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनकी आवाज़ सुनी जाएगी और उनके हक मिलेंगे।
सवाल ये है कि क्या लद्दाख की मांगें पूरी होंगी? क्या सोनम वांगचुक का HIAL फिर से इस प्रोजेक्ट को शुरू कर पाएगा? और सबसे बड़ा सवाल - क्या लद्दाख के लोग अपनी जमीन, संस्कृति, और पहचान की रक्षा कर पाएंगे?