उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने आज कहा कि शिक्षा के भगवाकरण में बुराई क्या है। उन्होंने हरिद्वार में एक कार्यक्रम में उन्होंने मातृ भाषा पर खासा जोर दिया। हरिद्वार में देव संस्कृति विश्व विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप है, लेकिन फिर भगवा में क्या गलत है? सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी खुश रहें) और वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है), जो हमारे प्राचीन ग्रंथों में निहित दर्शन हैं, भारत के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।



उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश के लोगों से अपनी गुलामी वाली मानसिकता छोड़ने और अपनी पहचान पर गर्व करना सीखने को कहा।

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उन्होंने शिक्षा की मैकाले प्रणाली को पूरी तरह से खारिज करने का आह्वान करते हुए कहा कि इसने देश में शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा (अंग्रेजी) को थोप दिया और शिक्षा को कुलीन वर्ग तक सीमित कर दिया। उन्होंने कहा कि सदियों की गुलामी वाले शासन ने हमें खुद को एक निम्न जाति के रूप में देखना सिखाया। हमें अपनी संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान का तिरस्कार करना सिखाया। इसने एक राष्ट्र के रूप में हमारे विकास को धीमा कर दिया। हमारे शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई। समाज का एक छोटा वर्ग, शिक्षा के अधिकार से एक विशाल आबादी को वंचित कर रहा है।



उपराष्ट्रपति ने कहा, हमें अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों पर गर्व महसूस करना चाहिए। हमें अपनी जड़ों की ओर वापस जाना चाहिए। हमें अपनी गुलामी वाली मानसिकता को त्यागना चाहिए और अपने बच्चों को उनकी भारतीय पहचान पर गर्व करना सिखाना चाहिए। हमें जितनी भी भारतीय भाषाएं सीखनी चाहिए। संभव है। हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम जरूर करना चाहिए। हमें अपने शास्त्रों को जानने के लिए संस्कृत सीखनी चाहिए, जो ज्ञान का खजाना हैं। युवाओं को अपनी मातृभाषा का प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा- 
मैं उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब सभी गैजेट अधिसूचनाएं संबंधित राज्य की मातृभाषा में जारी की जाएंगी। आपकी मातृभाषा आपकी दृष्टि की तरह है, जबकि एक विदेशी भाषा का आपका ज्ञान है चश्मे की तरह है। शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण भारत की नई शिक्षा नीति का केंद्र है, जो मातृभाषाओं को बढ़ावा देने पर बहुत जोर देती है।
उन्होंने कहा कि भारत में आने वाले विदेशी मेहमान अंग्रेजी जानने के बावजूद अपनी मातृभाषा में बोलते हैं क्योंकि उन्हें अपनी भाषा पर गर्व है। उन्होंने याद दिलाया कि तमाम दक्षिण एशियाई देशों के लोग भारत में शिक्षा प्राप्त करने आते थे। किसी समय भारत शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। उन देशों के विद्वानों ने भारत से लौटकर किताबें भी लिखी हैं। भारत के लोगों को अपनी महान शिक्षा प्रणाली को कभी नहीं भूलना चाहिए।