सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के खिलाफ हरियाणा में दर्ज दो एफआईआर पर सोमवार को आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने एक एफआईआर रद्द कर दी और दूसरी एफआईआर में चार्जशीट पेश करने और मैजिस्ट्रेट की कार्यवाही पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने जिस एफआईआर को रद्द किया है, उसमें पुलिस ने क्लोज़र रिपोर्ट दी थी।

दूसरी FIR में, हरियाणा पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत आरोप लगाए हैं, जो देश की संप्रभुता के खिलाफ अपराध से संबंधित है। प्रोफेसर के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान इसे "बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण" बताते हुए कहा कि सोशल मीडिया टिप्पणियों के लिए ऐसी गंभीर धारा का इस्तेमाल किया गया।

प्रोफेसर महमूदाबाद पर हरियाणा पुलिस ने क्या कार्रवाई की थी 

प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को 18 मई 2025 को हरियाणा पुलिस ने 'ऑपरेशन सिंदूर' पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया था। इन पोस्ट में उन्होंने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और भारत की सैन्य कार्रवाई पर टिप्पणी की थी।  हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की शिकायत पर और बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी की शिकायत पर पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज की थी। इनमें उन पर देश की संप्रभुता को खतरे में डालने, सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने और महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसे आरोप लगाए गए। आरोप है कि मीडिया के बड़े वर्ग ने इस मुद्दे पर खासा शोर मचाया और प्रोफेसर महमूदाबाद को लेकर साम्प्रदायिक रिपोर्टिंग को बढ़ावा दिया।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, जो प्रोफेसर महमूदाबाद का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने चार्जशीट दाखिल करने को "बेहद दुर्भाग्यपूर्ण" बताया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 (राजद्रोह) के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसकी वैधता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सिब्बल ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वे चार्जशीट का अध्ययन करें और कथित अपराधों का एक चार्ट तैयार करें, जिसे कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख पर विचार करने के लिए स्वीकार किया।
21 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दी थी। लेकिन हरियाणा पुलिस की जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने हरियाणा के DGP को 24 घंटे के भीतर एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया था, जिसमें हरियाणा या दिल्ली से बाहर के तीन वरिष्ठ IPS अधिकारियों को शामिल किया गया। SIT को पोस्ट की भाषा और अभिव्यक्तियों की जटिलता को समझने और यह जांचने का निर्देश दिया गया कि क्या इस पोस्ट से कोई अपराध बनता है।

SIT की जांच पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी 

पिछली सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने SIT पर जांच का दायरा अनावश्यक रूप से बढ़ाने के लिए नाराजगी जताई थी। कोर्ट को बताया गया कि SIT ने महमूदाबाद के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (मोबाइल, लैपटॉप) जब्त किए और उनकी पिछले दस साल की विदेश यात्राओं की जानकारी मांगी। कोर्ट ने 28 मई को स्पष्ट किया कि SIT की जांच केवल दो FIR तक सीमित होनी चाहिए। 16 जुलाई को, जस्टिस सूर्या कांत ने टिप्पणी की, "आपको (SIT) महमूदाबाद की जरूरत नहीं, आपको एक शब्दकोश चाहिए।" कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रोफेसर को अब SIT के सामने पेश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने जांच में सहयोग किया और अपना मोबाइल और लैपटॉप सौंप दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई को महमूदाबाद की जमानत शर्तों में ढील दी और उन्हें उन विषयों पर लेख लिखने की अनुमति दी, जो इस मामले से संबंधित नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि SIT चार सप्ताह के भीतर अपनी जांच पूरी करे।

प्रोफेसर महमूदाबाद का मामला इतना महत्वपूर्ण क्यों है 

इस मामले ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। प्रोफेसर महमूदाबाद ने अपनी पोस्ट में पाकिस्तान पर भारत की सैन्य कार्रवाई की तारीफ की थी। लेकिन यह भी कहा था कि सांप्रदायिक हिंसा और बुलडोजर कार्रवाइयों के पीड़ितों के लिए समान चिंता व्यक्त करने की जरूरत है। इन टिप्पणियों को बीजेपी के लोगों ने विवादास्पद माना और पुलिस में एफआईआर करा दी। मुस्लिमों के प्रति बढ़ती नफरत के बीच आए इस मामले ने देश को झकझोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से यह भी पूछा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा इस मामले में FIR दर्ज करने के तरीके पर स्वत: संज्ञान लेने के संबंध में क्या जवाब दिया गया है। यह जानकारी हरियाणा सरकार को अगली सुनवाई पर अदालत में देनी है। NHRC ने 21 मई को महमूदाबाद की गिरफ्तारी को मानवाधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन माना था।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई तक ट्रायल कोर्ट को चार्जशीट पर संज्ञान लेने और आरोप तय करने से रोक दिया है। यह मामला अभिव्यक्ति की आजादी और डिजिटल युग में इसकी सीमाओं पर महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बना हुआ है।