मंगलवार को जिस दिन संसद में बजट पेश होना था सुबह दैनिक भास्कर अखबार ने बजट से की जाने वाले नौ बड़ी उम्मीदों की फेहरिस्त छापी। इसमें आयकर की दरों में कटौती, होम लोन में राहत, एफडी पर छूट, कैपिटल गेन टैक्स के स्लैब में बदलाव से राहत, किसान सम्मान निधि में बढ़ोत्तरी जैसी चीजें शामिल थीं। 
ऐसा करने वालों में दैनिक भास्कर अकेला मीडिया संगठन नहीं था। अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर इस तरह की अटकलें बड़ी संख्या में लगाई जा रही थीं। कुछ तो इसे भविष्यवाणी की तरह पेश कर रहे थे। टीवी चैनल और अंग्रेजी अखबार तो पिछले कुछ दिनों से इसे लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे।


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लेकिन मंगलवार की दोपहर होते-होते यह सब ग़लत साबित हो गया। यहाँ अगर हम एक बार फिर से दैनिक भास्कर की नौ उम्मीदों को याद करें तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किया गया बजट उसकी एक भी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा। यही हालत दूसरे मीडिया संगठन और तमाम आर्थिक विश्लेषकों की भी थी। यह बात अलग है कि इनमें बहुत से इसके बावजूद बजट की तारीफ में कसीदे काढ़ रहे थे।
बजट में सबसे बड़ा धोखा मध्यवर्ग के साथ हुआ। उम्मीद यह थी कि जिस तरह से देश में उपभोग की दर घट रही है, सरकार की कोशिश होगी कि नौकरी-पेशा मध्य वर्ग के हाथ में कुछ पैसा आए ताकि वह बाजार में खरीदारी के लिए निकले और मांग बढ़े। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। 
सरकार ने पिछली बार न्यू टैक्स रिजाइम का लालच लोगों को दिया था। इस बार ओल्ड टैक्स रिजाइम वाले लोगों के साथ सौतेला बर्ताव किया गया। जो भी मामूली सी राहत दी गई वह न्यू टैक्स रिजाइम वालों के लिए ही थी। वे भी लगभग न के बराबर। स्टैंडर्ड डिडक्शन में 25 हजार रुपये की मामूली सी छूट और टैक्स स्लैब में अतार्किक सा हेर-फेर। यह ऐसा बदलाव है जिसका बहुत कम लोगों को फायदा मिलेगा। वह भी किसी को भी अधिकतम 17 हजार रुपये से ज्यादा नहीं मिलेगा।

किसान सम्मान निधि ही नहीं, पूरे बजट में ऐसा कुछ नहीं है जिससे देश के किसान कुछ राहत महसूस कर सकें।

पिछले काफी समय से बेरोजगारी का मुद्दा काफी ज्यादा चर्चा में था। उम्मीद थी कि सरकार इस समस्या के समाधान के लिए कुछ ठोस प्रयास करेगी। समस्या यह है कि इस समय देश में नया निवेश नहीं हो रहा। नई इकाइयां नहीं लग रहीं जिससे रोजगार के नए अवसर नहीं पैदा हो रहे। इसके लिए बजट में कुछ नहीं सुनाई दिया। पहली नौकरी पाने वालों को एक महीने की तरख्वाह और उनके रोजगारदाताओं को तीन हजार रुपये महीने की मदद जैसे कुछ लाॅलीपाॅप जरूर सुनाई दिए। एक करोड़ नौजवानों को एप्रेंटिसशिप देने की योजना जरूर है लेकिन उसके बाद उनका क्या होगा, इसके लिए कोई आश्वासन नहीं है। 
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पर यहीं एक ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि अगर बजट में मध्यवर्ग के लिए कुछ नहीं है, नौजवानों के लिए कुछ नहीं है, किसानों के लिए कुछ नहीं है, गरीबों के लिए कुछ नहीं है, महंगाई के लिए कुछ नहीं है तो फिर इसमें किसके लिए कुछ है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह बजट आखिर किसका है। 
ऐसे में अक्सर यह कह दिया जाता है कि बजट अमीरों और बड़े उद्योगपतियों का है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? कम से कम शेयर बाजारों की प्रतिक्रिया देखकर तो यह नहीं कहा जा सकता। 
एक बार फिर लौटते हैं दैनिक भास्कर की नौ उम्मीदों पर। इनमें एक उम्मीद यह थी कि निवेशकों को राहत देने के लिए सरकार कैपिटल गेन टैक्स के स्लैब बदलेगी। लेकिन हुआ इसका उलटा। कैपिटल गेन टैक्स को लेकर जो बदलाव किए गए उससे निवेशक नाराज दिख रहे हैं। 
अंग्रेजी की कहावत है डेविल लाइज़ इन डिटेल। हो सकता है कि जब बजट दस्तावेज के विस्तार में जाएं तो पता पड़े कि वास्तव में इससे किसे फायदा हो रहा है और किसे नहीं। नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट की दिक्कत यह है कि उससे कोई स्पष्ट नैरेटिव नहीं निकल रहा। उससे यह साफ नहीं होता कि सरकार अर्थव्यवस्था को किधर ले जाना चाहती है, किसे फायदा पहुँचाना चाहती है और किसे नुकसान।
बिहार और आंध्र प्रदेश को दिए गए पैकेज से सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि यह सिर्फ गठबंधन की मजबूरियों वाला बजट है। इसके अलावा और कुछ नहीं।