मालेगाँव बम विस्फोट मामले में आरोपियों के बरी किए जाने की बड़ी वजह क्या है? जानिए, सुप्रीम कोर्ट व बॉम्बे हाईकोर्ट के पहले के फ़ैसले से क्या उठते रहे थे।
मालेगाँव बम विस्फोट में आरोपियों के बरी होने की वजह क्या ATS, NIA की विरोधाभासी जाँच, गवाहों के बयानों में खामियाँ हैं? एनआईए कोर्ट ने गुरुवार को सबूत की कमी को कारण बताया है, लेकिन फ़ैसले की पूरी डिटेल अभी नहीं आई है। जानिए, सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले क्या सवाल उठाए थे?
सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट की पहले की टिप्पणियों को जानने से पहले यह जान लें कि एनआईए अदालत ने क्या फ़ैसला दिया है। 2008 के मालेगाँव बम विस्फोट मामले में विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए कोर्ट ने गुरुवार को पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित सात आरोपियों को बरी कर दिया। यह फ़ैसला 17 साल बाद आया है, जब 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगाँव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक से हुए धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भिखु चौक पर एक मोटरसाइकिल पर रखा गया विस्फोटक उपकरण फट गया था। इससे छह लोगों की जान चली गई और 100 से अधिक लोग घायल हुए। इस हमले की जाँच शुरू में महाराष्ट्र एटीएस ने की थी। इसके प्रमुख हेमंत करकरे थे। एटीएस ने जाँच के दौरान मोटरसाइकिल को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से जोड़ा और अक्टूबर 2008 में उनकी गिरफ्तारी की। इसके बाद पुणे, नासिक, इंदौर और भोपाल में छापेमारी के बाद लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय और अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया। एटीएस ने दावा किया कि यह हमला हिंदू राष्ट्रवादी संगठन 'अभिनव भारत' से जुड़ा था, जिसे कथित तौर पर पुरोहित ने 2007 में स्थापित किया था। 2011 में इस मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई। एनआईए ने 2016 में अपनी पूरक चार्जशीट दाखिल की।
ATS और NIA की जांच में विरोधाभास
सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट ने एटीएस और एनआईए की जांच में कई खामियों को उजागर किया। 2017 में प्रज्ञा ठाकुर को जमानत देते समय बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि गवाहों के बयानों में दो विरोधाभासी वर्जन थे, और कुछ गवाहों ने अपने बयानों को वापस लेते हुए एटीएस पर यातना देने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में कोई ठोस सबूत नहीं था कि प्रज्ञा के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही थे।
हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि प्रज्ञा के खिलाफ कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली थी और उन्हें जमानत का लाभ दिया जा सकता है, भले ही एटीएस ने उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हों।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
इसी तरह अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पुरोहित को जमानत देते समय एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में विरोधाभास की ओर इशारा किया। कोर्ट ने कहा कि इन विरोधाभासों को मुक़दमे के दौरान जांचा जाना चाहिए। पुरोहित ने दावा किया कि वह एक सैन्य खुफिया अधिकारी के रूप में अपनी ड्यूटी कर रहे थे और अभिनव भारत से जुड़ी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस दावे को स्वीकार किया कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताया था।
एनआईए ने अपनी 2016 की चार्जशीट में एटीएस पर आरडीएक्स को पुरोहित के खिलाफ फर्जी तरीके से प्लांट करने का आरोप लगाया। इसके अलावा एनआईए ने कहा कि एटीएस ने गवाहों से जबरन बयान लिए थे। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियन ने दावा किया था कि 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद उन पर एनआईए से नरम रुख अपनाने का दबाव डाला गया था।
मुकदमे के दौरान 323 गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 34 गवाह अपने बयानों से मुकर गए। इससे अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हो गया। कुछ गवाहों ने दावा किया कि एटीएस ने उन्हें यातना देकर साध्वी प्रज्ञा, पुरोहित और अन्य लोगों के नाम लेने के लिए मजबूर किया था। विशेष एनआईए कोर्ट के जज एके लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि बम मोटरसाइकिल पर लगाया गया था और न ही यह साबित हो सका कि मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरोहित के पास आरडीएक्स होने या इसे कश्मीर से लाने का कोई सबूत नहीं मिला।
कोर्ट की टिप्पणियां
बॉम्बे हाईकोर्ट : 2017 में प्रज्ञा ठाकुर को जमानत देते समय कोर्ट ने कहा था कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास थे और एटीएस की जांच में यातना के आरोप सामने आए थे। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि प्रज्ञा के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही थे।
सुप्रीम कोर्ट: 2017 में पुरोहित को जमानत देते समय सुप्रीम कोर्ट ने एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में "महत्वपूर्ण विरोधाभास" को रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा कि पुरोहित ने एक सैन्य खुफिया अधिकारी के रूप में अपनी ड्यूटी निभाई और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अभिनव भारत के बारे में सूचित किया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट: कोर्ट ने 2022 में एनआईए की धीमी जांच पर चिंता जताई और कहा कि हर सुनवाई में केवल एक गवाह को बुलाने से कोर्ट के समय की बर्बादी हो रही थी। कोर्ट ने विशेष एनआईए कोर्ट को हर 15 दिन में प्रगति रिपोर्ट जमा करने और अधिक गवाहों की जांच करने का निर्देश दिया।
विशेष एनआईए कोर्ट के जज एके लाहोटी ने 31 जुलाई 2025 को अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि बम मोटरसाइकिल पर लगाया गया था और न ही यह साबित हो सका कि मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई सबूत नहीं था कि पुरोहित ने आरडीएक्स जुटाया या इसे कश्मीर से लाया। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अपराध स्थल से कोई फिंगरप्रिंट या डीएनए सबूत नहीं जुटाए गए, और फोरेंसिक साक्ष्य ख़राब हो गए थे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं करता। सभी सात आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
एनआईए ने कहा है कि वह विस्तृत फैसले की प्रति का विश्लेषण करने के बाद अपील करने पर निर्णय लेगी। इस मामले ने जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता, गवाहों के बयानों की सत्यता और आतंकवाद के मामलों में सबूतों के महत्व पर सवाल उठाए हैं।