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(फ़ाइल फ़ोटो)

एक हिंदू देश का, हिंदू नेता मोदी के रहते भारत से नाराज़ होना

भारत नेपाल सीमा पर तनाव है। स्वतंत्रता के बाद शायद पहली बार ऐसा हो रहा है। नेपाल की संसद ने संविधान संशोधन कर एक नक्शा पारित कर दिया, जिसमें भारत के कुछ क्षेत्र शामिल कर लिए गए। नेपाल की सीमा से सटे बिहार की सीमा पर नेपाल आर्मी की कथित फ़ायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत और चीन की सीमा पर तनातनी है और कोरोना काल में सैन्य टकराव नागरिकों की चिंता बढ़ा रहा है।

नेपाल को भारत का विश्वसनीय सहयोगी माना जाता रहा है। भारत नेपाल सीमा 1751 किलोमीटर लंबी है। यह स्थलीय सीमा है और अब तक पूरी तरह से खुली हुई है। कुछ प्रमुख सड़कों पर सीमा शुल्क विभाग और पुलिस की तैनाती के अलावा कहीं कोई बैरिकेडिंग नहीं है। दोनों देशों के बीच नागरिकों की आवाजाही आम है। वैवाहिक रिश्ते हैं और सीमावर्ती इलाक़ों में अनेक परिवार ऐसे हैं जिनके भारत और नेपाल दोनों देशों में ज़मीनें हैं।

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ऐसे में नेपाल का रुख भारत को चकित करने वाला है। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पिछले 6 साल के कार्यकाल को देखें तो इसमें चौंकाने वाली कोई बात नज़र नहीं आती है। भारत और नेपाल के बीच कटुता की कहानी पहाड़ी देश में आए भूकंप से शुरू होकर सीमा पर फ़ायरिंग तक पहुँची है। दोनों सरकारों ने इस बीच स्थिति बेहतर करने की कुछ कवायदें भी कीं, लेकिन संभवतः कोशिशें नाकामयाब रहीं, और आज हम यह स्थिति देख रहे हैं।

25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.8 तीव्रता वाला विनाशकारी भूकंप आया, इसमें क़रीब 9,000 लोग मारे गए और 22,000 लोग घायल हुए थे। राजधानी काठमांडू से क़रीब 81 किलोमीटर दूर केंद्र वाले इस भूकंप ने नेपाल की राजधानी सहित बड़े इलाक़े में व्यापक तबाही मचाई. भूकंप से देश के 75 में से 30 ज़िले प्रभावित हुए। भूकंप में पूरी दुनिया की सहानुभूति नेपाल पर थी। भारत ने भी मदद की। उस समय भारत में नरेंद्र मोदी सरकार नयी-नयी आई थी। भारतीय चैनलों द्वारा नयी सरकार और ख़ासकर प्रधानमंत्री के महिमामंडन का दौर चल रहा था। मीडिया में यह दिखाया जा रहा था कि नेपाल तबाह हो गया है और मोदी सरकार उसके उद्धारक के रूप में सामने आई है। वहीं दूरस्थ इलाक़े के नेपाल के लोग हर तरह से तबाह थे और तमाम इलाक़ों में प्रशासन सहायता पहुँचाने में सक्षम साबित नहीं हो रहा था।

ऐसे में नेपाल के लोगों को यह रवैया बहुत अजीब लगा और ट्विटर पर तमाम आरोप लगाए गए कि भारत सरकार मीडिया के माध्यम से इस आपदा में पब्लिक रिलेशन की कवायद कर रही है। नेपाल के लोगों ने ‘गो होम इंडियन मीडिया’ हैशटैग के साथ भारतीय मीडिया का विरोध किया।

नेपाल के लोगों के मन में भारत की नयी सरकार को लेकर ग़ुस्सा था। इसी बीच सितंबर 2015 में नेपाल के मधेशी संगठनों ने आंदोलन चलाया। उन्होंने आरोप लगाए कि नए संविधान में उनके अधिकारों व आकांक्षाओं का ध्यान नहीं रखा गया। मधेशी उत्तर प्रदेश और बिहार के तराई इलाक़ों से सटे लोगों के ज़्यादा निकट हैं, जिनके आपस में वैवाहिक संबंध हैं। इनके नेताओं से भारत के संबंधों को काठमांडू में संदेह की नज़र से देखा जाता है और यह माना जाता है कि भारत के लोग इनके माध्यम से नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप करते हैं। नेपाल के नए संविधान के विरोध में मधेशियों ने सड़क रोक दी। नेपाल में यह सामान्य धारणा मानी गई कि मधेशियों का समर्थन करने के लिए भारत ने सड़क ब्लॉक का बहाना कर आपूर्ति ठप की है।

