अमेरिका ने पाकिस्तान के F-16 लड़ाकू विमानों के लिए एडवांस टेक्नोलॉजी और अपग्रेड की बिक्री को मंज़ूरी दे दी है। इस डील की कीमत करीब 686 मिलियन डॉलर बताई जा रही है। ये फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है, खासकर जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद। इसी बीच अमेरिका ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी अमेरिका से ही ज़्यादा हथियार खरीदने का दबाव बनाया है। अब सवाल उठ रहा है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के F-16 विमानों को अपग्रेड करने की मंज़ूरी इस वक्त क्यों दी। इस डील का क्षेत्रीय सुरक्षा पर क्या असर पड़ेगा और इसका भारत-पाक रिश्तों पर क्या मतलब है।
दरअसल ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के सीनियर एनलिस्ट प्रवीन डोंथी ने अल जज़ीरा से बातचीत में बताया कि अमेरिका की यह ताज़ा मंज़ूरी 2022 में हुए एक मेंटेनेंस डील का ही हिस्सा है। उस डील के तहत अमेरिका ने पाकिस्तान के F-16 लड़ाकू विमानों के बेड़े को लंबे समय तक चालू और सक्षम बनाए रखने पर सहमति दी थी। डोंथी के मुताबिक, F-16 से जुड़ा यह समझौता अमेरिका–पाकिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों का एक अहम हिस्सा बना हुआ है। 
यही वजह है कि राष्ट्रपति बाइडन से लेकर ट्रंप के दौर तक, कुछ देरी के बावजूद, इस नीति में लगातार निरंतरता बनी रही है। दोनों देश इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि ये विमान इलाके में साझा आतंकवाद-रोधी अभियानों में काफी उपयोगी हैं। अमेरिका की यह नई डील पाकिस्तान के मौजूदा F-16 बेड़े को सपोर्ट करने और अपग्रेड करने से जुड़ी है। इसमें टेक्नोलॉजी की बिक्री शामिल है।
इसकी पुष्टि 4 दिसंबर को अमेरिका की डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी (DSCA) की ओर से अमेरिकी कांग्रेस को भेजी गई रिपोर्ट में की गई। माना जाता है कि पाकिस्तान के पास इस समय करीब 70 से 80 F-16 विमान ऑपरेशनल हालत में हैं। इनमें कुछ पुराने लेकिन अपग्रेड किए गए ब्लॉक-15 मॉडल हैं, कुछ जॉर्डन से मिले F-16 हैं और कुछ नए ब्लॉक-52+ मॉडल भी शामिल हैं।
अमेरिका की ओर से दिए जाने वाले पैकेज में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर अपग्रेड शामिल हैं, जिससे उड़ान संचालन और विमान के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम बेहतर होंगे। इसके अलावा एडवांस्ड ‘आइडेंटिफिकेशन फ्रेंड ऑर फो’ (IFF) सिस्टम भी दिया जाएगा, जिससे पायलट दोस्त और दुश्मन विमानों की पहचान कर सकेंगे। साथ ही नेविगेशन अपग्रेड, स्पेयर पार्ट्स और मरम्मत से जुड़ी सुविधाएं भी इस डील का हिस्सा हैं। F-16 विमानों के लिए 649 मिलियन डॉलर के सपोर्ट और अपग्रेड के अलावा, इस अमेरिकी सौदे में 37 मिलियन डॉलर का मेजर डिफेंस इक्विपमेंट (MDE) भी शामिल है।
ये ऐसे सैन्य उपकरण होते हैं जो अमेरिका की म्यूनिशन लिस्ट में आते हैं। इसमें कुल 92 लिंक-16 सिस्टम शामिल हैं। लिंक-16 एक सुरक्षित सैन्य डेटा नेटवर्क है, जो लड़ाकू विमानों, युद्धपोतों और ज़मीनी सेनाओं के बीच रियल-टाइम में संपर्क बनाए रखता है। इसके ज़रिये टेक्स्ट मैसेज और तस्वीरों के माध्यम से भी जानकारी साझा की जा सकती है। इसके अलावा, पाकिस्तान को 500 पाउंड (करीब 226.8 किलो) वज़न वाले Mk-82 बम के छह इनर्ट (बिना विस्फोटक) बॉडी बेचने की भी मंज़ूरी दी गई है। 
ये असल में खाली धातु के ढांचे होते हैं, जिनका इस्तेमाल ट्रेनिंग या टेस्टिंग के लिए किया जाता है। इन बमों में TNT जैसे विस्फोटक पदार्थ नहीं भरे जाते, बल्कि इनके अंदर कंक्रीट या रेत जैसी भारी सामग्री डाली जाती है। Mk-82 एक बिना गाइड किया गया बम है, जिसे अमेरिका ने विकसित किया था। यही बम बाद में प्रिसीजन-गाइडेड हथियारों के लिए वारहेड के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
