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प्रतीकात्मक तस्वीर

अभी भी इन नौ राजनैतिक दलों ने बना रखी है दोनों ही गठबंधनों से दूरी 

लोकसभा चुनाव को लेकर देश में राजनीतिक समीकरण तेजी से बन और बिगड़ रहे हैं। ज्यादातर राजनैतिक दल या तो एनडीए या फिर विपक्षी इंडिया गठबंधन के बैनर तल एकजुट हो रहे हैं। एक तरफ एनडीए गठबंधन में 38 दलों के होने की बात कही जा रही है वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन में 26 दल शामिल हो चुके हैं। विपक्षी इंडिया ने जहां मंगलवार को बेंगलुरू में बैठक कर अपनी एकजुटता दिखाई है वहीं भाजपा के नेतृत्व में सत्तारूढ़ एनडीए ने भी मंगलवार को ही दिल्ली में एक बैठक की है। 
लेकिन अभी भी इन दोनों बैठकों से 9 बड़े राजनैतिक दलों ने खुद को दूर रखा। इन दलों ने संकेत दिया है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में अकेले अपने दम पर लड़ेंगे। 
जिन राजनीतिक दलों ने सत्ताधारी एनडीए गठबंधन और उसके खिलाफ बने नए INDIA गठबंधन से खुद को अभी तक अलग रखा, उसमें बहुजन समाज पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, इंडियन नेशनल लोकदल, जनता दल सेक्यूलर, भारत राष्ट्र समिति, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, बीजू जनता दल,एआईएमआईएम और एआईयूडीएफ शामिल है। वर्तमान 17वीं लोकसभा में इन सभी दलों के कुल मिलाकर 59 सांसद हैं। यह संख्या कुल सांसदों का 11 फीसदी है। 2019 के चुनावों में इन दलों को मिलाकर कुल 10.71 फीसदी वोट मिले थे। 

बहुजन समाज पार्टी

देश के सबसे अधिक आबादी और लोकसभा सीट वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बड़ा जनाधार रखने वाली बहुजन समाज पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में अकेली ही चुनाव लड़ सकती है। इसका संकेत पार्टी सुप्रीमो मायावती ने दे दिया है। बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में मायावती ने कहा कि हम अकेले चुनाव लड़ेंगे। हम राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे और हरियाणा, पंजाब और अन्य राज्यों में हम राज्य के क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव लड़ सकते हैं। 
उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव का समय अब बेहद नज़दीक है। सत्ताधारी गठबंधन व विपक्षी गठबंधन की बैठकों का दौर चल रहा है। इन मामलों में हमारी पार्टी भी पीछे नहीं है। एक तरफ सत्ता पक्ष एनडीए अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की दलीलें दे रहा है तो दूसरी तरफ विपक्षी गठबंधन सत्ताधारी को मात देने के लिए कार्य कर रहा है। कांग्रेस पार्टी अपने जैसी जातिवादी और पूंजीवादी सोच रखने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करके फिर से सत्ता में आने की सोच रख रही है। वहीं एनडीए फिर से सत्ता में आने का दावा ठोक रहा है। इनकी कार्यशैली यही बताती है कि इनकी नीति और सोच लगभग एक जैसी ही रही है। यही कारण है कि बसपा ने इनसे दूरी बनाई है। 
बसपा सुप्रीमो मायावती के इन बयानों से साफ है कि उनकी पार्टी दोनों में से किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। बसपा का उत्तर प्रदेश के साथ ही इससे सटे राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी ठीक-ठाक प्रभाव है। दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर बसपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है। लोकसभा चुनाव में कम से कम उत्तर प्रदेश में बसपा की ताकत को कम कर के नहीं आंका जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने सपा के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बसपा को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और उसके खाते में कुल 3.62 फीसदी वोट आए थे। 

शिरोमणि अकाली दल

पंजाब में लंबे समय तक हुकूमत करने वाली शिरोमणि अकाली दल की फिर से भाजपा से नजदीकियां बढ़ रही हैं। वह भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी रही है। एनडीए की स्थापना के समय ही वह इससे जुड़ी थी। लेकिन फिलहाल वह एनडीए गठबंधन में शामिल नहीं हुई है।किसानों के मुद्दे पर 2020 ने शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था। तब केंद्र सरकार में मंत्री पद से हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया था। मौजूदा लोकसभा में शिरोमणि अकाली दल के दो सांसद हैं। 2019 में उसे कुल 0.62 फीसदी वोट मिले थे। 

इंडियन नेशनल लोकदल

हरियाणा की ताकतवर राजनैतिक पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल भी फिलहाल किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं है। वर्तमान लोकसभा में उसके एक भी सांसद नहीं है। 2019 में उसे सिर्फ 0.04 फीसदी वोट ही मिले थे‌। हाल के दिनों में पार्टी का वर्चस्व फिर से हरियाणा में बढ़ने लगा है। माना जा रहा है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में अकेले ही लड़ेगी। 

