सदन में जब विपक्ष नहीं हो तो बहस से बचते हुए विवादास्पद विधेयकों को पारित कराने का रास्ता सबसे आसान है! सरकार ने सोमवार को कुछ ऐसा ही किया। सरकार ने विपक्ष के भारी हंगामे के बीच विवादास्पद राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2025 और राष्ट्रीय डोपिंग रोधी (संशोधन) विधेयक 2025 को ध्वनि मत से पास करा लिया। ये विधेयक खेल प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और वैश्विक मानकों के अनुरूप सुधार लाने के उद्देश्य से लाए गए हैं, लेकिन विपक्ष ने इन विधेयकों को संसदीय समिति को भेजे जाने की मांग की थी। सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया। सरकार द्वारा पेश इन विधेयकों को लेकर ख़ूब विवाद हो रहा है और यही वजह है कि विपक्ष इन दोनों विधेयकों को संसद में बहस से पहले समिति के पास भेजने पर अड़ा था।

विधेयकों के पारित होने के समय अधिकांश विपक्षी सांसद सदन में मौजूद नहीं थे, क्योंकि वे बिहार में मतदाता सूची संशोधन और कथित वोटर डेटा हेरफेर के विरोध में चुनाव आयोग कार्यालय की ओर मार्च कर रहे थे। सदन में सोमवार को विपक्ष का हंगामा बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर और कथित मतदाता डेटा हेरफेर के मुद्दे पर था, जिसके विरोध में वे चुनाव आयोग कार्यालय की ओर मार्च कर रहे थे
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राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2025 में क्या है?

इस विधेयक को केंद्रीय खेल और युवा मामलों के मंत्री मनसुख मांडविया ने पेश किया। उन्होंने इसे स्वतंत्रता के बाद खेल क्षेत्र में सबसे बड़ा सुधार करार दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक भारत को 2036 ओलंपिक की मेजबानी के लिए तैयार करने और खेल क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा विकसित करने की दिशा में एक अहम कदम है।

राष्ट्रीय खेल बोर्ड : विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है, जो राष्ट्रीय खेल महासंघों को मान्यता देगा और उनके संबद्ध इकाइयों का पंजीकरण करेगा। यह बोर्ड उन खेल निकायों को मान्यता रद्द करने का अधिकार रखेगा, जो कार्यकारी समिति के लिए चुनाव आयोजित करने में विफल रहते हैं या जिनके चुनाव प्रक्रिया में घोर अनियमितताएं पाई जाती हैं।

राष्ट्रीय खेल मध्यस्थता: विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल मध्यस्थता की स्थापना प्रस्तावित है, जो सिविल कोर्ट की शक्तियों के साथ चयन और चुनाव से संबंधित विवादों का समाधान करेगा। इस ट्रिब्यूनल के फैसलों को केवल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।

खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व: प्रत्येक राष्ट्रीय खेल महासंघ, राष्ट्रीय ओलंपिक समिति और राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति को एथलीट समितियां स्थापित करनी होंगी, ताकि खिलाड़ियों को अपनी बात रखने और नीति निर्माण में योगदान देने का मंच मिले। प्रत्येक कार्यकारी समिति में कम से कम दो उत्कृष्ट खिलाड़ी और चार महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य होगा।

आयु और कार्यकाल सीमा में छूट: विधेयक में खेल प्रशासकों की आयु सीमा को 70 से बढ़ाकर 75 वर्ष करने का प्रावधान है, ताकि अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों में भारतीय प्रशासकों की वरिष्ठता सुनिश्चित हो। यह राष्ट्रीय खेल संहिता से अलग है, जिसमें आयु सीमा 70 वर्ष थी।

RTI विवाद : शुरू में विधेयक में सभी मान्यता प्राप्त खेल निकायों को सूचना का अधिकार यानी RTI अधिनियम के दायरे में लाने का प्रावधान था। हालांकि, बीसीसीआई ने इसका विरोध किया, क्योंकि वह सरकारी फंडिंग पर निर्भर नहीं है। 

सरकार ने संशोधन के ज़रिए केवल सरकारी फंडिंग या सहायता लेने वाले निकायों को RTI के दायरे में रखा, जिससे बीसीसीआई को राहत मिली।

मांडविया ने कहा, 'यह विधेयक खेल महासंघों में पारदर्शिता और व्यावसायिकता को बढ़ाएगा, महिलाओं को अधिक अवसर देगा और हमारे खिलाड़ियों के साथ न्याय सुनिश्चित करेगा।' उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत का 65% युवा जनसंख्या (35 वर्ष से कम) खेलों में प्रशिक्षण और प्रोत्साहन के साथ वैश्विक मंच पर देश को शीर्ष 10 और 2047 तक शीर्ष 5 में ले जा सकती है। 

