सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे पर जमकर बरसा। इसने दुबे की न्यायपालिका और सीजेआई संजीव खन्ना के ख़िलाफ़ की गई टिप्पणियों को अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना और अज्ञानता को दिखाने वाला क़रार दिया है। कोर्ट ने इन बयानों को संवैधानिक संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला माना और इस मामले में आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की संभावना पर विचार करने का संकेत दिया। यह विवाद तब शुरू हुआ था जब दुबे ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली और सीजेआई पर सवाल उठाए।

मामला पिछले महीने का है। निशिकांत दुबे तब विवाद में फँस गए जब 19 अप्रैल को उन्होंने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट पर 'देश में धार्मिक युद्ध भड़काने' का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से परे जा रहा है और संसद को निर्देश देने की कोशिश कर रहा है। दुबे ने सवाल उठाया, 'क्या हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा? अगर ऐसा है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।' इन टिप्पणियों ने तत्काल विवाद खड़ा कर दिया और विपक्षी दलों, कानूनी विशेषज्ञों और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई को इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए एक याचिका पर सुनवाई शुरू की, जिसमें दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मांग की गई थी। 5 मई को हुई सुनवाई में जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने दुबे की टिप्पणियों को 'न्यायपालिका की गरिमा को कम करने वाला' बताया। कोर्ट ने कहा, 'एक सांसद जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति से ऐसी टिप्पणियाँ अपेक्षित नहीं हैं। यह न केवल अज्ञानता को दिखाता है, बल्कि जनता के बीच न्यायपालिका के प्रति अविश्वास पैदा करता है।'

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को निर्देश दिया कि वे इस मामले की जाँच करें और यह तय करें कि क्या दुबे की टिप्पणियाँ अवमानना की श्रेणी में आती हैं। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि ये टिप्पणियाँ न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली पाई गईं तो दुबे के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें लोकसभा से निलंबन भी शामिल हो सकता है।

बीजेपी ने इस मामले में दुबे के बयानों से दूरी बनाते हुए कहा था कि यह उनका 'निजी विचार' है और पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है।

बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने एक बयान में कहा, 'हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं और किसी भी ऐसी टिप्पणी का समर्थन नहीं करते हैं जो संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाए।' हालाँकि, पार्टी ने दुबे के ख़िलाफ़ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की घोषणा नहीं की। दूसरी ओर, निशिकांत दुबे ने अपने बयानों का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें 'गलत संदर्भ' में लिया गया। उन्होंने दावा किया कि उनका इरादा न्यायपालिका का अपमान करना नहीं था, बल्कि वे संसद की सर्वोच्चता की रक्षा करना चाहते थे। हालाँकि, इस स्पष्टीकरण को सुप्रीम कोर्ट और क़ानूनी विशेषज्ञों ने अपर्याप्त माना।

विपक्षी दलों ने इस मामले में बीजेपी पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, 'बीजेपी बार-बार संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। दुबे का बयान इस मानसिकता का प्रमाण है।' आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने भी बीजेपी से दुबे को निलंबित करने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और वरिष्ठ अधिवक्ता आदिश अग्रवाल ने दुबे की टिप्पणियों की निंदा की। उन्होंने कहा, 'न्यायपालिका देश का आधार है। एक सांसद का इस तरह का बयान न केवल ग़ैर-ज़िम्मेदाराना है, बल्कि लोकतंत्र के लिए ख़तरा भी है।'

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 15 मई 2025 को निर्धारित की है। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से इस बीच एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। यदि दुबे की टिप्पणियाँ अवमानना की श्रेणी में पाई गईं तो उन्हें जुर्माना, कारावास या लोकसभा से निलंबन जैसे दंड का सामना करना पड़ सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मामले को गंभीरता से ले रहा है, क्योंकि यह न केवल न्यायपालिका की गरिमा से जुड़ा है, बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे से भी संबंधित है।

निशिकांत दुबे के बयानों और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया ने एक बार फिर विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन के सवाल को सामने ला दिया है। यह मामला न केवल एक सांसद की ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयानबाज़ी को दिखाता है, बल्कि यह भी कि संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को बनाए रखना कितना अहम है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आपराधिक अवमानना की संभावना जताई है। भारतीय कानून के तहत, न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणियां अवमानना का आधार बन सकती हैं। यदि दुबे दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें कड़ी सजा मिल सकती है। अवमानना अधिनियम 1971 के तहत दोषी को छह महीने तक की जेल या 2000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लोकसभा स्पीकर दुबे को निलंबित कर सकते हैं। कोर्ट दुबे को अपनी टिप्पणियों के लिए सार्वजनिक माफी मांगने का निर्देश दे सकता है।

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दुबे ने अभी तक अपनी टिप्पणियों के लिए माफी नहीं मांगी है, हालांकि उन्होंने कहा कि उनके बयानों को गलत संदर्भ में लिया गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनका इरादा न्यायपालिका का अपमान करना नहीं था, बल्कि वे संसद की सर्वोच्चता की रक्षा करना चाहते थे। हालाँकि, यह स्पष्टीकरण क़ानूनी और राजनीतिक हलकों में स्वीकार्य नहीं माना गया।

यह मामला भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए काफ़ी अहम साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और उसके फ़ैसले से न केवल दुबे के भविष्य पर असर पड़ेगा, बल्कि यह भविष्य में राजनेताओं के लिए एक मिसाल भी कायम करेगा। यदि कोर्ट कड़ी कार्रवाई करता है, तो यह संदेश जाएगा कि संवैधानिक संस्थाओं का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि मामला हल्का पड़ता है, तो यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर और सवाल उठा सकता है।