देश में बेरोजगारी के आधिकारिक आंकड़ों पर विवाद क्यों है? अर्थशास्त्रियों का दावा है कि सरकार द्वारा जारी डेटा ज़मीनी हकीकत को नहीं दिखाता। जानें क्या है असली तस्वीर?
प्रतीकात्मक तस्वीर
भारत सरकार द्वारा जारी बेरोजगारी के आधिकारिक आँकड़ों पर सवाल उठाए गए हैं। एक ताज़ा रॉयटर्स सर्वे में शीर्ष अर्थशास्त्रियों ने दावा किया है कि भारत में बेरोजगारी की वास्तविक स्थिति सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक गंभीर है। उनके मुताबिक़, वास्तविक बेरोजगारी दर सरकारी आँकड़ों से लगभग दोगुनी हो सकती है।
भारत सरकार के मुताबिक़, जून 2025 में देश की बेरोजगारी दर 5.6% थी। लेकिन रॉयटर्स द्वारा किए गए सर्वे में 50 स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों में से 70% (यानी 37) ने इस आँकड़े को गलत बताया। 17 विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि वास्तविक बेरोजगारी दर 7% से लेकर 35% तक हो सकती है, जिसका औसत 10% है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकारी आँकड़े न केवल बेरोजगारी की गंभीरता को छिपाते हैं, बल्कि अंडर-एंप्लॉयमेंट यानी अल्प-रोजगार की समस्या को भी नजरअंदाज करते हैं।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत में बेरोजगारी के आंकड़े इकट्ठा करने का तरीका पुराना है और यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। भारत में पिरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी पीएलएफ़एस के तहत अगर कोई व्यक्ति सप्ताह में केवल एक घंटे के लिए भी काम करता है तो उसे 'रोजगार प्राप्त' माना जाता है। इसके अलावा बिना वेतन वाले पारिवारिक काम और जीविका के लिए किए जाने वाले छोटे-मोटे काम को भी रोजगार की श्रेणी में गिना जाता है। यह तरीका वास्तविक बेरोजगारी और अल्प-रोजगार की स्थिति को सही ढंग से नहीं दिखाता।
रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एमेरिटस प्रणब बर्धन ने कहा, 'ये आंकड़े लोगों की आंखों में धूल झोंकने जैसे हैं। अगर कोई व्यक्ति छह महीने तक एक घंटे भी काम नहीं करता और वह अमीर नहीं है तो वह अपना पेट कैसे भरता है? भारत में बेरोजगारी और अल्प-रोजगार की समस्या बहुत बड़ी है, जो इन आंकड़ों में नहीं दिखती।'
भारत की आर्थिक वृद्धि और बेरोजगारी का अंतर
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। इसने जनवरी-मार्च 2025 में 7.4% की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की। लेकिन इस तेज आर्थिक वृद्धि के बावजूद देश में अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों का सृजन नहीं हो पा रहा है। हर साल लाखों युवा नौकरी बाजार में प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं हैं। इससे युवाओं में असंतोष बढ़ रहा है, जिसका असर हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों में भी देखा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में है, लेकिन पिछले साल हुए चुनावों में उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इसका एक बड़ा कारण युवाओं में रोजगार की कमी को लेकर असंतोष माना जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय और सुझाव
रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव ने कहा, 'बेरोजगारी भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। सरकारी आंकड़े जमीनी हकीकत को सही ढंग से नहीं दिखाते।' उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए जो अधिक नौकरियां पैदा कर सकें, जैसे कि मैन्युफैक्चरिंग। वित्त और आईटी जैसे क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन ये क्षेत्र कम श्रम-आधारित हैं और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन नहीं कर पाते।
दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों ने सरकारी आँकड़ों का बचाव किया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिए भारत के पूर्व कार्यकारी निदेशक सुरजीत भल्ला ने कहा, 'दुनियाभर में कोई भी रोजगार डेटा 100% सटीक नहीं होता। अमेरिका का लेबर फोर्स सर्वे भी परफेक्ट नहीं है। भारत का पीएलएफ़एस अब काफ़ी मज़बूत है, लेकिन लोग इसे मानना नहीं चाहते।'
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने अपने डेटा की विश्वसनीयता का बचाव किया है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय का कहना है कि पीएलएफ़एस में कंप्यूटर की सहायता और व्यक्तिगत सवाल जवाब का इस्तेमाल किया जाता है, जो डेटा की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है और ग़लतियों को कम करता है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां उनके डेटा का उपयोग अपनी रिपोर्टों में करती हैं।
चुनौतियाँ और समाधान
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को न केवल अधिक नौकरियां पैदा करने की ज़रूरत है, बल्कि ऐसी नौकरियों की भी ज़रूरत है जो अच्छी तनख्वाह और स्थिरता प्रदान करे। इसके लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए-
मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा: विनिर्माण क्षेत्र में निवेश और नीतिगत सुधारों से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो सकता है।
शिक्षा और कौशल विकास: युवाओं को आधुनिक नौकरियों के लिए तैयार करने के लिए शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा।
महिला श्रम भागीदारी: भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी G20 देशों की तुलना में बहुत कम है। इसे बढ़ाने के लिए नीतियां बनानी होंगी।
आंकड़ों में सुधार: बेरोजगारी के आंकड़ों को इकट्ठा करने के तरीके को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप करना होगा ताकि सही स्थिति का पता चल सके।
भारत में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है और सरकारी आँकड़ों पर सवाल उठने से इस मुद्दे की जटिलता और बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि का पूरा फायदा उठाना है तो उसे रोजगार सृजन पर विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही, आँकड़ों की सटीकता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सुधार जरूरी हैं। यह न केवल आर्थिक विकास के लिए अहम है, बल्कि देश के युवाओं के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भी ज़रूरी है।