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18 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर कहा- कृषि विधेयकों पर दस्तख़त न करें

मत-विभाजन की माँग करने के बावजूद ध्वनि-मत से कृषि विधेयकों के पारित होने से गुस्साए विपक्षी दलों ने थक-हार कर अंतिम उपाय अपनाया है। हालांकि वे भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी मांग नहीं मानी जाएगी, पर वे अंतिम कोशिश शायद इस रणनीति से कर रहे हैं कि वे यह कह सकेंगे कि उन्होंने भरपूर कोशिश की।
18 विपक्षी दलों ने सोमवार की शाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक चिट्ठी लिख कर उनसे गुजारिश की कि वह इन विधेयकों पर दस्तख़त न करें। कोविंद की राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि वह इस मांग को ठुकरा देंगे।
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'लोकतंत्र के मंदिर में लोकतंत्र की हत्या'

इस ख़त में कहा गया है, “हम अलग-अलग पार्टियों के लोग जो देश की अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं और भौगोलिक इलाक़ों से आते हैं, बहुत ही सम्मान से आपका ध्यान इस ओर खींचना चाहते हैं कि लोकतंत्र की पूर्ण रूप से हत्या की गई है और विडंबना यह है कि हत्या लोकतंत्र के सबसे सम्मानित मंदिर संसद में ही की गई है।” 
इन दलों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी में कहा है, 

“हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि इस विधेयक पर दस्तख़त न करें और इसे लौटा दें। हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप अपनी पूरी संवैधानिक और नैतिक ताक़त लगा कर यह सुनिश्चित करें कि यह काला विधेयक क़ानून न बन सकें।”


विपक्षी दलों की चिट्ठी का अंश

बहुसंख्यकवाद

जिन दलों के प्रतिनिधियों में चिट्ठी पर दस्तख़त किए हैं, उनमें प्रमुख हैं कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम,, एनसीपी, डीएमके, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख हैं।
इस चिट्ठी में कहा गया है कि “सत्तारूढ़ दल बहुसंख्यकवाद पर टिकी हुई है, किसी दूसरे की बात नहीं सुनती है, अपने मन की करती है और हर मुद्दे पर अपनी जिद पर अड़ी रहती है क्योंकि इसके पास बहुमत है। राजनीति में इस तरह की जिद की कोई जगह नहीं होती है।”
कृषि विधेयकों को लेकर आवाज़ बुलंद कर रहे किसानों ने 25 सितंबर को बंद का एलान किया है। क्या है मामला, देखें यह वीडियो:

विरोध क्यों?

बता दें कि रविवार को सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्ष के सदस्यों में ज़बरदस्त बहस, झड़प और हंगामे के बीच किसानों से जुड़े दो विधेयक राज्यसभा में पारित कर दिए गए। उप सभापति हरिवंश ने बिल पर वॉयस वोटिंग (ध्वनिमत) से ही फ़ैसला सुना दिया।
इस पर गुस्से से तिलमिलाए तृणमूल कांग्रेस सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा था, “यह अभूतपूर्व है कि सरकार के पास बहुमत नहीं होने पर उप सभापति ने विधेयक को ध्वनि मत से पारित करवा दिया। यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही बुरा दिन है। उप सभापति को ऐसा नहीं करना चाहिए था।”
कांग्रेस सदस्य प्रताप सिंह बाजवा ने सदन के बाहर पत्रकारों से कहा कि यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही बुरा दिन है। बीजेपी के पास राज्यभा में बहुमत नहीं है, यह उप सभापति को पता है। उन्होंने ध्वनि मत से विधेयक इसलिए पारित कर दिया कि वे जानते थे कि इस पर मत विभाजन होने से बिल गिर पड़ता और सरकार की बेइज्ज़ती होती।
सोमवार को भी सदन में इस पर हंगामा हुआ, जिसके बाद विपक्ष के 8 सदस्यों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया, यानी वे सदन की कार्यवाही में इस दौरान भाग नहीं ले पाएंगे।
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क़मर वहीद नक़वी
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