सरकार का अजीबोगरीब तर्कः सरकार का तर्क है कि 1993 और 1997 में मणिपुर में बड़ी हिंसा होने के बावजूद एक भी मामले में संसद में कोई बयान नहीं दिया गया। दूसरे मामले में कनिष्ठ गृह मंत्री ने बयान दिया था। सूत्रों ने कहा कि सरकार का रुख यह है कि किसी मिसाल के अभाव में प्रधानमंत्री का बयान मांगने का कोई कारण नहीं है। लेकिन सरकार का यह तर्क अजीबोगरीब है। मणिपुर में इतना बड़ा जातीय संघर्ष कभी नहीं हुआ और न ही इतने लोगों की जान गई। मणिपुर पिछले तीन महीनों से अशांत है। वहां महिलाओं के नग्न परेड की घटना इससे पहले कभी नहीं हुई थी।
अविश्वास प्रस्ताव की बहस के दौरान नजरें इस बात पर रहेंगी कि सदन कितनी बार स्थगित होता है। अभी तक मॉनसून सत्र एक दिन भी ठीक से नहीं चल पाया है। विपक्ष के नेताओं के बोलने के दौरान सत्ता पक्ष के सांसद शोर मचाने लगते हैं। आज भी यही हाल हो सकता है।