क्या ईडी जब चाहे और जिसे चाहे उसको नोटिस भेज कर कार्रवाई कर सकता है? हाल के वर्षों में विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ ताबड़तोड़ कार्रवाई के लिए चर्चा में रहे ईडी को एक मामले में सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साफ़ कर दिया कि वकीलों को उनके मुवक्किलों को दी गई क़ानूनी सलाह के लिए ईडी जैसी जाँच एजेंसियाँ तलब नहीं कर सकतीं। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि वकीलों को केवल भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 के तहत असाधारण परिस्थितियों में ही तलब किया जा सकता है।

जस्टिस चंद्रन ने पीठ की ओर से फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि वकील-मुवक्किल के बीच गोपनीय और पेशेवर संवाद, सलाह या दस्तावेज मुवक्किल की साफ़ सहमति के बिना पेश करने के लिए बाध्य नहीं किए जा सकते हैं। हालाँकि, यह विशेषाधिकार पूर्ण नहीं है और अपराध, धोखाधड़ी या गैरकानूनी कार्य को आगे बढ़ाने वाले मामलों पर लागू नहीं होगा।
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यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लिए गए मामले में आया है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन यानी एससीबीए और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रेकॉर्ड एसोसिएशन यानी एससीएओआरए ने वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और अधिवक्ता विपिन नायर के माध्यम से शिकायत की थी कि ईडी सहित जाँच एजेंसियाँ केवल क़ानूनी सलाह देने के लिए वरिष्ठ वकीलों को तलब कर रही हैं।

इस साल अगस्त में ईडी ने दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं को केवल उनके मुवक्किलों को दी गई पेशेवर सलाह के लिए तलब किया था, जिसके बाद बार संगठनों ने हंगामा खड़ा कर दिया। सुनवाई के दौरान एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा था, 'मनमाने तलब से कानूनी पेशे पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। वकील बिना डर के सलाह नहीं दे पाएंगे।'

सॉलिसिटर जनरल का पक्ष

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यदि कोई वकील अपने पेशेवर कर्तव्य से परे जाकर अपराध में भागीदार बनता है तो 'उसी कानून का पालन वकीलों पर भी होगा जो दूसरों पर लागू होता है।' हालाँकि, मेहता ने स्वीकार किया कि वकील-मुवक्किल गोपनीयता का विशेषाधिकार भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 और अब बीएसए की धारा 132-134 में संरक्षित है। यह एक मान्यता प्राप्त वैधानिक अधिकार है।
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वकील-मुवक्किल गोपनीयता विश्व भर में क़ानूनी पेशे की आधारशिला मानी जाती है। भारत में यह सिद्धांत पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनियम से चला आ रहा है और अब नए बीएसए में और मजबूत किया गया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गोपनीयता न केवल वकील के अधिकार की रक्षा करती है, बल्कि मुवक्किल को बिना डर के सच्चाई बताने का विश्वास भी देती है, जिससे न्याय प्रक्रिया मजबूत होती है।

फैसले में कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने तलब की प्रक्रिया पर कहा कि वकीलों को जारी समन में धारा 132 की छूट स्पष्ट रूप से उल्लिखित होनी चाहिए। समन की जांच पुलिस अधीक्षक से नीचे के रैंक के अधिकारी द्वारा नहीं, बल्कि उनके वरिष्ठ द्वारा की जानी चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि वकीलों से जब्त लैपटॉप, मोबाइल जैसे डिजिटल डिवाइस को क्षेत्रीय ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश करना होगा। इन्हें केवल वकील और संबंधित पक्षों की उपस्थिति में ही खोला जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि मौलिक अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए और जांच एजेंसियों द्वारा जारी समन आरोपी के मौलिक अधिकारों व वकील-मुवक्किल गोपनीयता के विश्वास का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने चेतावनी दी कि मनमाने ढंग से वकीलों को तलब करना क़ानूनी पेशे पर बेहद बुरा असर डाल सकता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
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बार एसोसिएशनों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है। एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा, 'यह फैसला वकीलों की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करेगा। अब जांच एजेंसियाँ मनमाने ढंग से वकीलों को परेशान नहीं कर सकेंगी।'

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सभी निचली अदालतों और जांच एजेंसियों को इन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने का आदेश दिया है। यह फ़ैसला आने वाले समय में ईडी, सीबीआई और अन्य एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गहरा असर डालेगा, खासकर मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों के मामलों में जहाँ वकीलों को अक्सर तलब किया जाता रहा है।