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राम मंदिर निर्माण: बाबरी ढाँचे पर सुप्रीम कोर्ट के इंटरप्रिटेशन से सहमत नहीं- VHP अध्यक्ष

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन पाँच अगस्त को है। बाबरी ढाँचा विश्वंस पर भी जल्द ही फ़ैसला आने वाला है। पूरे मामले में सवाल कई हैं। एक सवाल तो यही है कि राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े जो राजनेता हैं, वो आज कहाँ हैं? इन सब सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार से ख़ास बातचीत की। 
विजय त्रिवेदी

अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन को लेकर तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को सवेरे भूमि पूजन के बाद अयोध्या से जुड़ी बहुत-सी परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे। विश्व हिन्दू परिषद और राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए यह पाँच सौ साल के सफ़र के बाद मंज़िल पर पहुँचने का संतोष है, लेकिन इस सब के बीच ऐसे बहुत से सवाल हैं जो जवाब चाहते हैं। 

सवाल है कि राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े जो राजनेता हैं, वो आज कहाँ हैं? 

जिस वक़्त भूमि पूजन हो रहा है तब वो लोग बाबरी मसजिद विध्वंस से जुड़े आपराधिक मामले का सामना कर रहे हैं और फ़ैसले का इंतज़ार है।

सवाल यह है कि यदि उन पर राजनीतिक मुक़दमे थे तो बीजेपी की सरकारों ने पिछले 6 साल में वो मुक़दमे वापस क्यों नहीं लिए?

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सवाल यह भी है कि जब देश भर ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पूरे सद्भाव के साथ स्वीकार किया है तो क्या मंदिर से जुड़े लोग अयोध्या से अब तीस किलोमीटर दूर मसजिद बनाने में अपना सहयोग देंगे?

और सवाल यह भी है कि परिषद् का वो नारा– ‘अयोध्या तो झाँकी है, मथुरा काशी बाक़ी है’, क्या वो नारा अब भी है और राम मंदिर निर्माण के बाद क्या रामराज्य लाने की कोशिश भी होगी?

शिवसेना के उद्धव ठाकरे से असददुद्दीन ओवैसी तक के सवालों और ऐसे ढेरों सवालों के साथ मैंने बातचीत की, हमेशा हल्की मुस्कुराहट रखने वाले विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार से। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद उन्होंने हर सवाल का जवाब दिया।

प्रश्न- पाँच अगस्त को भूमि पूजन के कार्यक्रम 1528 से अब तक के पाँच सौ साल का सफ़र है या फिर 1949 में मूर्तियाँ रखने से अब तक के 70 साल, या विश्व हिन्दू परिषद के 1964 में गठन से अब के क़रीब 60 साल का हिंदू आंदोलन या फिर 6 दिसम्बर 1992 से बीते 28 साल की यात्रा की पूर्णाहूति?

आलोक कुमार- मंदिर बना, मंदिर टूटा, मंदिर दोबारा बना, मंदिर फिर टूटा, संघर्ष हुए, बलिदान हुए, आंदोलन हुए, यह एक लंबी गाथा है जो हमें संतोष देती है। इस सबके बाद सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों ने कहा कि यह स्थान रामलला का है और कहा कि एक ट्रस्ट बनाओ, जो मंदिर बनाएगा, ट्रस्ट बना और मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। अब सारा देश एक आनंद के साथ मंदिर बनाने की दिशा में बढ़ रहा है। इसलिए यह वर्तमान मुझे अच्छा लग रहा है।

प्रश्न- क्या आपको यह संतोष लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को सबने स्वीकार किया?

आलोक कुमार- स्वाभाविक है यह संतोष की बात है और सबने देश की न्याय व्यवस्था में विश्वास जाहिर किया। सुप्रीम कोर्ट ने इक्विटी बैंलेस करने के लिए मुसलमानों को मसजिद के लिए पाँच एकड़ ज़मीन देने की बात की। जिनको नहीं दी जा रही थी, उन्होंने कहा- हम नहीं लेंगे। लेकिन जिन को दी जा रही थी, उन्होंने पहली बैठक में ही ज़मीन लेना स्वीकार कर लिया तो इक्विटी बैंलेंस हो गई।

प्रश्न- पाँच अगस्त को क्या कार्यक्रम है, किस तरह से तय किया गया है, उसमें किन लोगों को शामिल किया जा रहा है? 

आलोक कुमार - प्रधानमंत्री रामभक्त हैं, वो इस लड़ाई के योद्धा भी रहे हैं। उनके चुनाव में इसका ज़िक्र किया गया है। इसलिए वह इस दृष्टि से और प्रधानमंत्री के तौर पर आ रहे हैं। देश को अभिव्यक्त कर रहे हैं। जब चाँदी की शिला वो रखेंगे तो देश की भावना को ज़ाहिर करेंगे।

प्रश्न- असददुद्दीन औवेसी ने कहा कि प्रधानमंत्री को संवैधानिक पद पर रहते हुए वहाँ नहीं जाना चाहिए, आपत्ति ज़ाहिर की है?

