Leh Firing Ladakh Latest Rahul Gandhi: विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लद्दाख में लेह हिंसा के दौरान चार नागरिकों की हत्या की न्यायिक जाँच की माँग की। केडीए ने सरकार के आरोपों को खारिज करते हुए सोनम वांगचुक समेत सभी गिरफ्तार लोगों की बिना शर्त रिहाई की माँग की।
लेह में हिंसा का फाइल फोटो
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लेह में पिछले हफ्ते हुई हिंसा के दौरान चार नागरिकों सहित एक पूर्व सैनिक की हत्या के मामले की न्यायिक जांच की मांग की है। उन्होंने मंगलवार को एक वीडियो शेयर करते हुए अपनी बात रखी। लद्दाख के मुद्दे पर करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए) ने मंगलवार को फिर कहा कि जब तक सोनम वांगचुक सहित सभी लोगों की रिहाई नहीं होती है, तब तक केडीए सरकार के साथ कोई बात नहीं करेगा।
राहुल ने वीडियो के साथ एक्स पर लिखा है- पिता फौजी, बेटा भी फौजी- जिनके खून में देशभक्ति बसी है। फिर भी BJP सरकार ने देश के वीर बेटे की गोली मारकर जान ले ली, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो लद्दाख और अपने अधिकार के लिए खड़ा था। पिता की दर्द भरी आंखें बस एक सवाल कर रही हैं- क्या आज देशसेवा का यही सिला है?
लद्दाख में हुई हत्याओं की न्यायिक जांच की मांग
नेता विपक्ष राहुल गांधी ने लिखा है- हमारी मांग है कि लद्दाख में हुई इन हत्याओं की निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी ही चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। मोदी जी, आपने लद्दाख के लोगों को धोखा दिया है। वो अपना हक़ मांग रहे हैं, संवाद कीजिए- हिंसा और डर की राजनीति बंद कीजिए।राहुल गांधी ने त्सेरिंग नामग्याल का वीडियो शेयर किया है। जिनका 46 वर्षीय पुत्र त्सेवांग तार्चिम उन लोगों में शामिल था, और दावा किया कि वे लद्दाख पुलिस और CRPF द्वारा गोलीबारी के दौरान मारे गए थे। त्सेरिंग नामग्याल ने कहा, “अगर SSP या DC के बेटे मारे गए होते, वे कैसा महसूस करते? उन्हें लगता है गरीब आदमी का बेटा मारना आसान है। यदि उनके बच्चे मारे जाते, वे इसे सहन नहीं कर पाते।” उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने 32 साल सेना की सेवा की है और हर कठिन इलाके में तैनात रहे।
लद्दाख पुलिस प्रमुख S. D. Singh Jamwal ने शनिवार को दावा किया था कि अर्द्धसैनिक बलों ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी क्योंकि 5,000–6,000 लोगों की भीड़ उनकी तरफ बढ़ रही थी और उन पर हमला होने का खतरा था। पुलिस फायरिंग में जिन अन्य तीन युवाओं की जान गई, वे हैं- जिगमेट डोरजे (25 वर्ष), स्तान्जिन नामग्याल (23 वर्ष) और रिंचेन दाडुल (20 वर्ष)।
हिंसा के बाद, पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को हिंसा भड़काने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें जोधपुर जेल में रखा गया है। तार्चिन उन लेह निवासियों में से थे जो क्षेत्र के लिए छठी अनुसूची (Sixth Schedule) की माँग के लिए भूख हड़ताल पर थे।
केडीए ने सरकार से बेसिर पैर के आरोप न लगाने को कहा
Kargil Democratic Alliance (KDA) ने मंगलवार को दिल्ली में फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने लद्दाख के डीजीपी के आरोपों पर जवाब दिया। केडीए ने कहा कि सोनम वांगचुक को पाकिस्तानी एजेंट बताना और हिंसा भड़काने वाला करार देना “बिना किसी ठोस सबूत” के आधार पर कहा जा रहा है। यह “बेसिर-ओ-पैर” का आरोप है। KDA ने निष्पक्ष न्यायिक जांच, हिंसा में शामिल सभी अधिकारियों की जवाबदेही, और वांगचुक एवं अन्य गिरफ्तार युवाओं की बिना शर्त रिहाई की भी मांग की। साथ ही KDA ने यह भी स्पष्ट किया कि लद्दाख में छठी अनुसूची और संवैधानिक सुरक्षा उनकी मांगों का अहम हिस्सा है और किसी भी हालत में इस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। यहां बताना ज़रूरी है कि लेह एपेक्स बॉडी और केडीए अब मिलकर लद्दाख के मुद्दों के लिए खड़ी हो गई हैं। हालांकि लेह और करगिल दोनों अलग इलाके हैं लेकिन केंद्र शासित लद्दाख का हिस्सा हैं।लेह फायरिंग की जांच नहीं हुई तो अविश्वास और बढ़ेगा
लेह की घटना ने केंद्र और लद्दाख के लोगों के बीच गहरे अविश्वास को और बढ़ा दिया है। अगर सरकार सुरक्षा बलों के दावे कि उन्होंने आत्मरक्षा में गोली चलाई, को सही साबित करना चाहती है, तो वो पारदर्शी और निष्पक्ष जांच की जरूरत को ठुकरा नहीं सकती। न्यायिक जांच की मांग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि साधारण पुलिस जांच पर जनता का भरोसा कम है, खासकर जब यह आरोप पुलिस बलों पर हों।लेह की घटना ने राज्य के दर्जे की माँग को और संवेदनशील बना दिया है। जब नागरिक, विशेष रूप से जेन ज़ी सरकार पर यह आरोप लगाते हैं कि उन्हें सम्मान की बजाय उन पर गोलियाँ चलाई गईं, तो यह सिर्फ विरोध तक नहीं सीमित रहेगा। यह लद्दाख में आंदोलन को और तेज़ करेगा। KDA और लेह अपेक्स बॉडी जैसे संगठनों का इस समय निष्पक्ष जांच और अधिकारों की माँग करना इसलिए स्वाभाविक है। राहुल गांधी के बयान ने दोनों संगठनों की आवाज़ को और मज़बूत कर दिया है।
लद्दाख केंद्र सरकार के लिए एक रणनीतिक संकट बन गया है। अगर वो कड़ा रुख अपनाती है, तो लद्दाखी जनता का विद्रोह और गहरा हो सकता है। अगर वो संवाद का रास्ता अपनाती है, लेकिन उसमें विश्वास और न्याय की गारंटी न हो, तो भी वह स्थिति को स्थिर नहीं कर पाएगी। इसलिए केंद्र को चाहिए कि वह संयम और संवेदनशीलता दिखाते हुए, जिम्मेदारी स्वीकार करे और आरोपों की पारदर्शी जांच कराए और शांति बहाल करने की प्रक्रिया शुरू करे।