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फ़्यूचर ग्रुप के भविष्य पर सवालिया निशान

मुक़ाबला दुनिया के सबसे अमीर आदमी जेफ़ बेजोस और भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी या उनकी कंपनियों के बीच है। और दांव पर है भारत का रिटेल बाज़ार। फॉरेस्टर रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में भारत का रिटेल कारोबार करीब 883 अरब डॉलर यानी करीब पैंसठ लाख करोड़ रुपए का था।
आलोक जोशी

सुप्रीम कोर्ट ने एमेज़ॉन के पक्ष में फ़ैसला सुनाया। अडानी अंबानी को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका। सुप्रीम कोर्ट ने एमेज़ॉन की याचिका पर जो फ़ैसला सुनाया है, उसके शीर्षक कुछ ऐसे ही बन सकते हैं। 

खबर का सीधा असर यही दिख रहा है कि फ़्यूचर ग्रुप के प्रमोटर किशोर बियानी ने अपना पूरा रिटेल और कुछ होलसेल कारोबार रिलायंस रिटेल को बेचने का जो सौदा किया था, सुप्रीम कोर्ट ने उसपर रोक लगा दी है। यानी अब यह सौदा खटाई में पड़ चुका है और इस सौदे के साथ ही फ़्यूचर ग्रुप के भविष्य पर भी सवालिया निशान खड़ा हो चुका है।

लेकिन यह मामला जितना दिख रहा है उससे कहीं बड़ा और कहीं पेचीदा है। अदालतों में लड़ाई जेफ़ बेजोस के एमेज़ॉन और फ़्यूचर ग्रुप के प्रमोटर किशोर बियानी के बीच ही चल रही थी और आज भी चल रही है। 

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जेफ़ बेजोस बनाम मुकेश अंबानी

लेकिन दरअसल यह मुक़ाबला दुनिया के सबसे अमीर आदमी जेफ़ बेजोस और भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी या उनकी कंपनियों के बीच है। और दांव पर है भारत का रिटेल बाज़ार। फॉरेस्टर रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में भारत का रिटेल कारोबार करीब 883 अरब डॉलर यानी करीब पैंसठ लाख करोड़ रुपए का था।

सिर्फ किराना या ग्रोसरी का हिस्सा 608 अरब डॉलर या पैंतालीस लाख करोड़ रुपए के करीब था। अनुमान था कि 2024 तक यह कारोबार बढ़कर एक लाख तीस हज़ार करोड़ डॉलर या सत्तानबे लाख करोड़ रुपए तक पहुँच चुका होगा।

फ़्यूचर ग्रुप का क्या फ़्यूचर?

यही वह बाज़ार है जिसपर क़ब्ज़ा जमाने की लड़ाई अब एमेज़ॉन और रिलायंस रिटेल के बीच चल रही है। वह वक्त गया जब किशोर बियानी रिटेल किंग कहलाते थे और उनकी तूती बोलती थी। आज तो वो दो पाटों के बीच में फंसे हुए हैं। जीते कोई भी, फ़्यूचर ग्रुप की तो जान ही जानी है।

किशोर बियानी के कारोबार की कहानी बहुत से लोगों के लिए सबक का काम भी कर सकती है कि कैसे एक ज़रा सी गलती आपको बहुत बड़ी मुसीबत में फंसा सकती है। उन्होंने एक सौदा किया था, तब शायद यह सोचा था कि भविष्य में यह मास्टरस्ट्रोक साबित होगा लेकिन अब वही गले की फांस बन चुका है। 

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क्या है मामला?

किस्सा थोड़ा लंबा है। लेकिन ज़रूरी भी है। किशोर बियानी रिटेल किंग कहलाते थे। ज्यादातर लोग उन्हें पैंटलून स्टोर्स और बिग बाज़ार के नाम से ही पहचानते हैं। पहले उनकी कंपनी का नाम भी पैंटलून रिटेल ही था। 

हालांकि 2012 में कंपनी पर क़र्ज़ का बोझ उतारने के लिए उन्होंने समूह का नाम बदलकर फ़्यूचर ग्रुप किया और पैंटलून को एक अलग कंपनी बनाकर आदित्य बिड़ला समूह को बेच दिया। यह करीब सोलह सौ करोड़ रुपए का सौदा था। 

उस वक्त भी यह माना गया कि किशोर बियानी ने अपने बाकी कारोबार को जिंदा रखने के लिए बहुत समझदारी भरा फ़ैसला किया है। इससे उन्हें जो पैसे मिले वो क़र्ज़ चुकाने में इस्तेमाल हो गए। लेकिन उस वक्त भी ग्रुप के ऊपर करीब 7850 करोड़ रुपए का क़र्ज़ था।

