ये बड़े हाई प्रोफ़ाइल मामले आने के बाद लग रहा था कि बैंक धोखाधड़ी की रिपोर्ट अब कम होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कम से कम रिज़र्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट तो ऐसा नहीं कहती।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों द्वारा शुरुआती चेतावनी संकेतों यानी ईडब्ल्यूएस को सही तरीक़े से लागू नहीं किया जाना, आंतरिक ऑडिट के दौरान ईडब्ल्यूएस का पता न लगाना, फोरेंसिक ऑडिट के दौरान उधार लेने वालों का असहयोग, अनिर्णायक ऑडिट रिपोर्ट आदि के कारण धोखाधड़ी का पता लगाने में देरी होती है।