उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में टाटा संस को राम मंदिर संग्रहालय विकसित करने के लिए 52.102 एकड़ जमीन आवंटित करने का फैसला किया है। राज्य के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि राज्य सरकार ने पिछले साल 15 मार्च को टाटा संस को 25 एकड़ जमीन दी थी, लेकिन कंपनी ने कहा कि उनका नज़रिया व्यापक है और उन्हें ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत है। इस समय टाटा समूह और मोदी सरकार की बढ़ती निकटता काफी चर्चा में है। अभी तक टाटा समूह सरकार से जुड़े किसी भी मामले में विवादों में नहीं रहता था। लेकिन टाटा संस अब पहले जैसा नहीं रह गया है।



वित्त मंत्री ने कहा कि "उन्होंने 20 मई को हुई बैठक में मांग उठाई थी। उन्होंने कहा कि उनके पास एक बड़ा प्रोजेक्ट है जिसमें व्यापक नज़रिया है। हमने उनके साथ नजूल भूमि के लिए 52.102 एकड़ के लिए एक नया पट्टा (लीज डीड) समझौता किया है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर का मंदिर म्यूज़ियम बनाने और प्रबंधन के लिए होगा।" यानी इस म्यूज़ियम का मैनेजमेंट टाटा संस के पास होगा। 
नजूल भूमि सरकार की होती है लेकिन राज्य संपत्ति के रूप में प्रशासित नहीं की जाती। खन्ना का कहना है कि "यह मंदिर म्यूज़ियम प्राचीन भारतीय मंदिरों में विभिन्न शैलियों के विकास को प्रदर्शित करने का उद्देश्य रखता है। यह उनके निर्माण के पीछे के विचारों, स्थानीय वास्तुकला और साहित्य के प्रभाव और उनके संरक्षण विधियों पर भी प्रकाश डालेगा।"
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मोदी अयोध्या में भव्य म्यूज़ियम क्यों बनवाना चाहते हैं

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने राम मंदिर की तीसरी मंजिल पर एक संग्रहालय की योजना बनाई है, जिसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 22 जनवरी को किया था। लेकिन बाद में योजना बदल गई। सूत्रों ने बताया कि टाटा संस द्वारा विकसित किए जाने वाले मंदिर संग्रहालय का विचार मोदी का था, जिन्होंने पिछले महीने अयोध्या यात्रा के दौरान इस प्रोजेक्ट की समीक्षा की थी।" उन्होंने प्रोजेक्ट की प्रगति के बारे में पूछा। मोदी अयोध्या को हिंदू धर्म का केंद्र बनाना चाहते हैं। टाटा संस के अधिकारियों ने पहले से ही अयोध्या में डेरा डाल रखा है। जल्द ही काम शुरू करने की उम्मीद है। यूपी गृह विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राम मंदिर म्यूज़ियम का प्रबंधन टाटा के पास रहेगा। इससे होने वाली आमदनी भी उसके पास रहेगी।




टाटा ने बीजेपी को 758 करोड़ का डोनेशन क्यों दिया था

स्क्रॉल की एक रिपोर्ट में हाल ही में टाटा समूह और मोदी सरकार की जुगलबंदी पर रोशनी डाली गई है। रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने टाटा समूह की दो सेमीकंडक्टर इकाइयों को 44,000 करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी देने की घोषणा की। उसके कुछ ही हफ़्तों बाद, टाटा समूह ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 758 करोड़ रुपये का डोनेशन दिया। यह डोनेशन आम चुनाव से कुछ दिन पहले, अप्रैल 2024 में दिया गया था। टाटा समूह की दो सेमीकंडक्टर इकाइयों - असम और गुजरात को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2024 में मंज़ूरी दी थी। इन दोनों इकाइयों के लिए केंद्र सरकार की सब्सिडी कथित तौर पर लगभग 44,023 करोड़ रुपये है। असम और गुजरात बीजेपी शासित राज्य हैं।

फरवरी 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा टाटा समूह की सेमीकंडक्टर इकाइयों को मंज़ूरी मिलने के तुरंत बाद, इस टाटा समूह ने फंड दान किया। स्क्रॉल की जाँच से पता चलता है कि यह फंड कैसे भेजा गया।
स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, टाटा समूह ने ये दान एक राजनीतिक ट्रस्ट के माध्यम से प्राप्त किए। चुनावी ट्रस्ट, कंपनियों द्वारा स्थापित एक ट्रस्ट होता है जो कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा राजनीतिक दलों को डोनेशन की सुविधा प्रदान करता है। यह योजना मोदी सरकार ने शुरू की थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इलेक्टोरल बांड के जरिए चुनावी चंदा देने पर रोक लगा दिया था। लेकिन राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट की फंडिंग आज तक बंद नहीं हो पाई है। 
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टाटा समूह अब मोदी सरकार के बहुत करीब आ गया लगता है। पहले टाटा समूह अपनी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं के लिए प्रसिद्ध था। वो शिक्षा और स्वास्थ्य में योगदान देता था। उसका कैंसर अस्पताल पूरे भारत में मशहूर है। लेकिन टाटा समूह की कार्यशैली अब पूरी तरह बदल गई है। वो भी बाकी कॉरपोरेट की तरह हो गया है। हाल ही में उसकी कंपनियों को जो सब्सिडी मिली है, पैटर्न बता रहा है कि टाटा अब सरकारी मदद पर निर्भर हो गया है। यह बदलाव आर्थिक अवसरों का फायदा उठाने का हो सकता है। लेकिन इसने टाटा की ऐतिहासिक स्वायत्तता और तटस्थता को कमजोर कर दिया है। कॉरपोरेट-राजनीति नेक्सस के आरोपों के दायरे में अब टाटा समूह भी आ गया है।