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यानी अपना पहला कारोबार बेचने के बाद भी क़र्ज़ पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ था। और इसके साथ ही कंपनी ने बिग बाज़ार के साथ ही फैशन एट बिग बाज़ार यानी एफबीबी और सेंट्रल जैसे नए फॉर्मैट भी शुरू कर दिए थे जो पैंटलून की कमी को पूरा कर सकते थे। यही नहीं उन्होंने नई उम्र के लोगों को नज़र में रखकर फूडहॉल जैसा गोर्मे फूड स्टोर भी खोला।

एक बार मुसीबत से निकलने के बाद भी किशोर बियानी की कारोबार बड़ा करने की भूख खत्म नहीं हुई। इसके लिए वो क़र्ज़ लेने से भी पीछे नहीं हटे। यहां तक कि उन्होंने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बैंकों के पास रेहन रखकर क़र्ज़ लिया।

विदेशी निवेश

जाहिर है उनके अंदर का उद्यमी लगातार जोर मारता रहा। लेकिन उनके साथ के कुछ लोगों को भी खतरा दिख रहा था, और उनके कारोबार पर नज़र लगाए बैठी बड़ी कंपनियों को भी। 

जब से रिटेल में विदेशी निवेश की चर्चा शुरू हुई तभी से यह सवाल पूछा जा रहा था कि दुनिया के बड़े दिग्गज रिटेलर जब भारत आएँगे तो उनमें से कौन किशोर बियानी को अपना भागीदार बनाने में कामयाब होगा। वजह साफ थी, बियानी का साथ मिलने का ही मतलब होता कि आधी लड़ाई जीत ली गई।

लेकिन एक के बाद एक चर्चा तो खूब हुई मगर इस अंजाम तक कोई सौदा नहीं पहुंचा कि फ़्यूचर ग्रुप के सारे स्टोर्स पर कोई विदेशी मोहर दिखाई पड़े। 

भारत के रिटेल कारोबार पर बड़ी कंपनियों की निगाहें भी टिकी थीं। रिलायंस रिटेल धीरे धीरे चला, लेकिन अब वो देश का सबसे बड़ा रिटेलर बन चुका था। अगर रिलायंस भी फ़्यूचर ग्रुप को खरीदना चाहता था तो यह कोई अनहोनी नहीं थी।

कैसे आया एमेज़ॉन?

लेकिन इस बीच फ़्यूचर ग्रुप कुछ ऐसी जुगत में लगा रहा कि किसी तरह कंपनी में इतना पैसा लाने का इंतजाम हो जाए कि वो बाज़ार में कमजोर न पड़े। रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश के नियम उसके रास्ते में बाधा खड़ी कर रहे थे।

एमेज़ॉन जैसी कंपनी भी भारत में पैर फैलााना चाहती थी लेकिन ऑनलाइन कारोबार में लगी कंपनी के लिए इसमें घुसना और मुश्किल था।

2019 में फ़्यूचर ग्रुप से एक बयान आया कि उनकी एक कंपनी फ़्यूचर कूपन्स लिमिटेड ने एमेज़ॉन के साथ करार किया है और एमेज़ॉन ने इस कंपनी में 49% हिस्सेदारी खरीदी है।

तब इस बारे में सवाल पूछे जाने पर दोनों कंपनियों ने यही कहा था कि यह तो लॉयल्टी पाइंट और गिफ्ट वाउचर जैसा काम करने वाली कंपनी है और इसमें पैसा लगाने का ग्रुप के रिटेल कारोबार से कोई रिश्ता नहीं है। 

हालांकि बात हजम होनेवाली थी नहीं, लेकिन ज्यादातर लोगों ने इस डील पर कोई खास सवाल खड़े नहीं किए। वजह यह थी कि बियानी की ही तरह इस कारोबार पर नज़र रखनेवाले ज्यादातर लोगों को भी यह अंदाजा नहीं था कि यह छोटा सा सौदा ही आगे चलकर बहुत बड़ा बवाल खड़ा करनेवाला है।

 शायद किशोर बियानी को या फ़्यूचर ग्रुप के लोगों को अंदाजा रहा भी हो मगर तब वो शायद यह नहीं सोच रहे थे कि एक दिन उन्हें अपना कारोबार रिलायंस को बेचना होगा। 

लेकिन अब तो यह दोनों बातें सच हो चुकी हैं। वजह यह थी कि फ़्यूचर ग्रुप पर क़र्ज़ लगातार बढ़ता जा रहा था और वो इसे कम करने की सारी कोशिशें आजमा चुका था। लॉकडाउन शुरू होने के पहले ही कंपनी भारी परेशानी में थी लेकिन इतनी गनीमत थी कि रोज़ जो बिक्री होती थी उससे कंपनी में पैसा आना और जाना दोनों जारी थे।

लॉकडाउन से बढा संकट

लेकिन लॉकडाउन के साथ ही यह सिलसिला बंद होना उसे बहुत महंगा पड़ा। इसके बाद ही पिछले साल अगस्त में फ़्यूचर ग्रुप ने अपना रिटेल कारोबार रिलायंस को बेचने का समझौता किया। 

