पिछले दिनों मणिपुर में देखा गया कि दो समुदायों के बीच नफरत की खाई इतनी बढ़ गई है एक समुदाय दूसरे दूसरे समुदाय के मृतकों के अंतिम संस्कार की जगह को लेकर भी विरोध पर उतर गया। शवगृहों में रखे हुए शवों के अंतिम संस्कार के नाम पर भी दो समुदाय आमने-सामने आ गए।
मणिपुर के इंडिजिनियस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने घोषणा कर कहा कि वे हिंसा में मारे गए कुकी समुदाय के 35 लोगों के शव 3 अगस्त को एक साथ दफ्न करेंगे। उन्होंने घोषणा की थी कि चुराचांदपुर जिले के एस बोलजांग गांव के एक खुले मैदान में इन शवों का अंतिम संस्कर होगा। उनकी घोषणा के बाद उम्मीद की जाने लगी कि विवाद हो सकता है।
इसके बाद बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिले की सीमा पर अतिरिक्त सुरक्षा बलों को भेजा गया था। इसके बाद जैसी की उम्मीद थी मैतेई समुदाय द्वारा इसका जमकर विरोध हुआ। महिलाओं की भीड़ भी विरोध में उतर गई। सामूहिक रूप से दफ़नाने का विरोध करने वाले मैतेई समूहों ने चुराचांदपुर में बैरिकेड क्षेत्रों को पार करने का प्रयास किया और असम राइफल्स और रैपिड एक्शन फोर्स के कर्मियों पर पथराव किया। स्थिति यह हो गई कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ेने पड़े।
इस बीच इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम, सुरक्षा बलों, राज्य सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय के बीच इस मामले को लेकर हुई बातचीत के कारण दफनाने का काम स्थगित कर दिया गया। मणिपुर उच्च न्यायालय ने भी दफ़न स्थल पर "यथास्थिति" का आदेश दिया। तब जाकर मामला शांत हुआ।
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दोनों समुदायों का दावा यह जगह उनकी है
इस घटना से जुड़े मैतेई समुदाय का आरोप था कि, यह स्थल उनके इलाके में आता है और अगर यहां सामूहिक रूप से दफनाने की अनुमति दे दी जाती तो आने वाले दिनों में यह जगह कूकी समाज के लिए एक स्मारक बन जाती। इसलिए उन्होंने इसका विरोध किया। वहीं कूकी समुदाय का मानना है कि ये जगह उनकी है। मणिपुर हिंसा के कारण जान गंवाने वाले इन 35 लोगों के शवों को एक ही जगह दफनाया जाने में कोई गलत बात नहीं है और यह उनका अधिकार है। इस इलाके को लेकर कुकी और मैतेई समुदाय के अपने-अपने दावे हैं। जबकि ये जगह बिष्णुपुर पुलिस स्टेशन में आती है। लेकिन इसका राजस्व जिला चुराचांदपुर है।बड़ा सवाल क्या शवों पर भी राजनीति हो रही है?
इन सब बातों के बीच सवाल उठता है कि क्या जिंदा इंसानों के साथ ही अब मृतकों से भी नफरत की जा रही है? जबकि भारतीय संस्कृति में मृतकों के प्रति सम्मान का भाव हमेशा से रहा है। शवों के प्रति ऐसा विरोध कभी देश में देखने को नहीं मिला था। दो समुदायों के बीच इस नफरत के कारण इन मृतकों को अंतिम संस्कार के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है। जिस राज्य में सदियों से दो समुदाय एक साथ प्रेम और भाईचारे के साथ रहते आए थे वहीं के लोग आज एक दूसरे के इस हद तक विरोधी कैसे बन गए। उनके बीच अविश्वास की खाई कब इतनी बढ़ गई ? सवाल यह भी है कि क्या शवों पर भी राजनीति हो रही है?
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