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नागरिकता संशोधन विधेयक का पूर्वोत्तर में जोरदार विरोध

लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो गया है लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में विधेयक का जोरदार विरोध हो रहा है और वहां बड़ी संख्या में लोग इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि इससे असम समझौता, 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे। पूर्वोत्तर में असरदार छात्र संगठन नॉर्थ-ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (नेसो) ने दस दिसम्बर को 11 घंटे के बंद का आह्वान किया है।

इस मुद्दे पर पूर्वोत्तर के कई राजनीतिक दलों ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। पूर्वोत्तर के लोगों का कहना है कि इससे वहां के मूल निवासियों की संख्या में कमी आएगी और आबादी का संतुलन बिगड़ जाएगा। एनडीए शासित राज्यों में नगालैंड तीसरा राज्य है जिसने खुले तौर पर इस विधेयक का विरोध किया है। इससे पहले मिज़ोरम और मेघालय की सरकारें विधेयक का पुरजोर विरोध कर चुकी हैं। त्रिपुरा में बीजेपी के कई नेता इस मुद्दे पर पार्टी छोड़ चुके हैं। एनडीए में शामिल असम गण परिषद का कहना है कि इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद बांग्लादेशी हिंदुओं के आने से असम बर्बाद हो जाएगा। 

इंडीजीनियस पीपल्स फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी) ने नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में अगरतला में प्रदर्शन किया है। 

बीजेपी के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए सरकार ने बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान से आने वाले ग़ैर मुसलिमों, ख़ासकर हिंदू आप्रवासियों को भारत की नागरिकता देने की बात की थी। दूसरी बार सरकार बनते ही बीजेपी ने तीन तलाक़, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद इसे अपने एजेंडे में प्राथमिकता से रखा है।  विधेयक में अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।

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क़मर वहीद नक़वी
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