कृषि क़ानूनों पर आर-पार की लड़ाई का एलान कर चुके किसानों को किस तरह समझाया जाए, इसे लेकर बीजेपी आलाकमान और मोदी सरकार लगातार माथापच्ची कर रहे हैं। मोदी सरकार और बीजेपी संगठन सोशल मीडिया से सड़क तक नए कृषि क़ानूनों को किसानों के हित में बता रहे हैं लेकिन पंजाब-हरियाणा के साथ ही देश भर के किसान इन्हें डेथ वारंट बता रहे हैं।
बॉर्डर पर अड़ गए किसान
अध्यादेश आने के बाद से ही क़ानून बनाने पर अड़ी मोदी सरकार को लगा था कि किसानों का छिटपुट विरोध लंबा नहीं चलेगा। लेकिन जब 26 नवंबर को पंजाब से हज़ारों किसान दिल्ली के लिए निकले तो हरियाणा की बीजेपी सरकार ने उन्हें रोकने के लिए पूरी ताक़त लगा दी। लेकिन ट्रैक्टर ट्रालियों में भरकर आए किसानों ने सारे इंतजामों को हवा में उड़ा दिया और दिल्ली-हरियाणा के टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर आकर जमे हुए हैं।
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ताबड़तोड़ बैठकें
इसके बाद से ही मोदी सरकार और बीजेपी की ओर से लगातार बैठकें की जा रही हैं और आगे क्या रणनीति अपनाई जाए, इसे लेकर चर्चा हो रही है। बुधवार सुबह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर सरकार के मंत्री फिर से जुटे। इस बैठक में शाह के अलावा, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद रहे। इसमें फिर से किसान आंदोलन को लेकर चर्चा हुई।
मंगलवार को भी ऐसी ही बैठक हुई थी। इसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल रहे थे और उससे पहले सोमवार को हुई बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हुए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूरी पार्टी इस वक़्त किसान आंदोलन के कारण चिंता में है क्योंकि वह बिहार की जीत के बाद बंगाल और कुछ चुनावी राज्यों में जीत की रणनीति बनाने की तैयारी कर रही थी।
बीजेपी सांसदों ने मानी गड़बड़
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने हरियाणा के बीजेपी सांसदों से कृषि क़ानूनों को लेकर बातचीत की तो इसमें कई बीजेपी सांसदों ने माना कि किसानों के ख़िलाफ़ सरकार ने जिस तरह ताक़त का इस्तेमाल किया वह ग़लत था। कुछ सांसदों ने यह भी माना कि मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों में गड़बड़ है। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि बीजेपी किसानों को इन क़ानूनों के फ़ायदे बताने में असफल रही।मुश्किलों से घिरी मोदी सरकार और बीजेपी को अपने सहयोगियों की चेतावनी भी सुननी पड़ रही है। हरियाणा और राजस्थान में उसके दो सहयोगी- जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने उसे कृषि क़ानूनों को लेकर चेताया है।
किसानों की नाराज़गी से होने वाले सियासी ख़तरे को भांपते हुए ही जेजेपी संस्थापक अजय चौटाला सामने आए हैं। चौटाला ने कहा, ‘सरकार से कहा गया है कि इस मसले का जल्द से जल्द हल निकाला जाए।’ जेजेपी संस्थापक ने कहा, ‘जब सरकार बार-बार कह रही है कि एमएसपी को जारी रखेंगे तो उसको लिखने में क्या दिक्क़त है।’ उन्होंने कहा कि अन्नदाता परेशान है और सड़कों पर है, ऐसे में किसानों को जल्द राहत दी जानी चाहिए।
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हनुमान बेनीवाल की चेतावनी
जेजेपी के बीच ही आरएलपी के नेता और राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल की वजह से भी बीजेपी परेशान है। बेनीवाल ने 30 नवंबर को गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा है कि इन तीनों नए कृषि क़ानूनों को तुरंत वापस लिया जाए वरना उनकी पार्टी एनडीए में बने रहने पर पुनर्विचार करेगी।इससे पहले शिरोमणि अकाली दल बीजेपी का साथ छोड़ चुकी है।सुनिए, देवेंद्र शर्मा से खास बातचीत-
खालिस्तानी कहने से लोग नाराज
बीजेपी को किसान आंदोलन के कारण राजनीतिक नुक़सान का भी डर सता रहा है। पंजाब और हरियाणा में बड़ी संख्या में किसानों की आबादी है। ये दोनों राज्य देश की बड़ी आबादी का पेट भरते हैं। किसानों पर हुए ज़ुल्म के बाद सोशल मीडिया पर आम लोगों में भी जबरदस्त नाराजगी है। किसानों को खालिस्तानी, देशद्रोही बताने पर भी आम लोग भड़क गए हैं। उन्होंने कहा है कि बीजेपी नेताओं को किसानों की आलोचना का हक़ है लेकिन मोदी की हुक़ूमत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर उन्हें खालिस्तानी बता देना अन्नदाता का घोर अपमान है।ऐसे में जब किसानों का आंदोलन लगातार जोर पकड़ रहा है तो मोदी सरकार और बीजेपी की चिंता भी बढ़ती जा रही है। इस आंदोलन के जल्द ख़त्म होने की संभावना इसलिए नहीं दिखती क्योंकि किसान और मरकज़ी सरकार अपने-अपने स्टैंड से टस से मस होने के लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि दोनों के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है, जो एक अच्छा संकेत है।
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