अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं के आयात पर 1 अक्टूबर से 100 फीसदी टैरिफ लगाने के फैसले ने भारत की फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री को हिलाकर रख दिया है। दुनिया को सस्ती जेनेरिक दवाओं की सप्लाई करने वाले भारत को 'दुनिया की फार्मेसी' कहा जाता है। अमेरिकी बाजार में सबसे बड़ा निर्यात भारत का है। यह टैरिफ न केवल भारत के 30 अरब डॉलर के दवा निर्यात उद्योग को झटका दे सकता है, बल्कि अमेरिका में दवाओं की कमी और कीमतों में वृद्धि को भी जन्म दे सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अमेरिकी हेल्थ सिस्टम को सालाना 200 अरब डॉलर के नुकसान का सामना करने पर मजबूर कर सकता है। 

अमेरिकी फार्मा बाजार में 31% हिस्सा भारत का है

ट्रंप प्रशासन का यह फैसला अमेरिका में दवा प्लांट के निर्माण को बढ़ावा देने के मकसद से लिया गया है। राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि "अमेरिका को अपनी दवाओं का उत्पादन खुद करना चाहिए, न कि विदेशों पर निर्भर रहना।" लेकिन भारत जैसे देशों के लिए यह नीति एक बड़ा संकट बन रही है, जहां अमेरिका भारत के फार्मा निर्यात का 31 प्रतिशत हिस्सा है। वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) में भारत ने कुल 1.87 लाख करोड़ रुपये (लगभग 21.7 अरब डॉलर) मूल्य की दवाओं का निर्यात किया, जिसमें से अमेरिका को 2024 में 3.6 अरब डॉलर और 2025 की पहली छमाही में 3.7 अरब डॉलर का हिस्सा मिला। 

अमेरिका में तय दवाओं का 90% निर्यात भारत से

भारत पूरी दुनिया में जेनेरिक दवाओं की 20 फीसदी और वैक्सीन की 60 फीसदी सप्लाई करता है। अमेरिका के बाहर सबसे अधिक यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) अनुमोदित प्लांट भारत में ही हैं। भारतीय कंपनियां अमेरिका में तय दवाओं का 90 फीसदी हिस्सा देती हैं, खासकर हाई ब्लडप्रेशर, पेन किलर और अन्य सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए सस्ती दवाएं। टैरिफ का सीधा असर पेटेंटेड दवाओं पर पड़ने की बात कही जा रही है, लेकिन चिंता यह है कि यह जटिल जेनेरिक और स्पेशल्टी मेडिसिन तक फैल सकता है। भारत के फार्मा निर्यात का 75 फीसदी हिस्सा जेनेरिक दवाओं का ही है। 
ताज़ा ख़बरें

अमेरिका में महंगी हो जाएंगी दवाएं, भारत की जगह लेना आसान नहीं

यदि यह टैरिफ लागू होता है, तो अमेरिका में कुछ दवाओं की कीमतें दोगुनी हो सकती हैं, जिससे स्वास्थ्य बीमा योजनाओं जैसे मेडिकेयर और मेडिकेड की लागत बढ़ जाएगी। 2024 में अमेरिका ने कुल 233 अरब डॉलर मूल्य की दवा और औषधीय उत्पादों का आयात किया था। भारतीय दवा निर्माताओं का कहना है कि अमेरिकी हेल्थ सिस्टम को भारतीय दवाओं से सालाना 200 अरब डॉलर की बचत होती है। यदि भारत की सप्लाई रुकती है, तो अमेरिका को इसे बदलने में 2 से 5 साल लग सकते हैं, जिससे दवा की कमी हो सकती है। आंध्र प्रदेश की दवा कंपनी ने चेतावनी दी, "भारतीय दवाओं की जगह लेना आसान नहीं होगा। अमेरिका को चीन जैसी जगहों पर निर्भर होना पड़ सकता है, जो उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।" 

भारत ही नहीं अमेरिकी उपभोक्ता भी प्रभावित होंगे

भारत की फार्मा इंडस्ट्री अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लाखों नौकरियां प्रदान करती है। टैरिफ से निर्यात में कमी आने पर कंपनियां अमेरिकी बाजार से पीछे हट सकती हैं। इससे राजस्व में भारी गिरावट आएगी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम न केवल भारत को प्रभावित करेगा, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी महंगा पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश की एक फार्मा एक्सपोर्टर कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, "यदि इसे लागू किया गया, तो हमें अमेरिका को दवाओं की सप्लाई बंद करनी पड़ेगी। वहां के मरीजों को भारतीय निर्माताओं से ज्यादा नुकसान होगा।"

भारत दूसरे बाजारों की ओर रुख कर सकता है

कुछ इंडस्ट्री लीडर इस संकट को अवसर के रूप में देख रहे हैं। दादाचांजी ग्रुप के रिशद दादाचांजी ने कहा, "टैरिफ सप्लाई चेन को बाधित करेगा और अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाएगा। लेकिन भारतीय फार्मा उद्योग लचीला है। कंपनियां पहले से ही बाजारों का विस्तार कर रही हैं, अनुसंधान एवं विकास (R & D) में निवेश कर रही हैं और नई साझेदारियों की तलाश में हैं। यह भारत को इस सेक्टर में आत्मनिर्भर बनाने की प्रक्रिया को तेज कर सकता है।" भारत अब यूरोप, अफ्रीका और एशिया जैसे अन्य बाजारों की ओर रुख कर सकता है, लेकिन अमेरिकी बाजार की कमी को पूरा करना चुनौतीपूर्ण होगा। 

इन भारतीय कंपनियों को होगा बड़ा नुकसान

प्रमुख भारतीय कंपनियां खतरे में डॉ. रेड्डीज, सन फार्मा, ल्यूपिन और ऑरोबिंडो जैसी कंपनियां, जो अमेरिकी जेनेरिक बाजार पर अपनी किस्मत चमकाने वाली हैं, सबसे अधिक प्रभावित होंगी। इन कंपनियों के शेयर मार्केट में शुक्रवार से ही लुढ़क गए। इन कंपनियों का बड़ा हिस्सा अमेरिकी मांग पर निर्भर है। उद्योग संगठनों ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिए इस मुद्दे का समाधान निकाला जा सके। 
देश से और खबरें
ट्रंप का यह 100 प्रतिशत टैरिफ भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक नया मोड़ ला सकता है। जहां एक ओर यह अमेरिकी उत्पादन को बढ़ावा देगा, वहीं दूसरी ओर ग्लोबल फार्मा आपूर्ति श्रृंखला को हिला देगा। भारत को अब विविधीकरण पर जोर देकर इस चुनौती का सामना करना होगा। विशेषज्ञ चेताते हैं कि यदि अमेरिका भारत की जगह चीन पर निर्भर होता है, तो यह उनकी ही राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों के विपरीत होगा। फिलहाल, भारतीय उद्योग निगरानी मोड में है, और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच बातचीत तेज होने की उम्मीद है।