भारत में राजनीतिक फंडिंग खुलासा चुनाव आयोग ने किया है। उसके विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि चुनावी ट्रस्ट, इंफ्रास्ट्रक्चर, फार्मास्युटिकल और खनन कंपनियां राजनीतिक दलों को सबसे ज़्यादा दान देने वाली कंपनियां हैं।
भारत में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का विश्लेषण एक बार फिर चर्चा में है। निर्वाचन आयोग (ईसी) द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा संकलित जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में इलेक्टोरल ट्रस्टों ने राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा चंदा दिया। इसके बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर, फार्मास्यूटिकल और खनन क्षेत्र की कंपनियों का नंबर आता है।
चौंकाने वाली बात यह है कि शीर्ष दानदाताओं में शामिल कम से कम पांच कंपनियां केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं, जिनमें से चार ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को भारी-भरकम राशि दी, जबकि एक ने कांग्रेस को चंदा दिया।
इलेक्टोरल ट्रस्ट, जो दानदाताओं और राजनीतिक दलों के बीच मध्यस्थ का काम करते हैं, ने 2023-24 में सबसे ज्यादा चंदा दिया। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट, ट्रायम्फ इलेक्टोरल ट्रस्ट और जयभारत इलेक्टोरल ट्रस्ट ने मिलकर 1,196 करोड़ रुपये का दान दिया। इनमें से प्रूडेंट और ट्रायम्फ ने क्रमशः 1,061 करोड़ और 132.5 करोड़ रुपये का योगदान दिया। नौ प्रमुख दलों—बीजेपी, कांग्रेस, आप, टीडीपी, जेडीयू, टीएमसी, डीएमके, वाईएसआरसीपी और बीआरएस चंदा देने में शीर्ष 20 दानदाताओं में तीन इलेक्टोरल ट्रस्ट शामिल हैं।
इन ट्रस्टों के जरिए चंदा देने वाली प्रमुख कंपनियों में अर्सेलर मित्तल, निप्पॉन स्टील, डीएलएफ, मारुति सुजुकी, सीईएससी और मेघा इंजीनियरिंग जैसी कंपनियां शामिल हैं। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को अर्सेलरमित्तल और डीएलएफ ने 100-100 करोड़ रुपये, माथा प्रोजेक्ट्स ने 75 करोड़ रुपये और मारुति सुजुकी व सीईएससी ने 60-60 करोड़ रुपये का दान दिया।
इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र की कंपनियां चंदे के मामले में सबसे आगे रहीं। कुल 23 ऐसी कंपनियों ने 248 करोड़ रुपये का दान दिया, जिनमें से बीजेपी को 227 करोड़ रुपये, टीडीपी को 10.83 करोड़ रुपये और कांग्रेस को 9 करोड़ रुपये मिले। इनमें सबसे बड़ा दानदाता अहमदाबाद की दिनेशचंद्र आर. अग्रवाल इन्फ्राकॉन रही, जिसने बीजेपी को 50 करोड़ रुपये दिए। इसके बाद मुंबई की मैक्रोटेक डेवलपर्स, जिसके मालिक महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा हैं, ने 29.7 करोड़ रुपये का योगदान दिया।
दिनेशचंद्र आर. अग्रवाल इन्फ्राकॉन 2016 से आयकर विभाग की जांच के दायरे में है। 2021-22 में इसे टैक्स नोटिस भी जारी किए गए थे। जांच में पाया गया कि कंपनी ने फर्जी सब-कॉन्ट्रैक्टर खर्चों के जरिए बेहिसाबी धन पैदा किया। इसके बावजूद, कंपनी ने 2023 में बीजेपी को 15 करोड़ रुपये और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 3 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दिए।
फार्मास्यूटिकल और खनन क्षेत्र की कंपनियों ने भी भारी मात्रा में चंदा दिया। बीजेपी को मैक्लियॉड्स फार्मास्यूटिकल्स और इंटास फार्मास्यूटिकल्स ने 25-25 करोड़ रुपये, जबकि अजंता फार्मा, ट्रोइका फार्मास्यूटिकल्स और कैडिला फार्मास्यूटिकल्स ने 5-5 करोड़ रुपये दिए। भारत बायोटेक, जो वैक्सीन निर्माण के लिए जानी जाती है, ने भी बीजेपी को 50 करोड़ रुपये का दान दिया।
खनन क्षेत्र में वेदांता लिमिटेड और जिंदल स्टील जैसी कंपनियां प्रमुख दानदाता रहीं। वेदांता ने 2019 से 2024 तक 400.35 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे, जिनमें से 230.15 करोड़ रुपये बीजेपी को, 125 करोड़ रुपये कांग्रेस को और 40 करोड़ रुपये बीजू जनता दल (बीजेडी) को गए।
शीर्ष दानदाताओं में शामिल पांच कंपनियां केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर विभाग की जांच का सामना कर रही हैं। इनमें से चार ने बीजेपी को भारी चंदा दिया, जबकि हैदराबाद की एक कंपनी ने कांग्रेस को दान दिया। उदाहरण के लिए, मेघा इंजीनियरिंग, जो इलेक्टोरल बॉन्ड की दूसरी सबसे बड़ी खरीदार है, ने 2019 में आयकर विभाग के छापों के बाद 50 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। कंपनी ने प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को भी 25 करोड़ रुपये दिए।
इलेक्टोरल ट्रस्ट और बॉन्ड के जरिए चंदे की प्रक्रिया लंबे समय से विवादों में रही है। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2024 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया था। इसके बाद इलेक्टोरल ट्रस्टों के जरिए चंदा देने में भारी उछाल देखा गया। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 2023-24 में 1,075.7 करोड़ रुपये मिले, जो पिछले साल के 363 करोड़ रुपये से तीन गुना ज्यादा है।
विश्लेषकों का कहना है कि इलेक्टोरल ट्रस्ट पारदर्शिता की कमी का एक कारण हैं, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं होता कि कौन सी कंपनी किस दल को कितना दान दे रही है। कांग्रेस के शोध प्रमुख एम.वी. राजीव गौड़ा ने इसे "अर्ध-पारदर्शी" करार देते हुए कहा कि पार्टियां दानदाताओं की पहचान जानती हैं, लेकिन यह जानकारी सार्वजनिक नहीं होती।
2023-24 के आंकड़े दिखाते हैं कि राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा इन्फ्रास्ट्रक्चर, फार्मा और खनन जैसे क्षेत्रों पर निर्भर है, जो अक्सर सरकारी परियोजनाओं और मंजूरी पर निर्भर रहते हैं। बीजेपी को कुल चंदे का सबसे बड़ा हिस्सा (72% से ज्यादा) मिला, जबकि कांग्रेस, टीएमसी और अन्य दलों को भी महत्वपूर्ण राशि प्राप्त हुई।
चुनावी सुधार की मांग करने वाले संगठन, जैसे एडीआर, लंबे समय से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता की वकालत करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में चंदे की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाया जाएगा। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक ठोस कानून नहीं बनते, तब तक यह प्रणाली विवादों से घिरी रहेगी।