राष्ट्रीय डोपिंग रोधी (संशोधन) विधेयक 2025

यह विधेयक राष्ट्रीय डोपिंग रोधी अधिनियम 2022 में संशोधन करता है, जो यूनेस्को के डोपिंग रोधी सम्मेलन को लागू करता है। इसका उद्देश्य विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी यानी WADA के मानकों के अनुरूप भारत के डोपिंग रोधी नियमों को मजबूत करना है। 

NADA की स्वायत्तता: WADA ने 2022 के अधिनियम में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी बोर्ड को सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखा था, जो राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी यानी NADA की निगरानी और निर्देश देने का अधिकार रखता था। संशोधित विधेयक में इस बोर्ड की सलाहकार भूमिका और NADA की निगरानी के अधिकार को हटा दिया गया है। 

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विपक्ष का हंगामा और आलोचना

विधेयकों के पारित होने के समय अधिकांश विपक्षी सांसद सदन में मौजूद नहीं थे, क्योंकि वे बिहार में मतदाता सूची संशोधन और कथित वोटर डेटा हेरफेर के विरोध में चुनाव आयोग की ओर मार्च कर रहे थे। जब दो सांसदों ने विधेयकों के समर्थन में बोलना शुरू किया, तो विपक्षी सदस्य सदन में लौटे और नारेबाजी शुरू कर दी। इसके बावजूद सभापति संध्या राय ने दोनों विधेयकों को ध्वनि मत से पारित कर दिया। इसके बाद सदन को 4 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया। 

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने विधेयकों के पारित होने को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है। उन्होंने खेल को राज्य सूची का विषय बताते हुए केंद्र की विधायी क्षमता पर सवाल उठाया। तिवारी ने कहा, 'खेल सातवीं अनुसूची की सूची II, प्रविष्टि 33 के तहत आता है, इसलिए केंद्र को इस पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है।' संसदीय खेल समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से अनुरोध किया था कि विधेयक को विस्तृत जांच के लिए समिति को भेजा जाए, लेकिन इस अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया गया। 
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सरकार का नज़रिया

मांडविया ने कहा कि ये विधेयक 2036 ओलंपिक की मेजबानी की दिशा में भारत को तैयार करने के लिए अहम हैं। उन्होंने 1975, 1985 और 2011 में खेल प्रशासन सुधारों के असफल प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि खेल को राजनीति से मुक्त करने और खिलाड़ियों के हित में सुधार लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में खेल क्षेत्र में सुधार शुरू हुए हैं और यह विधेयक उसी दिशा में एक कदम है।'

विवाद की वजहें क्या 

  • संवैधानिक वैधता: विपक्ष का कहना है कि खेल राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र का इस पर कानून बनाना असंवैधानिक है।
  • विपक्ष की अनुपस्थिति: विधेयकों को विपक्ष के हंगामे और अनुपस्थिति में जल्दबाजी में पारित करने की आलोचना।
  • स्वायत्तता पर चिंता: राष्ट्रीय खेल बोर्ड के व्यापक अधिकारों से खेल महासंघों की स्वायत्तता पर सवाल उठ रहे हैं। यह अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति आईओसी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो सकता है।
  • RTI और बीसीसीआई: बीसीसीआई को RTI से छूट देने का निर्णय कुछ हितधारकों द्वारा विवादास्पद माना गया।
  • कार्यकाल सीमा: बिल में खेल प्रशासकों की आयु सीमा को 70 से बढ़ाकर 75 वर्ष करने को कुछ लोग सत्ता के दुरुपयोग और संस्थागत कब्जे की संभावना के रूप में देखते हैं।
  • केंद्र सरकार का नियंत्रण: बिल में केंद्र सरकार को कुछ प्रावधानों से छूट देने या नियम बनाने की शक्ति दी गई है, जिसे आलोचकों ने अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखा।

विधेयकों पर अब क्या होगा

ये विधेयक अब राज्यसभा में विचार के लिए जाएंगे, जहां इन पर और चर्चा और संशोधन की संभावना है। सरकार का दावा है कि ये सुधार भारत को वैश्विक खेल मंच पर मजबूत करेंगे, लेकिन विपक्ष और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बिना व्यापक चर्चा और संशोधन के ये विधेयक खेल निकायों की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकते हैं।