सरकार विरोधी कंटेंट और सेंसरशिप का मुद्दा गंभीर होता जा रहा है। गृह मंत्रालय के सहयोग पोर्टल ने अपने पहले ही साल में 2,312 सामग्री हटाने के आदेश जारी किए, जो औसतन रोज़ाना 6 हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट में एक्स ने सरकार पर पहले से केस कर रखा है।
मोदी सरकार के सहयोग पोर्टल से ऑनलाइन कंटेंट ब्लॉक करने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है। आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2024 से अक्टूबर 2025 तक के पहले पूरे साल में कुल 2,312 ब्लॉकिंग ऑर्डर जारी किए गए। इससे औसतन प्रतिदिन लगभग 6 ऑर्डर जारी हुए। इनमें से अधिकांश ऑर्डर मेटा की सेवाओं व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम को भेजे गए, जो कुल ऑर्डर का 78 प्रतिशत से अधिक है। व्हाट्सएप को सबसे ज्यादा आदेश दिए गए।
ये ऑर्डर 19 ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को भेजे गए, जिनमें यूट्यूब और इंस्टाग्राम भी शामिल हैं। सहयोग पोर्टल भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) द्वारा संचालित है और इसका उद्देश्य अवैध कंटेंट को तेजी से हटाने में मदद करना है। यह पोर्टल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(b) के तहत काम करता है, जो प्लेटफॉर्म्स को अवैध कंटेंट हटाने का निर्देश देता है।
सहयोग पोर्टल लगातार विवादों में भी है। क्योंकि कई विशेषज्ञ इसे सेंसरशिप का हथियार मानते हैं। सहयोग पोर्टल से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में, एलन मस्क की कंपनी एक्स ने भारतीय सरकार के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। एक्स का आरोप था कि सहयोग पोर्टल धारा 69A की प्रक्रियाओं को बाइपास करके एक समानांतर सेंसरशिप व्यवस्था बना रहा है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। कंपनी ने इसे 'सेंसरशिप पोर्टल' करार दिया और दावा किया कि इससे बिना उचित प्रक्रिया के कंटेंट ब्लॉक किए जा रहे हैं।
हालांकि, सितंबर 2025 में कर्नाटक हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने एक्स की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया को अनियंत्रित नहीं छोड़ा जा सकता और सहयोग पोर्टल सार्वजनिक हित में है। कोर्ट ने इसे संवैधानिक रूप से वैध बताया। इसके बाद एक्स ने नवंबर 2025 में डिवीजन बेंच में अपील दायर की, जो अभी लंबित है। कंपनी ने कोर्ट को बताया कि जनवरी से जून 2025 तक उसे 29,118 टेकडाउन रिक्वेस्ट मिलीं, जिनमें से 91.49 प्रतिशत का पालन किया गया। यानी कंटेंट हटाने को कहा गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि सहयोग पोर्टल साइबर क्राइम से लड़ने में उपयोगी है, लेकिन इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है। सरकार का कहना है कि यह पोर्टल केवल अवैध कंटेंट जैसे डीपफेक, अश्लीलता या चुनाव प्रभावित करने वाले सामग्री को टारगेट करता है।
यह मामला भारत में डिजिटल सेंसरशिप और प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी पर बड़ी बहस छेड़ रहा है। सोशल मीडिया पर ही तमाम लोग सरकार पर विपक्ष और निष्पक्ष आवाजों को दबाने का आरोप लगा रहा है। सोशल मीडिया पर लोगों ने लिखा है कि सरकार विरोधी कंटेंट हटाने की बात आम हो गई है। यहां तक नेता विपक्ष के कंटेंट को रोका जा रहा है।