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सरकार की कमाई बढ़ी लेकिन आम आदमी को राहत कब मिलेगी?

केंद्र सरकार दावा कर रही है कि कोरोना की वजह से एक छोटे व्यवधान के अलावा पिछले कुछ सालों में जीडीपी की ग्रोथ लगातार दस परसेंट से ऊपर रही है। लेकिन फिर इस सवाल का साफ जवाब क्यों नहीं मिलता कि तरक्की इतनी तेज़ है तो आम आदमी की जिंदगी पर उसका असर क्यों नहीं दिख रहा है?

आलोक जोशी

सरकार की कमाई में जबरदस्त उछाल आया है और अब वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि 2025 तक भारत को फाइव ट्रिलियन डॉलर यानी पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का काम पटरी पर है। लेकिन क्या इसके साथ यह उम्मीद भी की जा सकती है कि कमाई बढ़ने के बाद सरकार महंगाई से परेशान मध्यवर्ग को राहत देने के लिए कुछ करेगी? 

इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स, कस्टम ड्यूटी और जीएसटी सभी की वसूली में खासी बढ़ोतरी के बाद यह सवाल उठना तो स्वाभाविक है। 

लेकिन वित्त मंत्रालय के अफसरों की भावभंगिमा और उनके बयानों में छुपे संकेतों से इसका जो जवाब मिलता है वो खास उम्मीद बंधानेवाला नहीं लगता। 

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बीते हफ्ते जारी हुए आंकड़ों में सरकार ने ही बताया है कि टैक्स से जबरदस्त कमाई हो रही है। सरकार को उम्मीद थी कि पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में उसे टैक्स के रास्ते 22.17 लाख करोड़ रुपए की कमाई होगी। लेकिन अब खबर आई है कि यह कमाई पूरे पांच लाख करोड़ ज्यादा यानी सत्ताईस लाख करोड़ से ऊपर निकल गई है।
हालांकि फरवरी में ही वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस लक्ष्य को बढ़ाकर 25.16 लाख करोड़ रुपए कर चुकी थीं लेकिन असली कमाई उससे भी कहीं ऊपर निकल गई।

इनकम टैक्स की हिस्सेदारी बढ़ी

इस आमदनी में कॉर्पोरेट टैक्स यानी कंपनियों की कमाई पर लगनेवाले इनकम टैक्स की हिस्सेदारी 8.6 लाख करोड़ की है। यानी पिछले साल से 56 परसेंट ज्यादा। दूसरी तरफ व्यक्तिगत आयकर यानी इनकम टैक्स की हिस्सेदारी में भी 43% का उछाल आया है और यह सात लाख अड़तालीस हज़ार करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। इस तरह प्रत्यक्ष कर की कमाई का जो संशोधित अनुमान साढ़े बारह लाख करोड़ पर रखा गया था असली कमाई उससे कहीं ऊपर चौदह लाख दस हज़ार करोड़ रुपए पर पहुंच गई है।   

अप्रत्यक्ष करों की वसूली में बढ़ोत्तरी कुछ कम है लेकिन यहां भी बीस परसेंट बढ़त तो हुई है। जीएसटी के खाते में औसतन हर महीने एक लाख तेईस हज़ार करोड़ रुपए आए हैं, जबकि इसके पहले के दो सालों में यह रकम 1.01 लाख करोड़ रुपए और 94734 करोड़ रुपए ही थी। कस्टम ड्यूटी या आयात शुल्क में 48% का उछाल आया है जबकि एक्साइज की वसूली में मामूली गिरावट है।

एक्साइज में गिरावट की वजह यह भी है कि तेल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद नवंबर में एक्साइज ड्यूटी में कुछ कटौती की गई थी। और दूसरी यह भी कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें गिरने के पूरे दौर में सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ा बढ़ाकर जो वसूली की थी अब उसे वहां से कम होना ही था। 

