इस विधेयक को केंद्रीय खेल और युवा मामलों के मंत्री मनसुख मांडविया ने पेश किया। उन्होंने इसे स्वतंत्रता के बाद खेल क्षेत्र में सबसे बड़ा सुधार करार दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक भारत को 2036 ओलंपिक की मेजबानी के लिए तैयार करने और खेल क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा विकसित करने की दिशा में एक अहम कदम है।
राष्ट्रीय खेल बोर्ड : विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है, जो राष्ट्रीय खेल महासंघों को मान्यता देगा और उनके संबद्ध इकाइयों का पंजीकरण करेगा। यह बोर्ड उन खेल निकायों को मान्यता रद्द करने का अधिकार रखेगा, जो कार्यकारी समिति के लिए चुनाव आयोजित करने में विफल रहते हैं या जिनके चुनाव प्रक्रिया में घोर अनियमितताएं पाई जाती हैं।
राष्ट्रीय खेल मध्यस्थता: विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल मध्यस्थता की स्थापना प्रस्तावित है, जो सिविल कोर्ट की शक्तियों के साथ चयन और चुनाव से संबंधित विवादों का समाधान करेगा। इस ट्रिब्यूनल के फैसलों को केवल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व: प्रत्येक राष्ट्रीय खेल महासंघ, राष्ट्रीय ओलंपिक समिति और राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति को एथलीट समितियां स्थापित करनी होंगी, ताकि खिलाड़ियों को अपनी बात रखने और नीति निर्माण में योगदान देने का मंच मिले। प्रत्येक कार्यकारी समिति में कम से कम दो उत्कृष्ट खिलाड़ी और चार महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य होगा।
आयु और कार्यकाल सीमा में छूट: विधेयक में खेल प्रशासकों की आयु सीमा को 70 से बढ़ाकर 75 वर्ष करने का प्रावधान है, ताकि अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों में भारतीय प्रशासकों की वरिष्ठता सुनिश्चित हो। यह राष्ट्रीय खेल संहिता से अलग है, जिसमें आयु सीमा 70 वर्ष थी।
RTI विवाद : शुरू में विधेयक में सभी मान्यता प्राप्त खेल निकायों को सूचना का अधिकार यानी RTI अधिनियम के दायरे में लाने का प्रावधान था। हालांकि, बीसीसीआई ने इसका विरोध किया, क्योंकि वह सरकारी फंडिंग पर निर्भर नहीं है।