भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ बढ़ाकर 50% करने के फैसले को ग़लत और अतार्किक क़रार दिया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि नई दिल्ली अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा। विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के इस कदम की आलोचना करते हुए इसे ग़लत और अविवेकपूर्ण बताया है।

भारत की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब ट्रंप ने बुधवार को आख़िरकार बड़ा टैरिफ़ बम फोड़ दिया। उन्होंने भारत से आयातित सामानों पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। इस नए शुल्क के साथ भारत से अमेरिका में आयात होने वाले सामानों पर कुल शुल्क 50% हो गया है। यह कदम भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के जवाब में उठाया गया है। ट्रंप ने इसको लेकर बुधवार को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। ट्रंप के इस फ़ैसले के बाद भारत के साथ व्यापारिक तनाव और बढ़ गया है।

ट्रंप ने बुधवार को नौ-खंडों वाले उस आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसमें टैरिफ, शुल्कों का दायरा जैसे विभिन्न पहलुओं की जानकारी है। ट्रंप ने अमेरिका में लागू विभिन्न कानूनों का ज़िक्र किया, जो यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने और अमेरिका की विदेश नीति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए ऊर्जा और तेल सहित रूसी सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगाते हैं।
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रिपोर्टों के अनुसार कार्यकारी आदेश में आगे कहा गया है, 'कार्यकारी आदेश 14066 में वर्णित राष्ट्रीय आपातकाल से निपटने के लिए, मैं यह निर्धारित करता हूँ कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूस से तेल आयात कर रहे भारत से आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगाना ज़रूरी और सही है।'

ट्रंप के कार्यकारी आदेश के अनुसार टैरिफ़ पर हस्ताक्षर के 21 दिन बाद प्रभावी होगा, सिवाय उन वस्तुओं के जो पहले से ही ट्रांजिट में हैं। यह अमेरिका में प्रवेश करने वाले सभी भारतीय उत्पादों पर लागू होगा।

कांग्रेस ने की ट्रंप की आलोचना

राहुल गांधी ने भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ़ लगाए जाने की आलोचना करते हुए कहा है, 'ट्रंप का 50% टैरिफ़ आर्थिक ब्लैकमेल है - भारत को एक अनुचित व्यापार समझौते के लिए धमकाने का एक प्रयास। प्रधानमंत्री मोदी को अपनी कमज़ोरी को भारतीय जनता के हितों पर हावी नहीं होने देना चाहिए।' 
जयराम रमेश ने कहा है, "अब राष्ट्रपति ट्रंप एक तरफ पीएम मोदी के मित्र होने का दावा भी कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ भारत पर कठोर और अन्यायपूर्ण प्रहार कर रहे हैं। उनके द्वारा लगाए गए टैरिफ और दंडात्मक कार्रवाई पूरी तरह से अस्वीकार्य है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिनिष्ठ, सुर्खियाँ बटोरने वाली और 'झप्पी-कूटनीति ' पर टिकी विदेश नीति पूरी तरह से विफल रही है।"

उन्होंने आगे कहा, "भारत ने 1970 के दशक में अमेरिका के धौंस का डटकर सामना किया था, उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। पीएम मोदी को चाहिए कि वे उनके योगदान को विकृत करने और उन्हें बदनाम करने की बजाय-यदि वे अपने अहंकार से ऊपर उठें और उनसे प्रेरणा लें कि अमेरिका जैसी ताकत के सामने भी कैसे डटकर खड़ा हुआ जाता है।"

ट्रंप ने एक दिन पहले दी थी चेतावनी

राष्ट्रपति ट्रंप ने एक दिन पहले ही सीएनबीसी को दिए एक साक्षात्कार में भारत पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि वह अगले 24 घंटों में भारत पर शुल्क को काफी ज़्यादा बढ़ाने जा रहे हैं, क्योंकि भारत रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है और इसे खुले बाजार में बेचकर मुनाफा कमा रहा है। ट्रंप ने इसे रूस-यूक्रेन युद्ध को फंड करने का आरोप लगाया। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा था, 'हालांकि भारत हमारा मित्र है, लेकिन उनके द्वारा अमेरिकी सामानों पर लगाए गए शुल्क बहुत अधिक हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक हैं। इसके अलावा, वे रूस से भारी मात्रा में सैन्य उपकरण और ऊर्जा खरीद रहे हैं, जिससे यूक्रेन में युद्ध को बढ़ावा मिल रहा है।'
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'अमेरिका में भी रूस से आयात'

ट्रंप ने जब हाल में अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की चेतावनी दी थी तो भारत सरकार ने इसको ग़लत और अतार्किक फ़ैसला करार दिया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक बयान में कहा था, 'अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि वैश्विक ऊर्जा बाजार स्थिर रहे। उस समय पारंपरिक आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी।' उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका और यूरोपीय संघ स्वयं रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं, जिसमें अमेरिका द्वारा यूरेनियम, पैलेडियम और उर्वरकों का आयात शामिल है।

भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में संसद में कहा था कि सरकार ट्रंप के इस फैसले के प्रभावों का अध्ययन कर रही है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। उन्होंने कहा था, 'हम एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए प्रतिबद्ध हैं।'
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चीन तो भारत से ज़्यादा रूसी तेल आयात करता है

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत रूस से तेल आयात में तेजी से वृद्धि हुई है। युद्ध से पहले रूस भारत के तेल आयात का केवल 0.2% हिस्सा था, जो अब बढ़कर 35-38% हो गया है। जुलाई 2025 में भारत ने रूस से औसतन 1.8 मिलियन बैरल प्रति दिन तेल आयात किया, जो इराक और सऊदी अरब से दोगुना है। रूस द्वारा दी जाने वाली छूट के कारण भारत ने सस्ते तेल का लाभ उठाया, जिसे पश्चिमी देशों ने प्रतिबंधों के कारण खरीदना बंद कर दिया था। वैसे, चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि भारत से ज़्यादा तो चीन रूसी तेल का आयात करता है। चीन रूस से क़रीब 48-50% तेल ख़रीदता है और भारत 36-38% ही, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका ने चीन के ख़िलाफ़ कोई अतिरिक्त टैरिफ़ नहीं लगाया है।

आर्थिक असर

इस अतिरिक्त शुल्क का भारत के लगभग 64 अरब डॉलर के निर्यात पर असर पड़ सकता है, जो अमेरिका को होने वाले कुल निर्यात का 80% है। विशेष रूप से कपड़े, जूते और फर्नीचर जैसे क्षेत्रों में भारतीय निर्यातकों को वियतनाम और चीन जैसे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले कीमतों में प्रतिस्पर्धात्मक नुकसान हो सकता है। 

ट्रंप के इस फैसले ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक नया मोड़ ला दिया है। भारत सरकार अब इस शुल्क के प्रभावों का आकलन कर रही है और जवाबी रणनीति तैयार करने में जुटी है। इस बीच, वैश्विक व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम न केवल भारत, बल्कि अन्य देशों के साथ भी व्यापार युद्ध को तेज कर सकता है, जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।