सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को उनके उस दावे के लिए कड़ी फटकार लगाई, जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। कोर्ट ने राहुल गांधी से सवाल किया, 'आपको कैसे पता कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सामग्री है?' कोर्ट ने यह भी कहा कि 'यदि आप सच्चे भारतीय हैं, तो आप ऐसी बातें नहीं कहेंगे।' हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में चल रही मानहानि की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फ़ैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, इसके बाद राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट पहुँचे।

यह विवाद राहुल गांधी के 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दिए गए बयानों से शुरू हुआ। यात्रा के दौरान, राहुल गांधी ने दावा किया था कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है और अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को 'पीट रहे हैं।' इसके अलावा उन्होंने 2020 के गलवान घाटी संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा था कि 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और सरकार ने इस मामले में 'जमीन को आत्मसमर्पण' कर दिया। राहुल गांधी ने यह भी कहा था कि उन्होंने पूर्व सैन्य अधिकारियों और लद्दाख के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी, जिन्होंने उन्हें बताया कि कई गश्त बिंदु, जो पहले भारतीय क्षेत्र में थे, अब चीनी नियंत्रण में हैं।
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इन बयानों के आधार पर पूर्व बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन यानी बीआरओ के निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक विशेष अदालत में मानहानि का मुक़दमा दायर किया। शिकायत में आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के बयान झूठे और आधारहीन थे और उनका उद्देश्य भारतीय सेना का मनोबल तोड़ना और राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाना था।

सुप्रीम कोर्ट की राहुल गांधी की टिप्पणी पर नाराज़गी

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष हुई। राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की। कोर्ट ने राहुल गांधी के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा, 'आप विपक्ष के नेता हैं, आप ऐसी बातें क्यों कहेंगे? आप इन्हें संसद में क्यों नहीं उठाते? सोशल मीडिया पर ऐसी बातें कहने की क्या ज़रूरत है?' 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा - संसद में बोलो, सोशल मीडिया पर नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील बातों को सार्वजनिक मंचों पर उठाने के बजाय संसद में चर्चा की जानी चाहिए।

जस्टिस दत्ता ने सिंघवी से पूछा, 'क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सबूत है कि चीन ने 2,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है? क्या आप वहां मौजूद थे?' कोर्ट ने यह भी कहा कि नेतृत्व की ज़िम्मेदारी में सावधानीपूर्वक और सबूतों पर आधारित आरोप लगाना शामिल है।

राहुल गांधी की चीन पर टिप्पणी से सेना की छवि प्रभावित?

सिंघवी ने तर्क दिया कि अगर विपक्ष का नेता राष्ट्रीय हित के मुद्दों को प्रेस में नहीं उठा सकता तो यह एक 'दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति' होगी। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी के बयान पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में मौजूद जानकारी पर आधारित थे। हालाँकि, कोर्ट ने इस तर्क को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया और कहा कि स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति का अधिकार सेना जैसे संवैधानिक संस्थानों की मानहानि तक नहीं फैलता।
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राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि की कार्यवाही पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को भारतीय सेना पर की गई टिप्पणी के लिए फटकार लगाई, लेकिन साथ ही लखनऊ की विशेष अदालत में उनके ख़िलाफ़ चल रही मानहानि की कार्यवाही पर तीन सप्ताह के लिए अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता उदय शंकर श्रीवास्तव को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई के लिए समय निर्धारित किया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख

इससे पहले मई 2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राहुल गांधी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने लखनऊ की विशेष अदालत द्वारा फरवरी 2025 में जारी समन और मानहानि मामले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सेना जैसी संस्थाओं की मानहानि तक नहीं फैलता। 
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राहुल के बयान पर नेताओं ने क्या कहा

राहुल गांधी के बयानों और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने एक्स पर एक पोस्ट में राहुल गांधी के दावों को "झूठा नैरेटिव" बताया और कहा कि "चीन ने अरुणाचल प्रदेश में एक इंच जमीन भी नहीं ली है।" बीजेपी नेता अमित मालवीया ने भी एक्स पर राहुल गांधी की आलोचना करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर 'चाइना गुरु' राहुल गांधी को राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता से संबंधित गैर-जिम्मेदार बयानों के लिए फटकार लगाई है। 

वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता अर्शप्रीत खडियाल ने राहुल गांधी का बचाव करते हुए कहा कि विपक्ष का काम सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना है और राहुल गांधी ने वही किया।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राहुल गांधी के लिए एक ओर जहां राहत लेकर आया है, वहीं दूसरी ओर उनके बयानों की विश्वसनीयता और जिम्मेदारी पर सवाल उठाता है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान देते समय सावधानी बरतनी चाहिए और बिना सबूत के ऐसी बातें सार्वजनिक मंचों पर नहीं कही जानी चाहिए। यह राहुल गांधी की राजनीतिक बयानबाज़ी पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक चेतावनी की तरह है। हालाँकि, सवाल उठता है कि सरकार की नीतियों पर विपक्ष का नेता सवाल नहीं उठा सकता है तो फिर विपक्ष की भूमिका क्या सिर्फ़ सरकार की हाँ में हाँ मिलाना है? यह मामला न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक नज़रिए से भी अहम है, क्योंकि यह विपक्ष और सत्ताधारी दल के बीच चल रही तनातनी को और गहरा सकता है।