वित्त मंत्रालय ने इन आंकड़ों के साथ जो बयान जारी किया है उसमें कहा गया है कि ‘पिछले दो वित्तवर्षों 2019-20 और 2020-21 के दौरान टैक्स वसूली में गिरावट की वजह कोरोना की वजह से आर्थिक गतिविधियों में पड़ा व्यवधान था। लेकिन वित्त वर्ष 2021-22 में टैक्स आमदनी में बढ़त इस बात का सबूत है कि अर्थव्यवस्था में तेज़ी से सुधार हो रहा है और अब वो पटरी पर वापस आ चुकी है।’ 

Modi government earning from tax revenue - Satya Hindi

टैक्स जीडीपी अनुपात भी बढ़ा

टैक्स वसूली में इस उछाल के साथ ही भारत का टैक्स जीडीपी अनुपात भी बढ़ गया है। अब जीडीपी का 11.7% हिस्सा टैक्स से आ रहा है। इसमें डायरेक्ट टैक्स की हिस्सेदारी 6.1% और इनडायरेक्ट टैक्स या जीएसटी, कस्टम और एक्साइज की हिस्सेदारी 5.6% है। इसका दूसरा अर्थ यह हुआ कि अब अर्थव्यवस्था में कमाई और व्यापार के अनुपात में टैक्स भरने की प्रवृत्ति में सुधार हुआ है। सरकार इसके लिए टैक्स व्यवस्था में सुधार, पहले से भरे हुए टैक्स रिटर्न फॉर्म और एआइएस जैसी व्यवस्थाओं को जिम्मेदार मान रही है जिन्होंने कमाई छुपाना या टैक्स चुराना काफी मुश्किल कर दिया है।

वित्त मंत्रालय का यह भी कहना है कि इनकम टैक्स रिटर्न्स के तेज़ी से निपटारे और जल्दी रिफंड जारी होने से भी कर दाताओं का भरोसा बढ़ा है। मंत्रालय ने बताया कि दो लाख चौबीस हज़ार करोड़ रुपए करदाताओं को लौटाए गए हैं।
इस हाथ ले और उस हाथ दे वाले इस उदाहरण के बाद यह सवाल भी उठता है कि इनकम टैक्स का रिफंड तो देना ही था, सरकार ने ज्यादा पैसा ले लिया और अब उसकी वापसी पर भी शाबासी चाहिए? लेकिन दूसरी तरफ पेट्रोल डीजल पर एक्साइज के नाम पर जो वसूली चल रही है और उसकी वजह से जिस जनता को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है उसे राहत के लिए सरकार क्या कर रही है? यह सवाल उठते ही सरकार और सरकार के पैरोकार बगलें झांकने लगते हैं।केंद्रीय राजस्व सचिव तरुण बजाज ने जिस वक्त टैक्स वसूली में उछाल के आंकड़े दिखाए और वसूली बढ़ने को अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने का सबूत बताया, वहीं, कुछ ही देर के बाद उन्होंने यह भी बता डाला कि इतनी जबरदस्त खुशखबरी के बावजूद अभी खुशी मनाने का वक्त नहीं आया है, यानी आप अगर राहत की उम्मीद कर रहे हैं तो भूल जाइए। 

उन्होंने कहा कि इस साल टैक्स जीडीपी अनुपात तेईस सालों में सबसे ऊपर ज़रूर पहुंच गया है, लेकिन इससे यह अंदाजा लगा लेना ठीक नहीं होगा कि अगले साल भी टैक्स से आमदनी में ऐसा ही उछाल देखने को मिलेगा। उनका कहना है कि जून के बाद कुछ बेहतर अंदाज लगाया जा सकता है, क्योंकि तब एडवांस टैक्स की एक किस्त आ चुकी होगी।

