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हजारों साल से भारत की मजबूती रहा है धर्म: मोहन भागवत 

जब हिंदू राष्ट्र प्रगति करता है, तो वह धर्म के लिए ही प्रगति करता है। यह भगवान की इच्छा है कि सनातन धर्म का उदय हो। ऐसा होने से हिंदुस्तान का उदय निश्चित है। धर्म को परिभाषित करते हुए भागवत ने कहा कि धर्म केवल पंथ, संप्रदाय या पूजा का ही एक रूप भर नहीं है। धर्म के मूल में सत्य, करुणा, पवित्र्ता, और तपस्या भी समान रूप से जरूरी हैं।
धर्म के मसले पर संघ के विचार हमेशा से दोमुखी रहे हैं। ऐसे में मोहन भागवत द्वारा पांचज्नय को दिये साक्षात्कार में मुसलमानों को डरने की जरूरत नहीं है लेकिन उन्हें अपनी ऋेष्ठता छोड़नी होगी जैसे बयान यही दर्शाते हैं कि मुसलमानों को यहां रहने के लिए अपनी पहचान को कम करने की जरूरत है।  संघ हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए लगा हुआ है लेकिन उसकी यह मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। इसमें आने वाली अडचनों में यहां की सभ्यता औऱ संस्कृति है जो उसे ऐसा करने से रोक रही है। इसके लिए वह हमेशा एक काल्पनिक दुश्मन की तलाश में रहता है जिसका भय दिखाकर अपने मंसूबों को पूरा कर सके। 
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धर्म के मूल में सत्य, करुणा, पवित्रता और तपस्या समान रूप से जरूरी हैं।


मोहन भागवत: आरएसएस प्रमुख

बहुत सारे हमलों के बाद भी भारत दुनिया का सबसे अमीर देश बना हुआ है। यह इसलिए संभव हुआ कि यहां के लोगों ने धर्म के सत्व को बचाए रखा। भारत की यह स्थिति 1600 सालों तक कायम रही। उसके बाद भी यह अभी भी दुनिया के पांच सबसे अमीर देशों में से है। भागवत ने दावा किया कि 1860 में एक आक्रमणकारी ने धर्म के सत्व को समझा और इसको नष्ट करने के लिए उसने भारत में एक नई शिक्षा नीति को लागू किया। यह सब योजनाएं इसलिए बनाई गईं ताकि भारतीय एक साथ न आएं और लड़ते ही रहे। उनकी यह योजना से भारत की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
जिस शिक्षानीति के कारण भारत के गरीब हो जाने की बात मोहन भागवत कर हैं, उसी शिक्षा पद्धति पर संघ की इकाई विधा भारती के विद्यालय भी संचालित होते हैं, जहां पर वही शिक्षा दी जाती है जो दूसरे और विद्यालयों में। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे विद्या भारती द्वारा संचालिचत विद्यालयों में अपने मुताबिक शिक्षा पद्दति लागू करेंगे क्या? ज्ञात हो कि विद्या भारती देश भर में प्रचलित निजि विद्यालयों को सबसे बड़ा संगठन है। हालांकि संघ इससे पहले भी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल  उठाता रहा है। लेकिन कभी उसको बदलने की बात नहीं की है। सवाल उठाने से इतर वह अपने विद्यालयों में बच्चों को संस्कारवान बनाने का दावा करता रहा है। 
शिक्षा नीति पर सवाल उठाकर मोहन भागवत ने दरअसल ईसाइयों को निशाने पर लिया है। क्योंकि मुसलमानों के बाद ईसाई ही सबसे ज्यादा संघ के निशाने पर रहते हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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