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कप्पन को आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट से आख़िरकार जमानत मिल गई है। कोर्ट ने कहा कि कप्पन को 3 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में ले जाया जाए और ट्रायल कोर्ट द्वारा उचित समझी जाने वाली शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाए। उन्हें यूपी पुलिस ने 2020 में गिरफ्तार किया था। तब से लेकर अब तक उनकी जमानत याचिकाएँ कई आधार पर लगातार खारिज की जाती रही हैं। कप्पन पर हाथरस बलात्कार मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज है। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने उन्हें अगले 6 सप्ताह के लिए दिल्ली में रहने के लिए कहा और उसके बाद उन्हें इस शर्त पर केरल वापस जाने की अनुमति दी कि वह हर हफ्ते स्थानीय पुलिस स्टेशन में उपस्थिति दर्ज कराने जैसी शर्तें पूरी करेंगे। इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट ने की। 

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पिछले महीने ही 4 अगस्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ कप्पन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।

शुरुआत में सीजेआई यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने पूछा कि वास्तव में कप्पन के खिलाफ क्या पाया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कप्पन के खिलाफ मिली सामग्री को सूचीबद्ध किया। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि- 'कप्पन सितंबर 2020 में पीएफआई की बैठक में थे। बैठक में कहा गया कि फंडिंग रुक गई थी। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि वे संवेदनशील क्षेत्रों में जाएँगे और दंगे भड़काएँगे। 5 अक्टूबर को उन्होंने दंगा भड़काने के लिए हाथरस जाने का फ़ैसला किया था। दंगा भड़काने के लिए 45,000 रुपये दिए गए थे। उन्होंने एक अखबार से मान्यता प्राप्त होने का दावा किया था। लेकिन हमने पाया है कि उन्हें पीएफआई के आधिकारिक संगठन से मान्यता प्राप्त थी। पीएफआई को एक आतंकवादी समूह के रूप में अधिसूचित किया जाना है। झारखंड ने अधिसूचित किया है कि यह एक आतंकवादी समूह है। वह दंगे भड़काने के लिए वहाँ था। यह 1990 में बॉम्बे में जो हुआ था वह कुछ वैसा ही है।'

सरकारी वकील की दलील सुनने के बाद अपने फ़ैसले में सीजेआई ललित ने कहा, 

हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार है। वह यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि पीड़ित को न्याय की ज़रूरत है और एक आवाज़ उठाएँ। क्या यह कानून की नजर में अपराध है?


सीजेआई यूयू ललित, सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की पीठ सरकारी वकील के तर्कों से संतुष्ट नहीं थी। निर्भया मामले में विरोध प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए जस्टिस भट ने पूछा, 'इसी तरह के विरोध 2012 में इंडिया गेट पर हुए थे, जिसके कारण कानून में बदलाव हुआ था। अब तक आपने कुछ भी भड़काऊ नहीं दिखाया है।'

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सीजेआई ललित ने आगे पूछा कि कप्पन के लोगों या उनके पास क्या पाया गया जब उन्हें हिरासत में लिया गया था। इस पर जेठमलानी ने कहा कि एक पहचान पत्र और कुछ साहित्य मिला है। सीजेआई ने पूछा-

एक है आईडी कार्ड, और कुछ साहित्य, कोई विस्फोटक मिला? आपके अनुसार साहित्य उनको हिरासत में लिए जाने के दौरान मिला था?


सीजेआई यूयू ललित, सुप्रीम कोर्ट

इस पर जेठमलानी ने नहीं में जवाब दिया और कहा कि कोई विस्फोटक नहीं मिला। वरिष्ठ वकील सिब्बल ने कहा कि साहित्य कार में मिला था। 

सीजेआई ने नोट किया- 'इससे बेहतर आप कह सकते हैं कि यह आदमी एक कार में यात्रा कर रहा था, और उसे तीन अन्य लोगों के साथ पकड़ा गया था, कार में कुछ साहित्य था, अन्य तीन पीएफआई से जुड़े हुए हैं? ...उन पर किस अपराध का आरोप है... 153ए?'