आलोक कुमार- ठीक है सब लोग अपनी कांस्टीट्यूएंसी को एड्रैस कर रहे हैं। जिन लोगों ने यह बताया कि नेहरू जी वहाँ नहीं गए थे तो उन्होंने यह क्यों नहीं बताया कि राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद वहाँ गए थे और नेहरू के विरोध के बाद गए थे, लेकिन बाद में नेहरू ने उस पर कुछ नहीं कहा। नेहरू के सेक्यूलरिज़्म के विचार से सहमत नहीं हूँ जिसमें धर्म का निषेध है जबकि भारत में सेक्युलरिज़्म का मतलब सब धर्मों का स्वागत है। सोनिया जी तो रामलीला और महावीर जयंती जैसे कार्यक्रमों में जाती हैं। लेकिन औवेसी का यह कहना कि राम जन्मभूमि पर मसजिद बनाना क़ानून का असम्मान है, हालाँकि वो भी जानते हैं कि यह मुमकिन नहीं है।

प्रश्न- प्रधानमंत्री तो पिछले 6 साल में अयोध्या नहीं गए हैं, चुनावी मुद्दा रहा।

आलोक कुमार- तो क्या फर्क पड़ता है, अब जा रहे हैं। मैं विश्व हिन्दू परिषद से हूँ तो आप पूछ सकते हैं कि मैं 70 साल में बद्रीनाथ क्यों नहीं गया और गया तो इस बुढ़ापे में क्यों गया? यह सब बेमायने हैं।

प्रश्न- जब मंदिर निर्माण शुरू हो रहा है तो क्या अब नए स्वरूप में पिछले मॉडल से बदलाव किया गया है, उसका स्वरूप बदला है?

आलोक कुमार- बिलकुल अलग होने की बात नहीं है, क्योंकि उस मॉडल को लेकर हम देश के गाँव-गाँव तक गए हैं। 1989 में पौने तीन लाख गाँवों में हमने सवा 6 करोड़ लोगों से संपर्क किया, उनसे सौ-सौ रुपये लिये। हर हिन्दू के मन में छवि अंकित है, इसलिए उसमें बदलाव का सवाल ही नहीं है। उसमें कुछ जोड़ा गया है। पहले वो दो मंज़िला था, अब उसे तीन मंज़िला कर दिया गया है,  मंडप की संख्या तीन से बढ़ाकर पाँच कर दी गई है। और उसको बदल नहीं सकते क्योंकि उसके लिए 60 फ़ीसदी खंभे तैयार कर लिए गए हैं तो उसमें बदलाव नहीं होगा, यह उसका विस्तार है। संभावना है कि मंदिर का निर्माण तीन साढ़े तीन साल में इतना हो जाएगा कि मंदिर के गर्भगृह में रामलला को विराजमान किया जा सकेगा और पूजा शुरू हो जाएगी।

प्रश्न- मंदिर निर्माण के ख़र्च के लिए कैसे इकट्ठा किया जाएगा, क्या योजना है?

आलोक कुमार- ख़र्च की समस्या नहीं है, हमारे पास ऐसे लोग भी आए जो पूरा ख़र्च उठाने को तैयार हैं। लेकिन यह मंदिर सब का है, इसलिए हमने तीर्थ ट्रस्ट को आग्रह किया कि हम सब से चंदा लेकर मंदिर बनाएँगे जब कोरोना के हालात ठीक होंगे तो हम चार लाख गाँवों में दस करोड़ हिंदू परिवारों से सहयोग लेंगे यानी क़रीब पचास करोड़ हिंदुओं को उसमें अपना योगदान महसूस होगा।

प्रश्न- कांग्रेस में कुछ लोगों का आरोप है कि आपने राम मंदिर आंदोलन को क़ब्ज़े में ले लिया जबकि इससे जुड़ी सभी अहम घटनाएँ कांग्रेस सरकारों के वक़्त हुई हैं? चाहे 1949 में मूर्तियाँ रखना हो, या 1986 में ताला खोलना, फिर 1989 में शिलान्यास और 1992 में बाबरी मसजिद का ध्वंस?

आलोक कुमार- कांग्रेस के एक बड़े नेता थे प्रधानमंत्री नरसिंह राव, उन्होंने अपनी किताब अयोध्या में एक पत्र छापा है कि उस वक़्त के प्रधानमंत्री ने तब मंदिर से मूर्तियाँ हटवाने का निर्देश दिया था लेकिन डीएम ने इंकार कर दिया। शिलान्यास के वक़्त कांग्रेस ने सहमति दी, वो एक समझौते के तहत हुआ। और उस वक़्त जनता का दवाब इतना था कि यदि कांग्रेस नहीं करती तो उसे ख़त्म होने में इतना वक़्त नहीं लगता। वो श्रेय लेना चाहें तो ले सकते हैं, लिया क्यों नहीं श्रेय? सच कहूँ हमारे लिए मंदिर निर्माण सबसे अहम है, हम श्रेय के चक्कर में नहीं पड़ते।

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प्रश्न- सुप्रीम कोर्ट के आदेश में 6 दिसम्बर की घटना को ग़ैर क़ानूनी कहा था। आप उसे कैसे देखते हैं और उससे जुड़ा मुक़दमा चल रहा है?