लेकिन यह समझौता होते ही एमेज़ॉन के साथ उसके पुराने करार का भूत जाग उठा। 

एमेज़ॉन ने अब सामने आकर बताया कि जिस फ़्यूचर कूपन्स में उसने 49% हिस्सा खरीदा था, वो फ़्यूचर रिटेल में करीब दस परसेंट हिससेदारी की मालिक है। इस नाते एमेज़ॉन भी उस कंपनी में करीब पांच परसेंट का हिस्सेदार बनता है।

इसी बिना पर वो रिलायंस के साथ सौदे पर एतराज कर रहा है। 

एमेज़ॉन ने यह भी कहा कि 2019 के करार में एक रिस्ट्रिक्टेड पर्सन्स यानी ऐसे लोगों और कंपनियों की लिस्ट थी जिनके साथ फ़्यूचर ग्रुप को सौदा नहीं करना था। रिलायंस रिटेल इस लिस्ट में शामिल था। 

अंतरराष्ट्रीय पंचाट

यह झगड़ा सिंगापुर की अंतरराष्ट्रीय पंचाट में पहुंचा और वहां अभी इस मामले पर कोई फैसला नहीं हुआ है लेकिन उसने सौदे पर एक तरह से स्टे दे दिया यानी यह कह दिया कि फिलहाल सौदा आगे न बढ़ाया जाए। अब सवाल उठा कि सिंगापुर की इस पंचाट या ट्रिब्युनल का फैसला भारत में चलेगा या नहीं चलेगा। 

एमेज़ॉन जब यह फैसला लागू करवाने की मांग के साथ दिल्ली हाईकोर्ट गया तो वहां से पहला आदेश उसके ही पक्ष में आया। यही नहीं जज ने बहुत कड़ी टिप्पणी की और यहां तक पूछा कि किशोर बियानी और कंपनी के मैनेजमेंट में शामिल और लोगो को जेल क्यों न भेज दिया जाए। 

लेकिन इसके बाद हाइकोर्ट की ही एक बड़ी बेंच ने इस फैसले को पलट कर सौदे पर रोक लगाने का आदेश खारिज कर दिया। तब मामला सुप्रीम कोर्ट गया जहां से पिछले गुरुवार को यह फैसला आया है।

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अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी यह बात समझना ज़रूरी है कि कोर्ट ने सिर्फ यह कहा है कि सिंगापुर की पंचाट अगर कोई फैसला सुनाती है तो वो भारत में भी लागू होगा। और इसीलिए फ़्यूचर और रिलायंस का सौदा फिलहाल आगे नहीं बढ़ सकता। लेकिन इस मामले में कौन सही है और कौन गलत, अभी इस पर फैसला नहीं हुआ है।

इस बीच एक मामला और खुला है। कंपिटिशिन कमिशन ऑफ इंडिया यानी सीसीआई ने एमेज़ॉन को नोटिस दिया है कि 2019 में फ़्यूचर ग्रुप के साथ समझौता करते वक्त उसने कुछ ज़रूरी चीजों को पर्दे में रखा था।तर्क यह है कि तब दोनों कंपनियों ने कहा था कि इस समझौते का फ़्यूचर ग्रुप के रिटेल कारोबार से कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन अब एमेज़ॉन इसी समझौते के सहारे रिटेल कारोबार का सौदा रुकवाना चाहता है।

सीसीआई के पास यह अख्तियार है कि अगर वो चाहे, और वो इस तरह की ग़लतबयानी पकड़ ले तो पुरानी तारीख में भी वो फ़्यूचर और एमेज़ॉन के सौदे को रद्द कर सकता है। अगर ऐसा हो गया तो इस लड़ाई का पासा एक बार फिर पलट जाएगा।

फ़्यूचर को क्या मिलेगा?

लेकिन यहां सोचने की बात यहा है कि फैसला कुछ भी हो, फ़्यूचर ग्रुप को क्या मिलेगा। उसके लिए तो इधर कुआँ, उधर खाई। एक तरफ एमेज़ॉन जीतेगा और दूसरी तरफ रिलायंस।

हालांकि रिलायंस इस मुकदमे में पार्टी नहीं है, लेकिन जीतने पर फायदा उसका ही होना है। फ़्यूचर ग्रुप और किशोर बियानी तो दो पाटों के बीच फंस चुके हैं और उनकी नियति में अब पिसना ही है। 

लेकिन इसमें देश के दूसरे व्यापारियों के लिए एक सबक ज़रूर है। चादर से बाहर पैर फैलाना तो कारोबार में ज़रूरी है, लेकिन यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि इस चक्कर में कही पैर न कट जाए और कहीं चादर न फट जाए। क़र्ज़ लेने में भी सावधान रहें और बड़ी कंपनियों के साथ रिश्ते जोड़ने में तो और भी सावधान रहें।   

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