Ladakh Sonam Wangchuk: लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत आदिवासी दर्जा देने की मांग 2019 से जारी है। तीन मंत्रालयों ने मंज़ूरी भी दी है। फिर भी, यह मुद्दा अनसुलझा है। 24 सितंबर के हिंसक विरोध प्रदर्शन और सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी से यह मुद्दा सामने आ गया।
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर पिछले साल जबरदस्त प्रदर्शन हुआ था।
लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्र का दर्जा देने की मांग वर्षों से चली आ रही है। 2019 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने गहन विचार-विमर्श के बाद केंद्र सरकार को सिफारिश की थी कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। आयोग ने गृह, जनजातीय कार्य एवं विधि एवं न्याय मंत्रालयों से परामर्श किया था, जहां तीनों मंत्रालयों ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी। हालांकि, छह साल बाद भी यह मांग अधर में लटकी हुई है, और हालिया हिंसक प्रदर्शनों और सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने इसे फिर से सुर्खियों में ला दिया है। सरकार समझ रही है कि सोनम की गिरफ्तारी के बाद यह मांग लद्दाख के लोग भूल जाएंगे, ऐसा नहीं है।
2019 का घटनाक्रम: मंजूरी से सिफारिश तक
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटने के कुछ ही सप्ताह बाद, एनसीएसटी ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग का खुद ही संज्ञान लिया। आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष और भाजपा नेता नंद कुमार साय की अध्यक्षता में 4 सितंबर 2019 को आयोजित बैठक में गृह, जनजातीय कार्य एवं विधि एवं न्याय मंत्रालयों के अधिकारियों ने सहमति जताई। आयोग ने स्पष्ट किया कि लद्दाख एक प्रमुख आदिवासी क्षेत्र है, जहां जनसंख्या का 97 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से संबंधित है।
लेह में 66.8% और करगिल में 83.49% आबादी आदिवासी हैं
11 सितंबर 2019 को एनसीएसटी ने अपनी सिफारिश जारी की: "गहन विचार-विमर्श के बाद, लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची के तहत लाया जाए।" आयोग ने तर्क दिया कि यह कदम स्थानीय कृषि एवं भूमि अधिकारों की रक्षा करेगा, लोकतांत्रिक शक्ति हस्तांतरण को बढ़ावा देगा, क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति को संरक्षित रखेगा तथा विकास के लिए धन वितरण को तेज करेगा। आयोग ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि लेह में 66.8 प्रतिशत, करगिल में 83.49 प्रतिशत तथा अन्य क्षेत्रों में 97 प्रतिशत तक की जनसंख्या आदिवासी है।2020 में लेह हिल काउंसिल चुनाव में बीजेपी ने इसका वादा किया था
हालांकि, दिसंबर 2019 में गृह मंत्रालय ने संसद को सूचित किया कि 1997 का लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद अधिनियम पहले से ही छठी अनुसूची के समान शक्तियां देता है। 2020 में लेह हिल काउंसिल चुनावों के दौरान भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में छठी अनुसूची की गारंटी का वादा किया था। लेकिन दिसंबर 2022 में गृह मंत्रालय ने संसदीय पैनल को जवाब देते हुए कहा, "आदिवासी आबादी को पांचवीं/छठी अनुसूची में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उनकी सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है, जो लद्दाख प्रशासन पहले से ही कर रहा है। विकास आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जा रहा है।"जून 2025 में नई नीतियां मोदी सरकार ने जारी कीं
इस साल जून में केंद्र सरकार ने लद्दाख के लिए नई नीतियां अधिसूचित कीं। जिनमें आरक्षण, डोमिसाइल, भाषा एवं हिल काउंसिल ढांचा शामिल हैं। लद्दाख आरक्षण (संशोधन) विनियम 2025 के तहत सरकारी नौकरियों एवं पेशेवर शैक्षणिक संस्थानों में 85 प्रतिशत आरक्षण एसटी समुदायों को दिया गया है। डोमिसाइल के लिए 15 वर्ष की स्थायी निवास शर्त लगाई गई, जबकि महिलाओं को हिल काउंसिलों में एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं। लद्दाख आधिकारिक भाषा विनियम 2025 में अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, भोटी एवं पर्गी को आधिकारिक भाषा घोषित किया गया, साथ ही शिना, ब्रोकस्काट, बाल्टी एवं लद्दाखी जैसी स्थानीय भाषाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया।