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अर्थव्यवस्था में गिरावट को रोकने के लिए बजट में क्या इंतजाम करेंगी वित्त मंत्री?

सर्वे के मुताबिक़, भारत की अर्थव्यवस्था में वी शेप्ड रिकवरी दिख रही है। यानी आर्थिक गतिविधि जिस तेज़ी से नीचे गई उसी तेजी से वो वापस चढ़ भी रही है। इस तेज सुधार की सबसे बड़ी वजह कोरोना वैक्सीन का इंतजाम, सर्विस सेक्टर के कारोबार में तेज उछाल और खपत व निवेश दोनों में आई तेजी को बताया गया है। इसी का नतीजा है कि सबसे तेज मंदी का झटका झेलने के बाद देश की जीडीपी आजादी के बाद से सबसे तेज़ गति से बढ़त दिखाएगी। 

आलोक जोशी
भयानक आर्थिक संकट के बीच पेश किए जा रहे बजट के पहले यह सवाल पूछा जा रहा है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अर्थव्यवस्था में गिरावट को कितना रोक पाएगी या कम कर पाएगी। वे ऐसा क्या करेंगी या क्या कदम उठाएंगी कि अर्थव्यवस्था में इस गिरावट को कम किया जा सके और उसे एक बार फिर पटरी पर लाया जा सके। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के बावजूद यह सवाल अहम इसलिए है कि कोरोना और लॉकडाउन के पहले भी स्थिति कोई अच्छी नहीं थी। मंदी शुरू हो चुकी थी और कई कोर सेक्टर शून्य से नीचे की वृद्धि दर दर्ज करने लगे थे। इस बजट की चुनौती उस गिरावट को रोकना है। 

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कोरोना महामारी के झटके से भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से उबर रही है। लेकिन कोरोना से पहले की स्थिति तक पहुंचने में दो साल लग जाएंगे। संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार इस साल देश की अर्थव्यवस्था में 7.7 % की गिरावट दर्ज होगी। लेकिन इसके बाद अगला वित्तवर्ष इतिहास में सबसे तेज़ वृद्धि का साल होगा, जब जीडीपी में 15.4% की नॉमिनल वृद्धि या 11% की वास्तविक वृद्धि दिखेगी। 

नॉमिनल वृद्धि में महंगाई की दर को घटाने से वास्तविक वृद्धि का आंकड़ा सामने आता है। हालांकि इसके साथ ही पिछले साल यानी वित्तवर्ष 2019-20 की जीडीपी वृद्धि के अनुमान में गिरावट आई है। जहां पिछले बजट में यह 4.2% था, अब इसे घटाकर 4% ही कर दिया गया है। यानी कोरोना के पहले भी अर्थव्यवस्था काफी खस्ता हाल में पहुंच चुकी थी।  

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चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में करीब 24% और उसके बाद की तिमाही में करीब साढ़े 7% और गिरने के बाद से अर्थव्यवस्था में सुधार दिख रहा है। जहां इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में देश की जीडीपी में 15 % की गिरावट दर्ज हुई, वहीं उम्मीद की जा रही है कि अगली छमाही में यह गिरावट से निकलकर 0.1% की बढ़त दिखाने में कामयाब होगी। इसका अर्थ यह भी होगा कि पहली तिमाही के मुकाबले जीडीपी में 23.9% की बढ़त दर्ज होगी। 

सर्वेक्षण में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अगर देश में लॉकडाउन नहीं लगता तब भी अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगना तय था। लेकिन समय पर और कड़ाई से लॉकडाउन लगाने का असर यह रहा कि पूरे देश ने मिलकर कोरोना से मुकाबला किया। 

आर्थिक गतिविधियां तेज़ हुईं 

सर्वे के मुताबिक़, भारत की अर्थव्यवस्था में वी शेप्ड रिकवरी दिख रही है। यानी आर्थिक गतिविधि जिस तेज़ी से नीचे गई उसी तेजी से वो वापस चढ़ भी रही है। इस तेज सुधार की सबसे बड़ी वजह कोरोना वैक्सीन का इंतजाम, सर्विस सेक्टर के कारोबार में तेज उछाल और खपत व निवेश दोनों में आई तेजी को बताया गया है। इसी का नतीजा है कि सबसे तेज मंदी का झटका झेलने के बाद देश की जीडीपी आजादी के बाद से सबसे तेज़ गति से बढ़त दिखाएगी। 

