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सिर्फ संतुष्टि के लिए जमानत को चुनौती नहीं दे सकती सीबीआई: लालू

लालू यादव ने सोमवार को सीबीआई की उस याचिका का विरोध किया है जिसमें इसने जमानत रद्द करने की मांग की है। यह मामला चारा घोटाले से संबंधित डोरंडा कोषागार से जुड़ा है। पिछले साल 22 अप्रैल को झारखंड हाई कोर्ट ने इस मामले में लालू यादव को जमानत दे दी थी, लेकिन अब सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

लालू यादव को डोरंडा कोषागार से 139 करोड़ रुपये से अधिक के गबन के मामले में रांची की एक विशेष सीबीआई अदालत ने पांच साल जेल की सजा सुनाई और 60 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

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वैसे, राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख को झारखंड उच्च न्यायालय ने कम से कम चार मामलों में जमानत दे दी थी। चारा घोटाला- दुमका, चाईबासा, डोरंडा, देवगढ़ कोषागार से संबंधित है। 

कुल मिलाकर 900 करोड़ रुपये के कथित चारा घोटाला मामले में आयकर विभाग ने पाया था कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ने इसमें से 46 लाख रुपये लिए। लेकिन उस मामले से भी उच्चतम न्यायालय ने लालू प्रसाद को बरी कर दिया था। लेकिन सीबीआई ने लालू प्रसाद को अच्छे से रगड़ा। विशेष सीबीआई अदालत में मामला चला। चारा घोटाला मामले को एक यूनिट न मानकर अलग अलग मामलों में लालू प्रसाद को अलग अलग सजाएँ सुनाई गईं। इस वजह से लालू प्रसाद को अलग-अलग सज़ा भुगतने के आदेश दिए गए।

बहरहाल, जिस मामले में सीबीआई ने अब जमानत को चुनौती दी है उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में लालू यादव ने कहा है कि उनकी सजा को निलंबित करने के झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को सिर्फ इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि सीबीआई असंतुष्ट है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह सामान्य सिद्धांतों और समान नियमों पर आधारित है।
अपने जवाब में लालू यादव ने खराब स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए यह भी कहा है कि उन्हें हिरासत में रखने से कोई मकसद पूरा नहीं होगा।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ चारा घोटाले से संबंधित डोरंडा कोषागार मामले में झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा लालू यादव को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग वाली सीबीआई की याचिका पर 25 अगस्त को सुनवाई करेगी।

बता दें कि बिहार के चारा घोटाले की शुरुआत पशुपालन विभाग के छोटे स्तर के कर्मचारियों ने की थी, जिन्होंने कुछ फर्जी फंड ट्रांसफर दिखाए। उस समय बिहार और झारखंड अलग नहीं थे। मामला 1985 में पहली बार सामने आया था जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।

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लालू प्रसाद के शासनकाल में 1996 में राज्य के वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों और डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया था कि अतिरिक्त निकासी की जाँच करें। उसी समय डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा के पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा मारा था।

इस छापेमारी में बड़ी मात्रा में दस्तावेज़ मिले, जिसमें अवैध निकासी और अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच साठगाँठ का पता चला। कई जाँच कमेटियाँ बनीं। जब बीजेपी के  नेता सुशील कुमार मोदी ने अदालत का रुख किया तो पटना उच्च न्यायालय ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया।

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क़मर वहीद नक़वी
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