करूर भगदड़ की जाँच अब सीबीआई करेगी। जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अजय रस्तोगी की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति करेगी। तमिलनाडु के करूर में 27 सितंबर को विजय की तमिलागा वेत्री कझागम यानी टीवीके की रैली के दौरान हुई भगदड़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। भगदड़ में 41 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों घायल हुए थे। अदालत ने साफ़ कहा कि यह घटना राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने वाली है और हर नागरिक को निष्पक्ष जांच का अधिकार है।

करूर जिले के वेलुसामीपुरम में 27 सितंबर को टीवीके की राजनीतिक रैली के दौरान भगदड़ मच गई थी, जब हजारों समर्थक विजय को देखने के लिए उमड़ पड़े। रैली स्थल पर 10,000 लोगों के लिए अनुमति ली गई थी, लेकिन वास्तव में अनुमान के मुताबिक 25 हज़ार से अधिक लोग इकट्ठा हो गए थे। भीड़ प्रबंधन की कमी और पर्याप्त सुविधाओं के अभाव के कारण भगदड़ हुई। इस हादसे में कई महिलाएँ और बच्चे भी शिकार हुए।
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घटना के बाद करूर टाउन पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें टीवीके के करूर (उत्तर) जिला सचिव मटियाजगन, महासचिव बुसी आनंद और संयुक्त महासचिव सी.टी.आर. को नामजद किया गया। शुरुआती रिपोर्टों में पुलिस और आयोजकों पर लापरवाही का आरोप लगाया गया। इसको लेकर विजय की पार्टी और डीएमके ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। यह मामला हाईकोर्ट तक पहुँचा।

हाईकोर्ट के फ़ैसलों पर सवाल

3 अक्टूबर को मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन. सेन्थिलकुमार ने विशेष जांच दल यानी एसआईटी गठित करने का आदेश दिया, जिसमें वरिष्ठ तमिलनाडु पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया। अदालत ने राज्य की प्रारंभिक जांच को मानकों से नीचे बताया। हालांकि, मदुरै बेंच ने सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका खारिज कर दी, जिससे विवाद बढ़ गया।

टीवीके ने हाईकोर्ट के सिंगल जज के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। पार्टी ने दावा किया कि राज्य पुलिस द्वारा निष्पक्ष जांच संभव नहीं है और भगदड़ के पीछे 'कुछ दुष्ट तत्वों की पूर्वनियोजित साजिश' हो सकती है।

पार्टी ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज की निगरानी में जाँच की मांग की। इसी तरह, बीजेपी नेता उमा आनंदन, जी.एस. मणि और कुछ पीड़ित परिवारों ने भी सीबीआई जांच की अपील की। एक याचिकाकर्ता सेलवराज पी. ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को 'खरोंच तक नहीं आई', जबकि आम लोग मारे गए।

10 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से सवाल किए कि 41 शवों का पोस्टमार्टम मात्र 3-4 घंटों में कैसे हो गया। जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और एन.वी. अंजरिया की बेंच ने हाईकोर्ट के दो बेंचों द्वारा विरोधाभासी फैसलों पर नाराजगी जताई। बेंच ने कहा कि मदुरै बेंच के समक्ष मामला लंबित होने पर चेन्नई के सिंगल जज को संज्ञान लेने का कोई आधार नहीं था। सरकार ने एसआईटी का बचाव किया, दावा किया कि चुने गए अधिकारी ईमानदार हैं, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा, 'निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। यह मामला संवेदनशील है, जिसमें साजिश की आशंका भी है।' अदालत ने एसआईटी को भंग कर सीबीआई को जांच सौंप दी। सीबीआई को मासिक रिपोर्ट समिति को जमा करने का निर्देश दिया गया।
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तीन सदस्यीय पैनल का गठन पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अजय रस्तोगी के नेतृत्व में किया गया है जो जल्लिकट्टू, चुनाव आयोग नियुक्तियों जैसे ऐतिहासिक मामलों पर फ़ैसले दे चुके हैं। समिति में दो आईपीएस अधिकारी शामिल होंगे, जिन्हें जस्टिस रस्तोगी चुनेंगे। आईपीएस अधिकारी तमिलनाडु कैडर से होंगे, लेकिन राज्य के मूल निवासी नहीं होंगे। यह पैनल जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित करेगा।

न्याय की उम्मीद

यह फैसला करूर भगदड़ के पीड़ितों के लिए राहत है, लेकिन सवाल बाकी हैं। सीबीआई जांच से सच्चाई सामने आएगी या राजनीतिक साजिशें उजागर होंगी? राज्य सरकार ने कहा कि वह अदालत के फैसले का सम्मान करेगी। एकल सदस्यीय जांच आयोग भी चल रहा है, लेकिन अब सीबीआई की रिपोर्ट निर्णायक होगी।

पीड़ित परिवारों की मांग है कि मुआवजा बढ़ाया जाए और दोषियों को सजा मिले। यह घटना राजनीतिक रैलियों में भीड़ प्रबंधन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया बनाने की ज़रूरत पर जोर देती है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न केवल न्याय सुनिश्चित करेगा, बल्कि भविष्य की ऐसी त्रासदियों को रोकने में मददगार साबित होगा।