'जब लोकतंत्र का एक अंग कर्तव्य निभाने में विफल हो तो क्या हम संविधान के रखवाले चुप बैठें?' मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई का यह धमाकेदार सवाल पूरे संवैधानिक ताने-बाने को हिला गया। प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस पर 10 दिनों की तीखी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फ़ैसला तो सुरक्षित रख लिया, लेकिन सीजेआई की तीखी टिप्पणी केंद्र सरकार को बड़ा संदेश दे गई!
लोकतंत्र का कोई अंग कर्तव्य निभाने में विफल रहता है तो कोर्ट चुप नहीं बैठेगा: SC
- देश
- |
- 11 Sep, 2025
तमिलनाडु गवर्नर द्वारा विधेयकों को रोके जाने से जुड़े प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अंतिम सुनवाई हुई। क्या बिल को लेकर गवर्नरों के लिए समय-सीमा बरकरार रहेगी? जानें सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के क्या संदेश।

कल्पना कीजिए, राज्य विधानसभाओं के विधेयक वर्षों तक गवर्नरों के डेस्क पर धूल खाते रहें और लोकतंत्र का 'संरक्षक' सुप्रीम कोर्ट हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे! ऐसा तो हो नहीं सकता न? तो सुप्रीम कोर्ट भी चुप नहीं रहा। सीजेआई ने साफ़-साफ़ कह दिया, 'मैं सार्वजनिक रूप से कहता हूं कि मैं शक्तियों के अलगाव के सिद्धांत में पूरा विश्वास रखता हूँ। हालाँकि न्यायिक सक्रियता होनी चाहिए, लेकिन इसे न्यायिक दुस्साहस में नहीं बदलना चाहिए। लेकिन साथ ही यदि लोकतंत्र का एक पक्ष अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहता है तो क्या संविधान का संरक्षक न्यायालय शक्तिहीन होकर चुप बैठा रहेगा?'