भारतीयों द्वारा विदेश भेजी जाने वाली धनराशि 29% घटकर 1,964.21 मिलियन डॉलर रह गई। हालांकि एलआरएस (Liberalised Remittance Scheme) योजना के तहत छूट होने के बावजूद कमी आई है। वजह जानिएः
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों द्वारा लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत विदेश भेजे जाने वाले पैसे (प्रेषण या रेमिटेंस) में फरवरी 2025 में कमी आई है। यह 29 फीसदी कम होकर 1,964.21 मिलियन डॉलर रही, जो जनवरी में 2,768.89 मिलियन डॉलर थी। इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें ग्लोबल आर्थिक अस्थिरता, यात्रा और विदेश में शिक्षा के लिए भेजे जाने वाले पैसे में कमी आना शामिल है।
RBI के आंकड़ों के अनुसार, यात्रा के लिए प्रेषण में 33.77 प्रतिशत की कमी आई और यह फरवरी में 1,090.61 मिलियन डॉलर रहा, जो जनवरी में 1,646.74 मिलियन डॉलर था। इसके अलावा, विदेश में पढ़ाई के लिए प्रेषण में 50.52 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई, जो जनवरी में 368.21 मिलियन डॉलर से घटकर फरवरी में 182.17 मिलियन डॉलर हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा, यूएसए और ब्रिटेन (यूके) जैसे प्रमुख देशों में भारतीय छात्रों को मिलने वाले स्टडी परमिट में 2024 में कम से कम 25 प्रतिशत की कमी आई है, जिसका असर पैसे भेजने पर पड़ा है। आसान शब्दों में कहें तो यह है खराब आर्थिक हालात और इन प्रमुख देशों में इमीग्रेशन नीति बदलने से लोग अपने बच्चों को पढ़ने विदेश नहीं भेज रहे हैं। वे विदेश घूमने भी नहीं जा रहे हैं।
यात्रा उद्योग (ट्रेवेल बिजनेस) के सूत्रों के अनुसार, ग्लोबल अर्थव्यवस्था और बाजारों में अस्थिरता के कारण कई लोगों ने अपनी यात्रा योजनाओं को स्थगित या रद्द कर दिया। इसके अलावा, कुछ लोगों ने विदेशी प्रेषण पर कर संग्रहण (TCS) की बढ़ी हुई सीमा का लाभ उठाने के लिए अपनी योजनाओं को समायोजित किया। फरवरी 2025 के केंद्रीय बजट में LRS लेनदेन पर TCS की सीमा को 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया गया, जिससे यात्रा और विदेशी मुद्रा क्षेत्र को लाभ होने की उम्मीद है।
हालांकि कुल प्रेषण में कमी आई, लेकिन इक्विटी और डेट में निवेश के लिए प्रेषण में उछाल देखा गया। फरवरी में यह 173.84 मिलियन डॉलर रहा, जो जनवरी में 104.98 मिलियन डॉलर था। यह दर्शाता है कि कुछ भारतीय निवेशक ग्लोबल मार्केट में अवसरों का लाभ उठा रहे हैं।
लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत, भारतीय निवासी, जिसमें नाबालिग भी शामिल हैं, प्रति वित्तीय वर्ष में 2,50,000 अमेरिकी डॉलर तक स्वतंत्र रूप से प्रेषण कर सकते हैं। यह राशि यात्रा, शिक्षा, इलाज, संपत्ति खरीद, और विदेशी स्टॉक में निवेश जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
TCS सीमा में वृद्धि से यात्रा, शिक्षा और एयरलाइन क्षेत्र को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। हालांकि, ग्लोबल आर्थिक अनिश्चितता और छात्र वीजा में कमी जैसे कारण प्रेषण के रुझानों को प्रभावित कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय निवासियों द्वारा विदेशी प्रेषण का पैटर्न भविष्य में वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।