साथ ही सरकार की यह चिंता भी सामने है कि इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स जैसे डायरेक्ट टैक्स की वसूली तो सुधर रही है लेकिन अप्रत्यक्ष करों की वसूली ऐसे ही समान भाव से नहीं बढ़ती है। कभी कभी एक दो चीजों में ही ऐसा हेरफेर हो जाता है कि सारी गणित बिगड़ जाती है। 

इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो पेट्रोल डीजल ही है। पिछले साल दिवाली के पहले नवंबर में सरकार ने पेट्रोल डीजल की एक्साइज ड्यूटी में पांच और दस रुपए की कटौती की थी। और एक महीने के भीतर ही खाने के तेल की महंगाई को रोकने के लिए सरकार को उनकी इंपोर्ट ड्यूटी में भी पांच परसेंट की कटौती करनी पड़ी थी। 

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उसके बाद ही पांच राज्यों के चुनाव भी होने थे और इसी चक्कर में चार महीने से ज्यादा तक पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने का सिलसिला भी रुका रहा। हालांकि दोनों ही चीजों के दाम अब बाज़ार तय करता है यानी सरकार इसका फैसला नहीं करती है। लेकिन चार बड़ी पेट्रोलियम कंपनियां भारत सरकार के नियंत्रण में हैं इसलिए अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि दाम बढ़ाने या घटाने का फैसला कब और किसके कहने से होता है। 

पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े 

इसका सबूत भी है कि चुनाव खत्म होने के दो दिन बाद से एक रोज़ में अस्सी पैसे की रफ्तार से दाम बढ़ाए जाने लगे और लगभग दस रुपए लिटर तक बढ़ते रहे। दाम एक झटके में बढ़ाने के बजाय धीरे धीरे बढ़ाने का फैसला दिखाता है कि सरकार को इस बात का पूरा अंदाजा है कि महंगाई का मसला किसी भी दिन उसके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। इसी बात का एक और नमूना इससे देखा जा सकता है कि संसद में महंगाई पर गंभीर बहस या सवालों के जवाब देने से बचने के लिए सत्ता पक्ष ने संसद का सत्र ही जल्दी खत्म करके बात को बढ़े से पहले ही खत्म कर दिया। 

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हालांकि सरकार अब भी दावा कर रही है कि कोरोना की वजह से एक छोटे व्यवधान के अलावा पिछले कुछ सालों में जीडीपी ग्रोथ लगातार दस परसेंट से ऊपर रही है। 
लेकिन फिर इस सवाल का साफ जवाब क्यों नहीं मिलता कि तरक्की इतनी तेज़ है तो आम आदमी की जिंदगी पर उसका असर क्यों नहीं दिख रहा है?

पेट्रोल डीजल के दाम कम करने या महंगाई कम करने का एक रास्ता तो सरकार आजमा कर देख चुकी है। लेकिन यही हथियार बार बार काम नहीं कर सकता क्योंकि एक्साइज कटौती का बोझ केंद्र के साथ साथ राज्य सरकारों को भी झेलना पड़ता है और ज्यादातर राज्यों की माली हालत पहले ही काफी खस्ता है। दूसरे इस कमाई में कटौती से सरकारों पर अपने खर्च कम करने का दबाव भी बढ़ेगा।

और इस वक्त न सिर्फ राज्य बल्कि केंद्र सरकार भी ऐसी योजनाओं पर काफी खर्च कर रही है जिन्हें कल्याणकारी योजनाएं कहा जाता है और जिनमें लाभार्थियों को सीधे खाते में पैसा या झोली में अनाज मिलता है। अब सवाल यह है कि अगर महंगाई के मोर्चे पर राहत देनी है तो इनमें से किस खाते में खर्च पर कटौती की जाएगी? 

अभी गुजरात और हिमाचल में चुनाव आने हैं और उसके बाद तो देश लोकसभा चुनावों की तैयारी में व्यस्त हो जाएगा। ऐसे में इस सवाल का जवाब कहां से मिलेगा? बस यही कह सकते हैं -

बेखुदी बेसबब नहीं ग़ालिब

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