F16 की खरीद बिक्री इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए एक हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी। इस हमले की ज़िम्मेदारी द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली थी। जिसके बाद 7 मई को भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर में नौ ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। पाकिस्तान का दावा है कि इन हमलों में दर्जनों आम नागरिक मारे गए। इसके बाद अगले तीन दिनों तक दोनों देशों के बीच ज़ोरदार हवाई टकराव हुआ, जिसमें ड्रोन और मिसाइलों के ज़रिये एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया। इस हवाई संघर्ष के दौरान पाकिस्तान ने कुल 42 “हाई-टेक” लड़ाकू विमान तैनात किए थे। पाकिस्तान वायुसेना के एयर वाइस मार्शल औरंगज़ेब अहमद के मुताबिक, इनमें अमेरिकी F-16 के अलावा चीन में बने JF-17 और J-10 फाइटर जेट भी शामिल थे।
पाकिस्तान के F-16 विमानों को अपग्रेड करने की अमेरिकी मंज़ूरी ऐसे वक्त आई है, जब ट्रंप प्रशासन भारत पर अमेरिका से ज़्यादा हथियार खरीदने का दबाव बना रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त में भारत ने अमेरिकी हथियारों और विमानों की खरीद की अपनी योजना फिलहाल रोक दी थी। यह जानकारी सरकार से जुड़े तीन अधिकारियों के हवाले से दी गई थी। यह फैसला उस समय लिया गया, जब कुछ ही हफ्तों बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को वॉशिंगटन जाकर हथियारों की खरीद का ऐलान करना था। बाद में वह दौरा भी रद्द कर दिया गया।
वैसे भी पिछले कुछ महीनों में भारत-अमेरिका रिश्तों में भी खटास देखने को मिली है। ट्रंप लगातार भारत पर टैरिफ से हमला कर रहे हैं । रूस से तेल खरीद पर नाराज़गी जता रहे हैं । ऐसे माहौल में पाकिस्तान के F-16 विमानों के लिए अमेरिका की नई डील भारत को पसंद नहीं आने वाली है। विशेषज्ञ प्रवीन डोंथी का कहना है कि भारत पहले भी पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग का विरोध करता रहा है, खासकर उस सहयोग का जिसके तहत पाकिस्तान के F-16 विमानों को मेंटेन किया जाता है। भारत का दावा रहा है कि इन विमानों का इस्तेमाल उसके खिलाफ किया जाता है। हालांकि इस बार वॉशिंगटन ने पहले ही सफाई दे दी कि यह सौदा “क्षेत्र में सैन्य संतुलन को नहीं बदलेगा।”
वहीं वॉशिंगटन स्थित दक्षिण एशिया विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन का कहना है कि इस डील को सिर्फ भारत पर दबाव बनाने के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। उनके मुताबिक, इसे अमेरिका की उस कोशिश के तौर पर ज़रूर देखा जा सकता है, जिसके ज़रिये वह पाकिस्तान को दी जा रही मदद के बहाने भारत से ट्रेड बातचीत में कुछ रियायतें चाहता है। लेकिन कुगेलमैन यह भी कहते हैं कि इस सौदे की अपनी अलग वजहें हैं और यह पूरी तरह भारत से जुड़ा मामला नहीं है। यह पाकिस्तान के अमेरिकी बने विमानों को सपोर्ट करने की एक लंबे समय से चल रही योजना का हिस्सा है।
तो कुल मिलाकर देखा जाए तो पाकिस्तान के F-16 विमानों को अपग्रेड करने की अमेरिका की यह मंज़ूरी सिर्फ हथियारों की खरीद–फरोख्त भर नहीं है। यह साफ़ दिखाती है कि दक्षिण एशिया में सामरिक हालात कैसे बदल रहे हैं, अमेरिका एक साथ दो मोर्चों पर कैसे खेल रहा है और भारत–अमेरिका रिश्तों में किस तरह की खटास बढ़ रही है। एक तरफ़ अमेरिका भारत को अपना रणनीतिक साथी बताता है, वहीं दूसरी तरफ़ पाकिस्तान को सैन्य मदद देना भी जारी रखता है। ये अमेरिका की दोहरी नीति नहीं तो और क्या है ।