जनता दल सेक्युलर

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी और कर्नाटक की सत्ता में कई बार काबिज होने वाली जेडीएस भी अभी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। जेडीएस कभी कांग्रेस के साथ तो कभी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना चुकी है। इस बार भी वह भाजपा की तरफ टकटकी लगाए हुए थी। इसकी उम्मीद तब टूटी जब  मंगलवार को एनडीए की दिल्ली में हुई बैठक में उसे शामिल होने का न्योता भी नहीं मिला। एनडीए की तरफ से बुलावा नहीं मिलने के बाद अब पार्टी ने कहा है कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेगी। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव आते-आते उसकी भाजपा से दोस्ती हो सकती है। फिलहाल लोकसभा में उसके एक सांसद हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर जेडीएस ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे 0.56 फीसदी ही वोट हासिल हुए थे। 

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 

आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के मुखिया जगनमोहन रेड्डी ने भी किसी गठबंधन में शामिल होने को लेकर अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं। हालांकि भाजपा से उनकी नजदीकियां बढ़ रही हैं। वर्तमान  लोकसभा में उसके 22 सांसद हैं। 2019 में उसे कुल 2.53 फीसदी वोट मिले थे। दक्षिण भारत की मजबूत राजनीतिक शक्ति वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का आंध्र प्रदेश के अलावा तेलंगाना में भी प्रभाव है। ऐसे में इसका किसी भी गठबंधन में शामिल होना समीकरणों को प्रभावित करेगा। 

भारत राष्ट्र समिति

तेलंगाना में सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति के सुप्रीमों और राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर रावअब तक किसी गठबंधन में शामिल नहीं हुए हैं। वे लंबे समय से भाजपा का विरोध करते रहे हैं साथ ही तेलंगाना में उनकी पार्टी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है। ऐसे में दोनों ही गठबंधनों में शामिल होना उनके लिए आसान नहीं है। एक समय में के चंद्रशेखर राव विपक्षी एकता पैरोकार के तौर पर काम भी कर रहे थे। विभिन्न पार्टियों के नेताओं से उन्होंने मुलाकात भी की थी। उनकी कोशिश गैर कांग्रेसी - गैर भाजपाई तीसरा मोर्चा बनाने की भी थी।  
फिलहाल उन्होंने दोनों गठबंधनों से समान दूरी बनाकर रखी है और आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने बलबूते लड़ने का ऐलान किया है। वर्तमान में उनकी पार्टी के लोकसभा में 9 सांसद हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीआरएस (तब टीआरएस थी) को 1.25 फीसदी वोट मिले थे। 

बीजू जनता दल 

एनडीए के सबसे पुराने साथी रहे और विभिन्न मौकों पर एनडीए से बाहर रहकर भी भाजपा के संकटमोचक बनने वाले नवीन पटनायक और उनकी पार्टी बीजू जनता दल ने भी अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।बीजू जनता दल का ओडिशा में बड़ा जनाधार है। वर्तमान लोकसभा में इस दल के 12 सांसद हैं। ओडिशा राज्य से कुल 21 सांसद चुनकर आते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजू जनता दल ने 20 सीटों पर कब्जा किया था। उसे दोनों चुनावों में करीब 1.7 फीसदी वोट मिले थे‌‌। उसे राज्य के विधानसभा चुनाव में 45 फीसदी वोट मिले थे।
लंबे समय से बीजू जनता दल की ओडिशा में सरकार है। इसने अभी तक किसी गठबंधन में शामिल होने को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं किया है। हालांकि दोनों ही गठबंधन इसे अपनी ओर मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्षी गठबंधन के सूत्रधार माने जा रहे नीतीश कुमार बीजू जनता दल के सुप्रीमों और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से कुछ दिनों पूर्व मुलाकात भी कर चुके हैं। इसके बाद भी अब तक उन्होंने विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनने से परहेज़ किया है। 

एआईएमआईएम

सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के वोटबैंक को देखते हुए माना जाता है कि भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होना उसके लिए संभव नहीं है। लेकिन विपक्षी दलों के गठबंधन में भी वह शामिल नहीं है। असदुद्दीन ओवैसी को उम्मीद थी कि उन्हें 26 दलों के विपक्षी गठबंधन में शामिल होने का न्योता मिलेगा लेकिन उन्हें बुलाया नहीं गया। इस पार्टी का तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक में जनाधार माना जाता है। फिलहाल लोकसभा में उसके दो सांसद हैं। 2019 में उसे 0.20 फीसदी वोट मिले थे। 

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट

असम में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट एक बड़ी राजनैतिक शक्ति बन चुकी है। ऐसे में पार्टी के विपक्षी दल वाले गठबंधन में शामिल होने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन फिलहाल पार्टी ने खुद को किसी भी गठबंधन से अलग रखा है।ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट कांग्रेस के साथ पहले गठबंधन में रह चुकी है। फिलहाल लोकसभा में उसके एकमात्र सांसद हैं। 2019 के  लोकसभा चुनावों में उसे 0.23 फीसदी वोट मिले थे। 
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