जिस 'घुसपैठिए' शब्द का इस्तेमाल गली-मुहल्ले और राजनीतिक रैलियों में कुछ नेता 'नफ़रत' फैलाने के लिए करते रहे हैं उसका इस्तेमाल शुक्रवार को लाल किले के प्राचीर से किया गया। भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनसांख्यिकी यानी डेमोग्राफी को बदलने की एक सोची-समझी साजिश की चेतावनी दी। उन्होंने इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए 'हाई पावर डेमोग्राफी मिशन' शुरू करने की घोषणा की। इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष के बीच तीखी बहस छिड़ गई है। 

सोची-समझी साज़िश?

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा, 'मैं देश को एक चिंता और चुनौती के प्रति आगाह करना चाहता हूँ। एक सोची-समझी साजिश के तहत देश की डेमोग्राफी को बदला जा रहा है, एक नए संकट के बीज बोए जा रहे हैं। ये घुसपैठिए मेरे देश के नौजवानों की रोजी-रोटी छीन रहे हैं, हमारी बहन-बेटियों को निशाना बना रहे हैं, और भोले-भाले आदिवासियों को भ्रमित करके उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। इसे देश बर्दाश्त नहीं करेगा।'
प्रधानमंत्री ने खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक तनाव का कारण बताया। उन्होंने कहा कि यह बदलाव देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है और इसे रोकने के लिए सरकार ने 'हाई पावर डेमोग्राफी मिशन' शुरू करने का फ़ैसला किया है। इस मिशन का उद्देश्य अवैध घुसपैठ को रोकना और स्थानीय आबादी के हितों की रक्षा करना है।

उन्होंने झारखंड जैसे राज्यों का ज़िक्र किया, जहाँ कथित तौर पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों द्वारा आदिवासी महिलाओं से शादी करके और उनकी जमीनों पर कब्जा करके जनसांख्यिकीय संतुलन को प्रभावित किया जा रहा है।

बीजेपी, आरएसएस का मक़सद क्या?

प्रधानमंत्री के इस बयान को बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की दूरगामी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी और आरएसएस लंबे समय से झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में मुस्लिम आबादी की वृद्धि को लेकर चिंता जताते रहे हैं। आरएसएस के मुखपत्र 'पाञ्चजन्य' ने पहले असम के नौ जिलों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक बनने और पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जैसे क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव की बात कही थी। मोदी का यह बयान हिंदू समुदाय में भय और असुरक्षा की भावना को उभारकर हिंदू वोटों को एकजुट करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, खासकर 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर।

झारखंड के 2024 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 'बांग्लादेशी घुसपैठ' को प्रमुख मुद्दा बनाया था, हालाँकि वह जीत हासिल नहीं कर सकी। अब इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर बीजेपी इसे एक बड़े सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी 20 सितंबर 2024 को झारखंड में कहा था, 'रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन-चुनकर बाहर भेजने का काम बीजेपी करेगी।' अब यह अभियान, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में बड़े जोरशोर से चलाया जा रहा है। यह दिखाता है कि पार्टी इस मुद्दे को आगामी चुनावों में भुनाने की योजना बना रही है।

राष्ट्रीय सुरक्षा का नैरेटिव

पीएम मोदी ने जनसांख्यिकीय बदलाव को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा है। इसको आरएसएस ने भी समर्थन दिया है। आरएसएस के प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने पहले कहा था कि जनसांख्यिकीय डेटा राष्ट्रीय एकीकरण के लिए अहम है। 'हाई पावर डेमोग्राफी मिशन' को सरकार की ओर से एक ठोस कदम के रूप में पेश किया जा रहा है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा को मजबूत करने और घुसपैठ को रोकने पर केंद्रित है।

जातीय जनगणना से ध्यान हटाना मक़सद?

हाल ही में मोदी सरकार ने 2030 की जनगणना में जातीय जनगणना को शामिल करने का फ़ैसला लिया, जिसे विपक्ष का प्रमुख मुद्दा माना जाता था। डेमोग्राफी मिशन की घोषणा को कुछ विश्लेषकों ने इस मुद्दे से ध्यान भटकाने और बीजेपी के कोर वोटर बेस को मजबूत करने की रणनीति के रूप में देखा है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्ष ने मोदी के बयान को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक लाभ की कोशिश के रूप में देखा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासी मज़दूरों के साथ उत्पीड़न और भेदभाव का आरोप लगाया है। कई राज्यों में बांग्ला बोलने वाले लोगों को बांग्लादेशी बताकर वापस भेजा जा रहा है। 
ममता ने हाल ही में कहा था, 'मुझे बीजेपी की बंगालियों के प्रति नीति पर शर्मिंदगी और दुख है। बंगाली बोलने वाला हर व्यक्ति बांग्लादेशी नहीं है। हमारे 22 लाख प्रवासी मजदूर देश के विभिन्न हिस्सों में काम करते हैं, उनके पास वैध पहचान पत्र जैसे आधार, मतदाता पहचान पत्र और पैन कार्ड हैं। फिर भी उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जनसांख्यिकीय बदलाव पर बयान और 'हाई पावर डेमोग्राफी मिशन' की घोषणा एक गंभीर सियासी कदम है। बीजेपी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय हितों की रक्षा का मुद्दा बता रही है, जबकि विपक्ष इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और चुनावी रणनीति का हिस्सा मानता है। यह मुद्दा आगामी विधानसभा चुनावों में राजनीतिक बहस को और गर्म कर सकता है। साथ ही, यह देखना दिलचस्प होगा कि 'हाई पावर डेमोग्राफी मिशन' का कार्यान्वयन कैसे होता है।