एससी/एसटी क़ानून आज फिर वहीं खड़ा है जहाँ यह क़रीब डेढ़ साल पहले था। सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून में बदलाव किया था और अब फिर से सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने उसी फ़ैसले को पलट दिया है। बस अंतर इतना है कि पहले का फ़ैसला दो जजों की बेंच ने दिया था और अब जिसने फ़ैसला दिया है वह तीन जजों की बेंच है। कोर्ट के पहले के फ़ैसले के बाद एससी/एसटी क़ानून को कमज़ोर किए जाने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद इस पर विवाद हुआ। हंगामा, प्रदर्शन और तोड़फोड़ हुई। राजनीति भी हुई। एससी/एसटी समुदाय में बड़े नुक़सान को देखते हुए बीजेपी ने दोतरफ़ा प्रयास शुरू कर यह सफ़ाई देने की कोशिश की कि वह एससी/एसटी क़ानून को कमज़ोर नहीं करना चाहती। एक तो इसने संसद में नया क़ानून बनाया और दूसरी तरफ़ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका लगाई।