कुछ ही महीने पहले भूकंप झेल चुके नेपाल ने इस ‘मानव सृजित त्रासदी’ से नए सिरे से तबाही देखी। राज्य में पेट्रोल, रसोई गैस, दवाओं का अकाल हो गया। ग़रीबों पर सबसे ज़्यादा मार पड़ी। नेपाल के पूर्व वित्तमंत्री प्रकाश चंद्र लोहनी ने बीबीसी से कहा, ‘भारत को लगा था कि कि 10-15 दिन में नेपाल घुटने टेक देगा। लेकिन यह बात ग़लत साबित हुई। इस कारण हमें चीन की ओर देखना पड़ा। चीन पिछले 10 साल से ट्रांजिट ट्रीटी के लिए ज़ोर दे रहा था लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। भारत ने हमें फ़ोर्स किया कि सिर्फ़ भारत पर निर्भर रहना ख़तरनाक है। दो-तीन साल में चीन की ट्रेन नेपाल की सीमा में पहुँच जाएगी।’

इस बीच भारत ने नवम्बर 2016 में नोटबन्दी की घोषणा कर दी। नेपाल और भूटान दो ऐसे पड़ोसी मुल्क हैं जहाँ भारतीय मुद्रा बड़े पैमाने पर चलती है। अप्रैल 2018 तक के आँकड़ों के मुताबिक़ नेपाल में क़रीब 950 करोड़ रुपये अमान्य भारतीय मुद्रा थी। 

नेपाल के प्रधानमंत्री ने कई बार इस मसले को उठाया कि भारत की नोटबन्दी के कारण उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो रही है। दोनों देशों के केंद्रीय बैंकों के अधिकारियों के बीच भी चर्चा हुई। इसका कोई नतीजा नहीं निकला। नेपाल राष्ट्र बैंक ने आख़िरकार भारत के 2000, 500 और 200 रुपये के नए नोट पर प्रतिबंध लगा दिया।

नेपाल के ब्लॉकेड के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की योजना बनाई। उनकी यात्रा के पहले यह भी भूमिका बनाई गई कि भारत का कोई भी प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल में 3 बार नेपाल नहीं आया है। लेकिन नेपाली लोग भारत के दलितों व पिछड़ों की तरह साबित नहीं हुए। भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा के ख़िलाफ़ #BlockadeWasCrimeMrModi #ModiIsCriminal #ModiSaySorryForBlockade  जैसे हैशटैग से ट्विटर पर अभियान चलाया गया। लोगों ने लिखा, ‘छह महीने तक तेल, खाद्य सामान, दवाओं की कमी। दर्द अभी ताज़ा है मिस्टर मोदी।’

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यह वह दौर था, जब चीन बड़े पैमाने पर नेपाल की मदद कर रहा था। अमेरिकी एजेंसियाँ भी सक्रिय थीं और बड़ी शांति से पहाड़ी राज्य की सहायता में हाथ बढ़ाए हुए थीं। प्रधानमंत्री ने नेपाल की यात्रा की और उन्होंने अपने परंपरागत तरीक़े से नेपाली में भाषण देने की कवायद की। वहाँ पर उन्होंने बहुत भावनात्मक भाषण दिया।

इन सबके बावजूद भारत और नेपाल के बीच दूरियाँ बनी रहीं और भारत नेपाल संबंध पहले जैसा नहीं रहा। अब जब चीन ने भारत की सीमा पर सैनिक तैनात कर दिए हैं और माना जा रहा है कि भारत के एक बड़े भूभाग पर चीन ने कब्जा जमा लिया है और वह हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, भारत का सबसे विश्वसनीय पड़ोसी नेपाल भी भारत के विरोध में खड़ा नज़र आ रहा है। हाल के घटनाक्रम बताते हैं कि एक विश्वसनीय पड़ोसी भारत के ख़िलाफ़ खड़ा है, जो चीन और भारत के बीच बफर स्टेट का काम करता था।

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प्रीति सिंह
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