जब हिंदू राष्ट्र प्रगति करता है, तो वह धर्म के लिए ही प्रगति करता है। यह भगवान की इच्छा है कि सनातन धर्म का उदय हो। ऐसा होने से हिंदुस्तान का उदय निश्चित है। धर्म को परिभाषित करते हुए भागवत ने कहा कि धर्म केवल पंथ, संप्रदाय या पूजा का ही एक रूप भर नहीं है। धर्म के मूल में सत्य, करुणा, पवित्र्ता, और तपस्या भी समान रूप से जरूरी हैं।