सरकार की नई नीतियों से लद्दाखी जनजाति खुश नहीं हुई। इसे लद्दाखी सिविल सोसाइटी की मांगों राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिल किया जाना, स्थानीय नौकरियों में आरक्षण एवं लेह-करगिल के लिए अलग संसदीय सीटों का आंशिक समाधान बताया गया। जुलाई 2025 में सामाजिक एवं जनजातीय कल्याण विभाग ने राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव (सास-स्काई मिरिग्स) का आयोजन किया, जिसमें लद्दाख की आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा दिया गया। लेकिन उत्सव भी लद्दाखी लोगों को खुश नहीं कर सके। क्योंकि उन्हें उस अधिसूचना का इंतजार है, जिसमें लद्दाख-करगिल को छठी अनुसूची में शामिल करने की सूचना हो।
फिर भी, मांगें अनसुलझी हैं। 10 सितंबर 2025 को क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने अनशन शुरू किया, जो 24 सितंबर को लेह में हिंसक प्रदर्शन में बदल गया। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय पर हमला किया, पुलिस वाहनों को आग लगा दी तथा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई, कई घायल हुए। कर्फ्यू लगाया गया, 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया। गृह मंत्रालय ने वांगचुक पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया, जबकि उन्होंने इसे "सरकार की बलि का बकरा बनाने की रणनीति" बताया। सोनम वांगचुक को शुक्रवार 26 सितंबर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उन पर रासुका यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) तामील किया गया है।
बौद्ध बहुल लेह एवं मुस्लिम बहुल करगिल के राजनीतिक-धार्मिक समूहों ने पहली बार संयुक्त मंच लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) एवं करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए) के तहत इस आंदोलन को शुरू किया है। हालांकि भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसे "कांग्रेस प्रायोजित" करार दिया, जबकि प्रदर्शनकारी ज़ेन जी युवाओं के नेतृत्व में क्षेत्र की सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय सुरक्षा पर जोर दे रहे हैं। बीजेपी भूल कर रही है कि क्योंकि एलएबी और केडीए में एक भी नेता कांग्रेस से नहीं है। दोनों संगठन लद्दाख के अपने स्थानीय लोगों के हैं। स्थानीय स्तर पर उनमें से एक भी नेता की पहचान कांग्रेस नेता के रूप में नहीं है।
कई राज्यों को आदिवासी दर्जा क्यों मिला हुआ है
छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम जैसे आदिवासी क्षेत्रों के लिए स्वायत्त जिला एवं क्षेत्रीय परिषदें दे रही हैं। वो भूमि, वन एवं शासन पर स्थानीय नियंत्रण सुनिश्चित करती है। लद्दाख में 90 प्रतिशत से अधिक आबादी एसटी है, इसलिए यह दर्जा भूमि अधिकारों, बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षा एवं सांस्कृतिक संरक्षण के लिए आवश्यक माना जा रहा है। आलोचक कहते हैं कि जब से इसे केंद्र शासित बनाया गया है, नौकरशाही उस स्थिति को बदलने नहीं दे रही है। अब वहां के संसाधन नौकरशाही के अधीन है जबकि स्थानीय प्रतिनिधित्व का नामोनिशान मिट चुका है। लेह और करगिल के फैसले दिल्ली से हो रहे हैं।
केंद्र सरकार का रुख अब भी अस्पष्ट है। हालिया घटनाओं के बाद बातचीत की संभावना बनी हुई है, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है। लद्दाख की यह लड़ाई न केवल आदिवासी अधिकारों की है, बल्कि हिमालयी क्षेत्र की ईको सिस्टम एवं पहचान की रक्षा की भी है। आप दिल्ली से आदिवासी इलाकों की भावनाओं को डील नहीं कर सकते। चीन और पाकिस्तान की सीमा पर होने के कारण दोनों क्षेत्रों यानी लद्दाख और करगिल का खास महत्व है। अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में करगिल युद्ध हुआ था, उस युद्ध में करगिल के स्थानीय लोगों की भूमिका सेना आज तक याद करती है। बेहतर होगा कि मोदी सरकार लद्दाख और करगिल के लोगों के आंदोलन को हल्का न समझे। वहां के लोग बेहद शांतिप्रिय हैं और हिंसक आंदोलनों का कोई इतिहास वहां का कभी नहीं रहा है।