वरिष्ठ अधिवक्ता जेठमलानी ने कहा कि यह 124ए को लागू करने के लिए भी एक उपयुक्त मामला था क्योंकि आरोपी व्यक्ति एक नाबालिग लड़की के बलात्कार का उपयोग करके असंतोष पैदा कर रहे थे। सीजेआई ललित ने पूछा कि क्या मुकदमे के जल्द खत्म होने की कोई संभावना है। इस पर जेठमलानी ने यह कहते हुए जवाब दिया कि राज्य मुकदमे में तेजी लाने का प्रयास कर रहा है।

पीठ ने पूछा कि क्या आरोपी ने कार में मिले साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए कुछ किया है। इस पर जेठमलानी ने कहा कि राज्य के पास इसे साबित करने के लिए सह-आरोपियों के बयान हैं। हालाँकि, सीजेआई ने कहा कि सह-आरोपी के बयानों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। जब जेठमलानी ने कहा कि वे एक गवाह बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो सीजेआई ललित ने टिप्पणी की कि यदि किसी को सरकारी गवाह बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तो इसका मतलब है कि मामला सुनवाई के लिए तैयार नहीं है।
कप्पन को अक्टूबर 2020 में एक दलित महिला की हत्या के बाद हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था। हाथरस में एक दलित युवती से चार सवर्णों ने कथित तौर पर गैंग रेप किया था और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी थी।

इस पर विवाद तब और बढ़ गया था जब प्रशासन ने कथित रूप से अभिभावकों की सहमति के बिना ही लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया था। इसको लेकर प्रशासन की काफ़ी आलोचना हुई थी। इस बीच पुलिस ने कहा था कि उसने चार लोगों को मथुरा में पीएफ़आई के साथ कथित जुड़ाव के आरोप में गिरफ्तार किया और चारों की पहचान केरल के मालप्पुरम के सिद्दीक कप्पन, उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के अतीक-उर-रहमान, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के आलम के तौर पर हुई।

हाथरस की उस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस मामले में यूपी सरकार की किरकिरी हुई थी। इसके बाद यूपी सरकार ने कार्रवाई की और कहा कि सरकार को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी। इसी साज़िश में शामिल होने का आरोप कप्पन पर भी लगा।

पुलिस ने कहा था कि कप्प हाथरस में कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि आरोपियों के पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबंध थे। पत्रकार ने कहा है कि वह निर्दोष है और उन्हें फँसाया जा रहा है।
कप्पन की गिरफ़्तारी के क़रीब एक साल बाद इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। यूपी एसटीएफ़ की चार्जशीट में कहा गया था कि सिद्दीक कप्पन ने मुसलिमों को पीड़ित बताया, मुसलिमों को भड़काया, वामपंथियों व माओवादियों से सहानुभूति जताई।

2021 में सितंबर के आख़िर में दाखिल 5000 पन्ने की चार्जशीट में कप्पन द्वारा मलयालम मीडिया में लिखे गए उन 36 लेखों का हवाला दिया गया जो कोरोना संकट के बीच निजामुद्दीन मरकज, सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन, उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा, अयोध्या में राम मंदिर और राजद्रोह केस में जेल में बंद शरजील इमाम के आरोप-पत्र को लेकर लिखे गए थे।

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'द इंडियन एक्सप्रेस' ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी थी कि एसटीएफ़ की चार्जशीट के नोट में निष्कर्ष निकाला गया, 'सिद्दीक कप्पन के उन लेखों को काफी हद तक सांप्रदायिक कहा जा सकता है। दंगों के दौरान अल्पसंख्यक का नाम लेना और उनसे जुड़ी घटनाओं के बारे में बात करना भावनाओं को भड़का सकता है। ज़िम्मेदार पत्रकार ऐसी सांप्रदायिक रिपोर्टिंग नहीं करते। कप्पन केवल और केवल मुसलमानों को उकसाने की रिपोर्ट करते हैं, जो कि पीएफ़आई का एक छिपा हुआ एजेंडा है। कुछ रिपोर्ट माओवादियों और कम्युनिस्टों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए लिखी गई थीं।'
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क़मर वहीद नक़वी
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