आलोक कुमार – क़ानून की अपनी मर्यादाएँ होती हैं और जन भावनाओं का एक अलग वेग होता है। इतने लंबे समय तक उस वेग को रोकना मुश्किल होता है। वो वेग इतना बड़ा था कि ढाँचा गिर गया। मैं सुप्रीम कोर्ट के इंटरप्रिटेशन से अपने को सहमत नहीं पाता। मैं यह मानता हूँ कि वो ढाँचा अपमान का प्रतीक था।

प्रश्न- ढाँचा गिराने में शिव सैनिक शामिल थे, बाल ठाकरे ने इसे स्वीकार किया था, अब उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री के जाने पर आपत्ति की है।

आलोक कुमार- शिवसेना का इतना पतन होगा, यह किसने सोचा था। भूमि पूजन का मतलब होता है कि भूमि से आशीर्वाद लेना और क्षमा याचना करना कि मैं निर्माण के लिए ख़ुदाई कर रहा हूँ तो यह काम प्रधानमंत्री वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग से करते तो अंहकार माना जाएगा। दसियों लाख लोग जाने वाले थे, हम डेढ़ सौ लोग जा रहे हैं तो इसमें कौन सा ख़तरा है। मुझे उनके बयान पर शर्म आ रही है।

प्रश्न- नवम्बर 1989 में विश्व हिन्दू परिषद में कामेश्वर चौपाल ने किया था तो अब फिर 5 अगस्त को शिलान्यास क्यों हो रहा है?

आलोक कुमार – शिलान्यास नहीं हो रहा, अब तो सिर्फ़ निर्माण कार्य शुरू करने के लिए भूमि पूजन हो रहा है। शिलान्यास वो ही था और हमें उस पर गर्व हैं।

प्रश्न- बाबरी मसजिद ध्वंस मामले की सुनवाई चल रही है। 31 अगस्त तक फ़ैसला आएगा। परिषद् ने इस मामले को राजनीतिक माना था तो फिर पिछले 6 साल में बीजेपी ने इन मामलों को वापस क्यों नहीं लिया?

आलोक कुमार- हम न्यायालय का सम्मान करते हैं इसलिए हमने उन्हें वापस नहीं लिया और अब हम फ़ैसले का इंतज़ार कर रहे हैं। यह हम जानते हैं कि उस मामले में कोई शामिल नहीं है, दोषी नहीं है।

प्रश्न- यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ मुक़दमों को यूपी सरकार वापस ले ले और राम मंदिर आंदोलन के मुक़दमों को वापस नहीं लिया जाए?

आलोक कुमार – योगी आदित्यनाथ पर बहुत सामान्य क़िस्म के मामले राजनीतिक दुर्भावना से लगाए गए थे। मुक़दमा किस विषय वस्तु पर है, यह निर्भर करता है। हम सब आश्वस्त थे कि कोई दोषी नहीं है तो हमने तय किया कि हमारे नेता ट्रायल का सामना करें और निर्दोष साबित हों।

प्रश्न- इस मामले में 2010 में सीबीआई कांग्रेस सरकार के वक़्त आरोप वापस ले लेती है और 2017 में बीजेपी सरकार के वक़्त सीबीआई चार्जशीट दायर करती है?

आलोक कुमार – मुझे इस पूरे मामले की पूरी जानकारी नहीं है, इस पर कुछ नहीं कह सकता।

प्रश्न- कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि चार्जशीटेड लोगों को आपने राममजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट में शामिल कर लिया है? 

आलोक कुमार- क़ानून की व्याख्या है कि जब तक किसी पर आरोप साबित नहीं हो जाते उसे दोषी नहीं माना जाता तो सिर्फ़ आरोपों के आधार पर किसी को सार्वजनिक जीवन से दूर नहीं रखा जा सकता। हमने किसी दोषी व्यक्ति को नहीं रखा है।

प्रश्न- क्या आप अब मसजिद निर्माण में सहयोग करेंगे?

आलोक कुमार- यह विषय एक बार उठा था। स्वामी सत्यमित्रानंद ने एक बार बैठक में मुसलिमों को कहा था कि यह स्थान आप हमें दे दो और आप जहाँ मसजिद बनाएँगे तो मदद करेंगे लेकिन तब शहाबुद्दीन और दूसरे लोगों ने इसका विरोध किया था। यह मामला अभी नहीं है। अभी उन्होंने निर्माण शुरू नहीं किया है जब होगा तब देखेंगे।

प्रश्न- आख़िरी सवाल, राम मंदिर आंदोलन के वक़्त एक नारा चलता था कि ‘अयोध्या तो झाँकी है, मथुरा काशी बाक़ी है’, तो अब आगे क्या?

आलोक कुमार – (हँसते हुए) अभी तो हम सिर्फ़ झाँकी में लगे हुए हैं।

शुक्रिया।

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