CSDS Lokniti Survey ECI: लोकनीति सीएसडीएस की एक स्टडी में कहा गया है कि किस तरह चुनाव आयोग के एसआईआर (विशेष मतदाता सूची संशोधन अभियान) से लोगों का भरोसा भारत के चुनाव आयोग पर लगातार कम हो रहा है।
भारत के चुनाव आयोग में जनता का भरोसा तेजी से गिरा है। द हिंदू में प्रकाशित CSDS Lokniti Survey यही बता रहा है। ये हालात ईसीआई के विशेष मतदाता सूची संशोधन अभियान (एसआईआर) के बाद बने हैं। बिहार एसआईआर गरीब तबके में जबरदस्त आलोचना का विषय बन गया है। एसआईआर में जिन दस्तावेजों की जरूरत है, गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के पास वो दस्तावेज नहीं हैं। इसलिए उनके मताधिकार पर खतरा मंडरा रहा है। इस अभियान में मतदाता सूची को पूरी तरह ठीक करने के लिए जिन दस्तावेजों की मांग की जा रही है, जिसके अभाव में लाखों लोग मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। यह स्थिति न केवल गरीबों के लिए खतरा है, बल्कि निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रही है। हालात ये हैं कि बिहार में गरीब तबके और हाशिए पर रहने वालों के पास आधार, पैन और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज भी नहीं हैं।
लोकनीति-सीएसडीएस के एक अध्ययन में यह सामने आया है कि ग्रामीण और शहरी गरीब समुदायों, खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के पास आवश्यक दस्तावेजों की कमी है। इस अध्ययन में शामिल विशेषज्ञों संजय कुमार, संदीप शास्त्री, कृषांगी सिन्हा और सुहास पलसीकर ने चेतावनी दी है कि दस्तावेजों की अनिवार्यता से समाज के कमजोर वर्गों को मतदान के अधिकार से वंचित किया जा सकता है।
गांवों में 20% लोगों के पास आधार तक नहीं
अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 20% आबादी के पास आधार कार्ड या अन्य वैध पहचान पत्र नहीं हैं। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां लोग अक्सर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं, उनके पास जन्म प्रमाण पत्र, पैन कार्ड या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं होते। इसके अलावा, बेघर लोग, प्रवासी मजदूर और स्लमवासियों जैसे समूहों को इस प्रक्रिया में और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।चुनाव आयोग पर राज्यवार भरोसे का हाल
- असम (Assam) में 2019 में 47% था तो 2025: 35% लोगों का भरोसा आयोग पर रह गया। इसी तरह नो ट्रस्ट (विश्वास नहीं) का लेवल 6% से बढ़कर 17% हो गया।
- केरल (Kerala) में 2019 में 57% तो 2025: 35% में महज़ लोगों का भरोसा कायम है। इसी तरह नो ट्रस्ट तो 10% से बढ़कर 24% तक पहुंच गया।
- मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में जहां 2019 में 57% लोगों को भरोसा था, वहीं 2025 में यह घटकर 17% रह गया। जबकि नो ट्रस्ट का स्तर 6% से बढ़कर 22% तक पहुंच गया।
- उत्तर प्रदेश (UP) में 2019 में 56% लोग चुनाव आयोग पर भरोसा कर रहे थे लेकिन 2025 में यह सिर्फ 21% रह गया। जबकि नो ट्रस्ट तो 11% से खिसककर 31% पर जा पहुंचा।
- पश्चिम बंगाल (West Bengal) में 2019 में 48% तो 2025 में 42% लोगों का भरोसा आयोग बना हुआ है। इसी तरह नो ट्रस्ट में भी 8% से बढ़कर 11% पर पहुंच गया।
- दिल्ली (Delhi) में चुनाव आयोग पर 2019 में 60% लोगों को भरोसा था। लेकिन 2025 में 21% लोगों का ही भरोसा बचा है। जबकि नो ट्रस्ट तो 11% से बढ़कर 30% पर जा पहुंचा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार जैसे राज्यों में हाल ही में हुए विशेष संशोधन अभियान में हजारों मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए, जिसके बाद विपक्षी दलों ने "वोट चोरी" का आरोप लगाया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे पर लोगों से आवाज उठाने की अपील की, जबकि बीजेपी ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, स्टालिन और ममता बनर्जी जैसे नेताओं के निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाया।
