पहलगाम में आतंकी हमले की जिम्मेदारी द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है। पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े इस संगठन का यह पहला बड़ा हमला है। मुख्य साजिशकर्ता सैफुल्लाह कसूरी उर्फ सैफुल्लाह खालिद इस हमले के केंद्र में हैं। इसके अलावा, रावलकोट स्थित LeT के दो कमांडरों में से एक, अबू मूसा, की भूमिका की भी जांच की जा रही है। लेकिन यहां सवाल पैदा होता है कि जब भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास सैफुल्लाह खालिद के बारे में ढेरों सूचनाएं थीं तो उसके मूवमेंट की एडवांस सूचना क्यों नहीं थी। बेशक उसके बारे में जो सूचनाएं मीडिया को दी जा रही हैं वो जनता के जानने के लिए हैं लेकिन उन सूचनाओं का फायदा उठाना तो खुफिया और सुरक्षा बलों का काम था।

द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) क्या है?

द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) एक अपेक्षाकृत नया लेकिन घातक आतंकी संगठन है, जिसका गठन अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद हुआ था। यह संगठन पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का एक छद्म संगठन है, जिसे हाफिज सईद के नेतृत्व में संचालित किया जाता है। TRF का उद्देश्य कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देना और स्थानीय युवाओं को ऑनलाइन भर्ती करके आतंकवाद के लिए प्रेरित करना है। संगठन ने 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों सहित कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया है। TRF ने अपने बयान में दावा किया कि यह हमला "भारतीय कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर" में गैर-स्थानीय लोगों को डोमिसाइल देने और "आबादी में बदलाव" के खिलाफ एक प्रतिक्रिया थी।

सैफुल्लाह खालिद कौन है?

सैफुल्लाह कसूरी, उर्फ खालिद, लश्कर-ए-तैयबा का एक प्रमुख कमांडर है, जिसे अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने LeT की ओर से काम करने के लिए नामित किया है। खालिद LeT के पेशावर मुख्यालय का प्रमुख है और जमात-उद-दावा (JuD) की सेंट्रल पंजाब प्रांत के लिए समन्वय समिति में शामिल रहा है। JuD को अप्रैल 2016 में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा LeT के पर्याय के रूप में नामित किया गया था और दिसंबर 2008 में संयुक्त राष्ट्र की 1267/1988 प्रतिबंध सूची में LeT के पर्याय के रूप में जोड़ा गया था। 8 अगस्त 2017 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खालिद को मिल्ली मुस्लिम लीग (MML) के अध्यक्ष के रूप में पेश किया गया था, जहां उसने पार्टी के गठन, उद्देश्यों और लक्ष्यों के बारे में बात की थी। खुफिया आकलन के अनुसार, खालिद पहलगाम हमले की साजिश में शामिल प्रमुख व्यक्तियों में से एक है।

पहलगाम के बैसरण घास के मैदान में हुआ यह हमला अमरनाथ यात्रा से कुछ हफ्ते पहले हुआ, जब घाटी में पर्यटकों की संख्या में उछाल देखा जाता है। आतंकवादियों ने सेना की वर्दी पहनकर पर्यटकों को निशाना बनाया, जिनमें दो विदेशी और दो स्थानीय लोग शामिल थे। हमले का समय अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस के भारत दौरे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सऊदी अरब यात्रा के साथ मेल खाता है, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय गंभीरता बढ़ गई है।

TRF ने अपने बयान में कहा, "85,000 से अधिक गैर-स्थानीय लोगों को डोमिसाइल जारी किए गए हैं, जो भारतीय कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर की आबादी में बदलाव का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ये गैर-स्थानीय लोग पर्यटक के रूप में आते हैं, डोमिसाइल प्राप्त करते हैं, और फिर ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे जमीन के मालिक हों। नतीजतन, अवैध रूप से बसने की कोशिश करने वालों के खिलाफ हिंसा होगी।" यह बयान कश्मीर में तनाव को और बढ़ाने वाला है।

खुफिया सूत्रों का कहना है कि हमलावरों ने हमले से पहले क्षेत्र की टोह ली थी और संभवतः जम्मू के किश्तवाड़ क्षेत्र से घुसपैठ करके कोकेरनाग के रास्ते बैसरण पहुंचे। इस हमले ने खुफिया एजेंसियों की तैयारियों और पर्यटक क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था की कमी को उजागर किया है। बैसरण जैसे दुर्गम क्षेत्र में, जो केवल पैदल या घोड़े से पहुंचा जा सकता है, सुरक्षा बलों की तैनाती और निगरानी अपर्याप्त थी।

हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सऊदी अरब यात्रा छोटी कर दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ आपातकालीन बैठक की। गृह मंत्री अमित शाह श्रीनगर पहुंचे और पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, "इस कायराना हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।" जम्मू-कश्मीर सरकार ने मृतकों के परिवारों के लिए 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि और घायलों के लिए 1-2 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमले की निंदा की और भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की। ट्रम्प ने कहा, "हम आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ मजबूती से खड़े हैं।"

पहलगाम हमला कश्मीर में शांति और पर्यटन के लिए एक बड़ा झटका है। यह घटना भारत की खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है। TRF और सैफुल्लाह खालिद जैसे आतंकी नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखने और LoC पर घुसपैठ को रोकने के लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल आवश्यक है। साथ ही, पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा बढ़ाने और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग मजबूत करने की जरूरत है।

पहलगाम आतंकी हमला न केवल एक मानवीय त्रासदी है, बल्कि यह क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती भी है। द रेसिस्टेंस फ्रंट और सैफुल्लाह खालिद जैसे आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बिना कश्मीर में शांति स्थापित करना मुश्किल होगा। सरकार को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का मुद्दा उठाना होगा और आतंकी संगठनों के वित्तपोषण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।