कांग्रेस नेता शशि थरूर ने फिर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी को दशकों तक 'जन सेवा' करने वाला बताया और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और 'आयरन लेडी' इंदिरा गांधी से तुलना कर दी। इतना ही नहीं, उन्होंने इस तुलना के लिए  नेहरू और इंदिरा गांधी की खामियाँ तक गिना दीं। थरूर के इस बयान पर सोशल मीडिया पर लोग उनपर टूट पड़े। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े तक थरूर की तारीफ़ पर बड़े सवाल खड़े किए और पूछा कि 'नफ़रत के बीज बोना जन सेवा' कब से हो गया।

यह विवाद तब खड़ा हुआ जब हाल में कांग्रेस के ख़िलाफ़ बयान देकर सुर्खियों में रहे शशि थरूर ने लालकृष्ण आडवाणी के 98वें जन्मदिन पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि उनकी दशकों लंबी सार्वजनिक सेवा को केवल एक घटना के आधार पर आंकना अन्याय होगा। थरूर का इशारा शायद आडवाणी की राम रथ यात्रा और बाबरी विध्वंस से जुड़े विवाद की तरफ़ था। थरूर ने इसकी तुलना जवाहरलाल नेहरू की 1962 की चीन से हार और इंदिरा गांधी के आपातकाल से की। 
थरूर का यह बयान आडवाणी को जन्मदिन की शुभकामना देने के तुरंत बाद आया। इसमें थरूर ने उन्हें सच्चा राजनेता बताया। उन्होंने लिखा, 'आदरणीय श्री एल.के. आडवाणी को 98वें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं! सार्वजनिक सेवा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, उनकी विनम्रता और शालीनता तथा आधुनिक भारत के पथ को आकार देने में उनकी भूमिका अमिट है। सेवा का जीवन अनुकरणीय रहा है।'

जब लोगों ने सवाल उठाए तो थरूर ने लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ़ में एक्स पर लिखा, 'उनके लंबे वर्षों की सेवा को एक घटना, चाहे वह कितनी भी महत्वपूर्ण हो, तक सीमित करना अन्यायपूर्ण है। जैसे नेहरूजी के करियर को केवल चीन की हार से परिभाषित नहीं किया जा सकता, न ही इंदिरा गांधी की केवल आपातकाल से, उसी निष्पक्षता को आडवाणीजी के लिए भी दिखाया जाना चाहिए।'

सोशल मीडिया पर बवाल

थरूर की प्रशंसा के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। कई यूजरों ने उन्हें 'भाजपा के विभाजनकारी राजनीति को नज़रअंदाज करने' का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, “इस देश में ‘घृणा के बीज’ बोना सार्वजनिक सेवा नहीं है।”

हेगड़े ने आगे लिखा, 'रथ यात्रा कोई एक घटना नहीं थी। यह भारतीय गणराज्य के आधारभूत सिद्धांतों को उलटने की लंबी यात्रा थी। इसने 2002 और 2014 और उसके बाद की घटनाओं की नींव रखी। जैसे द्रौपदी का अपमान महाभारत का कारण बना, वैसे ही रथ यात्रा और उसकी हिंसा की विरासत आज भी देश के भाग्य को सताती है। अपनी मौजूदा तीरों की शैय्या से उन्होंने कोई राजधर्म भी नहीं सिखाया।'

एक्स पर थरूर और हेगड़े के बीच बहस हुई, जिसमें थरूर ने नेहरू-इंदिरा की तुलना दोहराते हुए आडवाणी की लंबी 'सेवा' पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, एक व्यक्ति की समग्र योगदान को एक घटना से नहीं मापा जाना चाहिए।

आडवाणी की रथ यात्रा क्या थी?

आडवाणी की राम रथ यात्रा 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से शुरू हुई थी और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने का मक़सद बताया गया था। आरोप लगाया जाता है कि आडवाणी की इस रथ यात्रा से देश भर में नफ़रत का वातावरण बना और घृणा का बीज बोया गया। यही कारण था कि यह यात्रा बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा समस्तीपुर में रोक दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस हो गया, जिसमें आडवाणी प्रमुख आरोपी थे। इस घटना के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें हजारों लोग मारे गए।

आडवाणी को 2024 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था, जिस पर भी कांग्रेस ने सवाल उठाए थे। विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाए थे कि जिनपर बाबरी मस्जिद गिराने का आरोप लगा उनको ऐसा सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए। 98 वर्षीय आडवाणी अब सार्वजनिक जीवन से लगभग संन्यास ले चुके हैं। स्वास्थ्य कारणों से वे सक्रिय राजनीति से दूर हैं।

थरूर की बीजेपी नेताओं पर टिप्पणियाँ

यह पहली बार नहीं है जब थरूर ने बीजेपी नेताओं की प्रशंसा की हो। इससे पहले उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी और एस. जयशंकर की विदेश नीति की तारीफ की थी। थरूर का कहना है कि 'राजनीतिक मतभेद व्यक्तिगत सम्मान को नहीं रोकते।'

थरूर अक्सर अपनी पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग हटकर बीजेपी सरकार की नीतियों या नेताओं की सराहना करते रहे हैं। यह उनकी 'राष्ट्रीय हित' वाली सोच का हिस्सा माना जाता है, जहाँ वे कहते हैं कि 'राजनीतिक मतभेद सीमाओं पर ख़त्म हो जाते हैं'। थरूर ने इस साल पीएम मोदी की तारीफ़ की, 'भारत के पास अब एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो यूक्रेन और रूस के राष्ट्रपतियों को दो हफ्तों में गले लगवा सकता है और दोनों जगह स्वीकार किया जाता है।' 

ऑपरेशन सिंदूर पर थरूर ने कहा, 'यह मजबूत और अच्छी तरह से योजनाबद्ध कार्रवाई थी।' उन्होंने पीएम मोदी की 'ऊर्जा, गतिशीलता और संवाद की इच्छा' को वैश्विक मंच पर भारत का प्रमुख एसेट बताया। थरूर ने खुद एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और इसे 'राष्ट्रीय एकता का प्रतीक' कहा। थरूर ने मोदी सरकार की 'वैक्सीन मैत्री' को सराहा, कहा, 'यह भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक था, जिसने वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति में भारत को नेता बनाया।' उन्होंने इसे मोदी के नेतृत्व से जोड़ा, जो कई देशों को वैक्सीन निर्यात का श्रेय देता है। अब थरूर ने आडवाणी की तारीफ़ की है।