लेकिन चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से हलफनामा मांगा। जबकि बीजेपी नेताओं से अभी तक कोई हलफनामा नहीं मांगा गया। अब तो चुनाव आयोग ने राहुल को अल्टीमेटम भी दे दिया है।
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल
निर्वाचन आयोग का यह कदम, जो मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने के लिए उठाया गया है, अब विवादों के घेरे में है। विशेषज्ञों का कहना है कि दस्तावेजों की अनिवार्यता से न केवल गरीबों का मताधिकार छिन सकता है, बल्कि यह आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईसीआई ने हाल ही में तेज राजनीतिक होड़ के बीच फंसे होने की बात स्वीकार की है। बता दें कि कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर बीजेपी का एजेंट होने का आरोप लगाया है।
लोकनीति-सीएसडीएस ने सुझाव दिया है कि निर्वाचन आयोग को दस्तावेजों की अनिवार्यता को लचीला करना चाहिए और वैकल्पिक तरीकों, जैसे सामुदायिक सत्यापन या शपथ पत्र, को अपनाना चाहिए। इसके अलावा, मतदाता जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को दस्तावेज प्राप्त करने में मदद करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि अगर इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो यह न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करेगा, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों के प्रति अन्याय को और बढ़ाएगा।
CSDS और लोकनीति सर्वे की खास बातें
रिपोर्ट यह बताने की कोशिश कर रही है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया में किसे नुकसान होगा और चुनावों तथा चुनाव आयोग में नागरिकों के विश्वास पर इसके क्या प्रभाव होंगे।
• सभी जाति समूहों में दस्तावेज़ों तक असमान पहुँच स्पष्ट है, आधार कार्ड लगभग सभी जाति समूहों में सर्वव्यापी हैं।
• सामान्य श्रेणी के उत्तरदाताओं में पैन कार्ड सबसे अधिक है, लेकिन अनुसूचित जाति (एससी) में यह आधे से थोड़ा अधिक है।
• सभी सामाजिक समूहों में पासपोर्ट दुर्लभ हैं, सामान्य श्रेणी में लगभग हर पाँच में से एक के पास ही पासपोर्ट है।
• दसवीं कक्षा और निवास प्रमाण पत्र भी इसी तरह के पैटर्न का पालन करते हैं, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और सामान्य समूहों में इनकी संख्या अधिक है।
• अनुसूचित जनजाति के उत्तरदाताओं में जाति प्रमाण पत्र अधिक आम हैं, हर पाँच में से चार के पास यह है।
• राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दस्तावेज़ लगभग सभी समूहों में सर्वव्यापी हैं।
• माता-पिता के दस्तावेज़ों की स्थिति भी असमान पहुँच दर्शाती है, सभी जाति समूहों में बड़ी संख्या में लोगों ने बताया कि उनके माता-पिता के पास महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों का अभाव है।
• आर्थिक स्थिति इस खाई को और गहरा करती है, क्योंकि धनी उत्तरदाताओं के पास पैन कार्ड, पासपोर्ट और शैक्षिक प्रमाणपत्र होने की संभावना अधिक होती है।
• दस्तावेज़ों की कुल अनुपलब्धता में राज्य-स्तरीय भिन्नताएँ भी उजागर होती हैं, जहाँ उत्तर प्रदेश और दिल्ली में दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता का स्तर सबसे अधिक है।
चुनाव आयोग को यह तय करना होगा कि मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया सभी को साथ लेकर चलने वाली हो और कोई भी नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न हो। यह समय है कि नीति निर्माता और प्रशासन इस चुनौती का समाधान करें ताकि भारत का लोकतंत्र और मजबूत हो, न कि कमजोर।