सर्वे में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों के आकलन पर सवाल उठाया गया है। इसके अनुसार एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी ताकत या फंडामेंटल्स को कम करके आंक रही हैं।
इस साल चालू खाते में घाटे के बजाय जीडीपी के 2 % के बराबर मुनाफा या बचत होने का अनुमान है। सत्रह साल में पहली बार भारत में करेंट अकाउंट सरप्लस या चालू खाते का मुनाफा दिखाई पड़ रहा है। इसका अर्थ यह है कि इंपोर्ट के मुकाबले एक्सपोर्ट ज्यादा हुआ है, जिनकी वजह से पैसा गया कम और आया ज्यादा। लेकिन क्या यह अच्छी बात है? इसे समझने के लिए काफी कुछ और देखना पड़ेगा। लेकिन पहली नज़र में एक्सपोर्ट भी गिरा है और इंपोर्ट उसके मुकाबले और तेज़ी से गिरा है, जो अर्थव्यवस्था की मजबूती नहीं कमजोरी का संकेत भी हो सकता है।
कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां इस साल बढ़त दिखी है। 3.4% की वृद्धि उस माहौल में हुई, जब बाकी सब कुछ गिर रहा हो। यही वजह है कि कई साल बाद पहली बार देश की अर्थव्यवस्था में खेती की हिस्सेदारी बढ़ती हुई दिखेगी।

टैक्स वसूली में तेज़ गिरावट 

लेकिन कमाई के मोर्चे पर चिंताजनक खबरें हैं। टैक्स वसूली में तेज़ गिरावट है। अप्रैल से नवंबर के बीच सरकार की टैक्स आमदनी में 12.6% की कमी आई और कुल 10.26 लाख करोड़ रुपये ही वसूल हो पाए हैं और वह भी तब जबकि सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ाकर किसी तरह खजाना भरने का एक रास्ता आजमा लिया है। 

इसके बाद भी कुल टैक्स वसूली 24.2 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य से काफी कम रहने की आशंका है। इसका बुरा असर राज्य सरकारों को भी झेलना पड़ेगा क्योंकि इसी टैक्स में से उन्हें भी हिस्सा मिलता है। 

कमाई का दूसरा रास्ता था डिसइन्वेस्टमेंट। लेकिन यहां भी दो लाख दस हज़ार करोड़ के लक्ष्य के सामने केवल 15,220 करोड़ रुपये ही जुटाए जा सके हैं। हालांकि सर्वेक्षण में इसके लिए कोरोना को जिम्मेदार बताया गया है लेकिन शेयर बाज़ार पिछले हफ्ते तक जिस अंदाज में कुलांचे भर रहा था उसमें यह तर्क हजम नहीं होता। अब बचे वक्त में सरकार क्या कर पाएगी यह बड़ा सवाल है। 

Budget 2021 : Nirmala Sitharaman to stem recession in indian economy  - Satya Hindi

आर्थिक सर्वेक्षण की ख़ास बातें 

  • वित्त वर्ष 2020-21 में GDP वृद्धि अनुमान -7.7%
  • वित्त वर्ष 2021-22 में रियल GDP वृद्धि अनुमान 11%
  • आजादी के बाद की सबसे तेज वृद्धि दिखेगी
  • वित्त वर्ष 2021-22 में नॉमिनल GDP वृद्धि अनुमान 15.4%
  • वित्त वर्ष 2021-22 में अर्थव्यवस्था में पूरी रिकवरी दिखेगी
  • भारत में V-SHAPED रिकवरी देखी गई
  • वैक्सीन से अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी की उम्मीद
  • सर्विस, निजी सेक्टर में तेज रिकवरी की उम्मीद
  • रेटिंग एजेंसियां फंडामेंटल को कम आंक रही हैं
  • वित्त वर्ष 2020-21 करेंट अकाउंट सरप्लस GDP के 2% का अनुमान
  • 17 साल बाद पहली बार करेंट अकाउंट सरप्लस होगा
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घाटा बढ़ेगा 

कमाई घटी है जबकि खर्च काफी बढ़ा है, इसका साफ मतलब है कि सरकार का घाटा बहुत बढ़ने जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें पिछले साल के मुकाबले काफी ज्यादा कर्ज उठा चुकी हैं। इसी का असर है कि इस साल सिर्फ केंद्र सरकार का घाटा ही जीडीपी के 7 % तक पहुंच सकता है, राज्यों के घाटे को भी जोड़ेंगे तो यह आंकड़ा और बड़ा हो जाएगा। 

लेकिन एक बात सर्वे में कही गई है और सच भी है कि यह सारे आंकड़े उस साल के हैं जब दुनिया सौ साल के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही थी। अब उससे निकलने का रास्ता दिखने लगा है और उम्मीद है कि अगले कुछ साल भारत की तरक्की की रफ्तार दुनिया में सबसे तेज़ होगी। इसके लिए कुछ मदद और सहारे की ज़रूरत होगी जिसके लिए अब सबकी नज़र होगी वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट पर। 

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