क्या तमिलनाडु सरकार सरकारी योजनाओं में मुख्यमंत्री स्टालिन के नाम का इस्तेमाल कर सकती है? इस मुद्दे पर तमिलनाडु सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत मिली है। जानिए, याचिकाकर्ता सांसद को कितना बड़ा झटका लगा।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फ़ैसले में मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें तमिलनाडु सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नाम और तस्वीर के उपयोग पर रोक लगाई गई थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिका दायर करने वाले अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी AIADMK के सांसद सी. वी. शनमुगम पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने इस राशि को तमिलनाडु सरकार को जमा करने का निर्देश दिया और यह शर्त रखी कि इसका इस्तेमाल वंचितों के लिए कल्याणकारी योजना के लाभ में किया जाए।
तमिलनाडु सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नाम को इस्तेमाल करने पर विवाद तब शुरू हुआ था जब AIADMK सांसद सी. वी. शनमुगम ने तमिलनाडु सरकार की जनसंपर्क योजना 'उंगलुदन स्टालिन' (आपके साथ स्टालिन) और 'नलम काक्कुम स्टालिन' (स्वास्थ्य रक्षा स्टालिन) में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नाम के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ मद्रास हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। शनमुगम ने तर्क दिया था कि किसी जीवित राजनेता के नाम पर सरकारी योजनाओं का नामकरण करना और उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल करना सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और सरकारी विज्ञापन (सामग्री विनियमन) दिशानिर्देशों, 2014 का उल्लंघन है।
मद्रास हाई कोर्ट ने 31 जुलाई 2025 को एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को नई या पुनर्ब्रांडेड योजनाओं में किसी जीवित व्यक्ति के नाम, पूर्व मुख्यमंत्रियों की तस्वीरों, वैचारिक नेताओं या द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के प्रतीक, चिह्न या झंडे का इस्तेमाल करने से रोक दिया गया। हाई कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि यह आदेश योजनाओं के कार्यान्वयन को नहीं रोकेगा, बल्कि केवल उनके नामकरण और प्रचार सामग्री पर लागू होगा।
तमिलनाडु सरकार की अपील
तमिलनाडु सरकार ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सरकार की ओर से तर्क दिया कि यह एक असामान्य और तत्काल मामला है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'यह बहुत ही असामान्य और ज़रूरी मामला है। हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार की कोई भी योजना मुख्यमंत्री या किसी अन्य राजनेता के नाम पर नहीं हो सकती। ये योजनाएँ गरीबों के कल्याण के लिए हैं।'
मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि मुख्यमंत्री एक संवैधानिक पदाधिकारी हैं, न कि केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व, और सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों की तस्वीरों के उपयोग पर साफ़ तौर पर रोक नहीं लगाई है।
तमिलनाडु सरकार ने दलील दी कि 'उंगलुदन स्टालिन' और 'नलम काक्कुम स्टालिन' योजनाओं के लिए सरकारी आदेश पहले ही जारी किए जा चुके हैं और प्रचार सामग्री भी छप चुकी है। सरकार ने चेतावनी दी कि हाई कोर्ट के आदेश को तत्काल लागू करने से ये योजनाएँ पूरी तरह से रुक सकती हैं, जिससे जनता को नुकसान होगा।
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने तमिलनाडु सरकार की अपील पर सुनवाई की। कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल तमिलनाडु सरकार और इसके मुख्यमंत्री को निशाना बनाया, जबकि अन्य राज्यों में भी समान योजनाएँ हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की, 'जब ऐसी योजनाएँ सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम पर शुरू की जाती हैं, तो हम याचिकाकर्ता की इस चिंता की सराहना नहीं करते कि उन्होंने केवल एक राजनीतिक दल और एक राजनीतिक नेता को चुना।'
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने निर्वाचन आयोग को आवेदन देने के तीन दिन बाद ही हाई कोर्ट का रुख किया, जिसे कोर्ट ने 'कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग' क़रार दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने राजनीतिक लड़ाइयों को अदालतों से बाहर रखने की वकालत की।
याचिकाकर्ता पर जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने AIADMK सांसद सी. वी. शनमुगम पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि इस राशि को तमिलनाडु सरकार के पास जमा किया जाए। कोर्ट ने यह शर्त रखी कि इस राशि का उपयोग वंचितों के लिए कल्याणकारी योजना के लाभ में किया जाए। यह फ़ैसला न केवल तमिलनाडु सरकार के लिए राहत लेकर आया, बल्कि यह भी संदेश देता है कि अदालतें राजनीतिक विवादों का अखाड़ा नहीं बननी चाहिए।
सुनवाई के दौरान अन्य राज्यों में सरकारी योजनाओं में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के नाम इस्तेमाल होने की दलील दी गई। मद्रास हाईकोर्ट में भी तमिलनाडु सरकार ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में 'नमो' (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए) और तमिलनाडु में AIADMK सरकार के कार्यकाल (2011-2021) के दौरान 'अम्मा' (पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के लिए) जैसे राजनीतिक उपनामों का उपयोग योजनाओं के लिए किया है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब अन्य राज्यों में इस तरह के नामकरण सामान्य हैं, तो केवल तमिलनाडु सरकार को क्यों निशाना बनाया गया।
यह फैसला तमिलनाडु सरकार के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इससे 'उंगलुदन स्टालिन' और 'नलम काक्कुम स्टालिन' जैसी योजनाओं का कार्यान्वयन बिना किसी रुकावट के जारी रहेगा। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ़ किया कि सरकारी योजनाओं का नामकरण एक निर्वाचित सरकार के कार्यकारी और नीतिगत अधिकार क्षेत्र में आता है, और इसे तब तक हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए जब तक कि यह संवैधानिक या वैधानिक उल्लंघन न हो।