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विधानमंडल के पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए सिफारिश करने की शक्ति नहीं थी : सिब्बल

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन भी सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों का संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दूसरे दिन याचिकाकर्ताओं की तरफ से बहस में हिस्सा सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दी। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद  370 को छेड़ा नहीं जा सकता है। उनकी इस दलील पर में जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस अनुच्छेद का सेक्शन (सी) ऐसा नहीं कहता है। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि मैं आपको दिखा सकता हूं कि अनुच्छेद 370 स्थायी है। 

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर संविधान के मुताबिक विधानमंडल के पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए सिफारिश करने की शक्ति नहीं थी। उन्होंने आगे कहा, 'अगर आप सैद्धांतिक रूप से कहते हैं कि एक संसद खुद को संविधान सभा में बदल सकती है, तो हम कहां जाएं? मैं हमारे भविष्य को लेकर कहीं अधिक चिंतित हूं। 
सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की सीमाओं से संबंधित कोई भी विधेयक जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति को संविधान सभा से लेकर विधान सभा तक को निरस्त करने की सिफारिश करने के लिए अनुच्छेद 368 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था।  ऐसा इसलिए क्योंकि केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले में इसे स्पष्ट रूप से वर्जित किया गया है।
इससे पहले पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 की स्पष्ट शर्तें दर्शाती हैं कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक थी। इस प्रकार, संविधान सभा के विघटन के मद्देनजर जिसकी सिफारिश अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए आवश्यक थी , प्रावधान को रद्द नहीं किया जा सका।  
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अनुच्छेद 370 अब "अस्थायी प्रावधान" नहीं है

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक इससे पहले दो अगस्त को इस मामले में हुई सुनवाई में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें देते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 अब "अस्थायी प्रावधान" नहीं है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद इसने स्थायित्व ग्रहण कर लिया है। 

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 2 अगस्त को सवाल उठाया था कि क्या जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय घोषित करने की राष्ट्रपति की शक्ति पूर्ववर्ती राज्य की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी जारी नहीं रहेगी।  

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असंवैधानिक प्रक्रिया से पूरा ढांचा बदल दिया गया

एनडीटीवी इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले पर हुई सुनवाई के पहले दिन 2 अगस्त को सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने  कहा था कि हम यहां इस आधार पर खड़े हैं कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद है, निर्विवाद था और सदैव निर्विवाद रहेगा। इसके बावजूद एक असंवैधानिक प्रक्रिया से पूरा का पूरा ढांचा ही बदल दिया गया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पूछा कि  क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को इस तरह से चुप कराया जा सकता है? पिछले पांच वर्षों से जम्मू-कश्मीर में कोई प्रतिनिधि लोकतंत्र नहीं है। 

उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र को बहाल करने की आड़ में हमने लोकतंत्र को ही नष्ट कर दिया है। एनडीटीवी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कपिल सिब्बल ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर राज्य ऐतिहासिक रूप से संघ में एकीकृत रियासतों के विपरीत एक अद्वितीय संबंध का प्रतिनिधित्व करता है। राज्यपाल ने जून 2018 से जम्मू-कश्मीर विधानसभा को निलंबित रखा है। संविधान सभा का अभ्यास राजनीतिक अभ्यास है। 

उन्होंने दलील दी थी कि भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना एक राजनीतिक अभ्यास है। एक बार मसौदा तैयार हो जाने के बाद, देश के सभी संस्थान संविधान द्वारा शासित होते हैं। उन्होंने कहा कि संसद कभी भी खुद को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं कर सकती है। संसद  प्रस्ताव द्वारा यह भी नहीं कह सकती कि हम संविधान सभा हैं। संविधान सभा का कामकाज एक राजनीतिक अभ्यास है, न कि कानूनी अभ्यास। संविधान अपने आप में एक राजनीतिक दस्तावेज है। 

उन्होंने सवाल किया था कि आखिर कानून के किस प्रावधान के तहत विधायिका को खत्म किया गया। भारतीय संसद स्वयं को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित नहीं कर सकती है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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